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Bhadohi Carpet: ऐसे हुआ था भदोही की कालीन का निर्माण, आज दुनियाभर में है मांग - भदोही की न्यूज

उत्तर प्रदेश का जिला भदोही कालीन कारोबार के लिए काफी लोकप्रिय माना जाता है. करीबन पचास फीसदी लोग इस कारोबार से जुड़े हुए है. लेकिन वर्ष 2007 से 09 तक अमेरीका में छाई वैश्विक मंदी का असर कालीन उद्योग पर पड़ा था. जिससे निर्यात का आंकड़ा गिर गया था. हालांकि उसके बाद इस उत्पाद का निर्यात प्रतिवर्ष ग्रोथ कर रहा है. वित्तिय वर्ष 2021-22 में कालीन का निर्यात करोड़ रुपए का हुआ था.

भदोही की कालीन
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Published : Mar 9, 2023, 4:45 PM IST

भदोही की कालीन का इतिहास

भदोही: कालीन व्यवसाय से देश का एक बड़ा तबका जुड़ा हुआ है. भारत से करोड़ों रुपये का कालीन प्रतिवर्ष विदेशों को निर्यात किया जाता है. यह उद्योग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में भी शामिल है. सरकार लगातार इसको बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है. पीएम मोदी ने हाल ही में हुए यूपी के इन्वेस्टर समिट में देश विदेश के निवेशकों के सामने कालीन उद्योग का जिक्र किया था. साथ ही बढ़ावा देने की भी बात कही थी. प्रधानमंत्री के संसदीय सीट से सटा जनपद भदोही कालीन व्यवसाय के लिए मशहूर है. देश का पचास फीसदी कालीन का कारोबार भदोही और मिर्जापुर परिक्षेत्र से होता है. भदोही कॉरपेट सिटी के नाम से वैश्विक पटल पर विख्यात है. यहां के गलीचे के धमक विदेशों तक है.

आंकड़ों व कालीन उद्योग का इतिहास
भदोही औद्योगिक कालीन नगरी है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा उद्योग है. यहां की बनी कलात्मक और रंग-बिरंगी कालीन विदेशों में निर्यात किए जाते हैं. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में होने वाले कालीन व्यापार पर 60 फीसदी कब्जा भारतीय कालीन निर्यातकों का है. जिसमें औद्योगिक कालीन नगरी भदोही की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है. लगभग 20 लाख से भी अधिक लोगों को रोजगार देने वाला कालीन एक कुटिर उद्योग है. जिसका उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काफी लोकप्रिय हैं. वर्ष 2007 से 09 तक अमेरीका में छाई वैश्विक मंदी का असर कालीन उद्योग पर पड़ा था. जिससे निर्यात का आंकड़ा धड़ाम से गिर गया था और उद्योग 23.15 फीसदी के निर्यात का नुकसान हुआ था. हालांकि उसके बाद इस उत्पाद का निर्यात प्रतिवर्ष ग्रोथ कर रहा है. वित्तिय वर्ष 2021-22 में कालीन का निर्यात करोड़ रुपए का हुआ था.

कालीन निर्यातक वसीम अख्तर के मुताबिक, भारतीयों को कालीन बुनाई के गुर ईरानियों ने सिखाए थे, जो समय के साथ पुष्पित और पल्लवित हुआ. आज एक वट वृक्ष के रुप में हमारे सामने है. उद्योग के जानकारों की मानें तो भारत में कालीन इजात करने की देन सम्राट अकबर की है. उन्होंने ही लोगों को बुनकरी कला से दक्ष करने के लिए ईरान से बुनकरों को बुलाया था. लाहौर, जयपुर और आगरा में प्रशिक्षण देने के बाद बुनकरों का काफिला जीटी रोड से गुजर रहा था. इसी बीच जिले के माधोसिंह के पास काफिला पहुंचने के बाद उसमे से एक सदस्य की तबीयत खराब हो गई. उसके बाद काफिले के सभी सदस्य माधोसिंह में कुछ दिनों के लिए रुक गए. लेकिन जब उसकी तबीयत में सुधार नहीं हुई तो वे उसे वहीं पर छोड़कर गंतव्य को रवाना हो गए. हालाकि गांव वालों की सेवा के बाद उसके स्वास्थ्य मे सुधार हो गया. ऐसे में गांव वालों की सेवा से खुश होकर उसने लोगों को कालीन के बुनाई का प्रशिक्षण देना शुरु कर दिया. रंग-बिरंगे और कलात्मक कालीनों को देखकर अंग्रेज इसके मुरीद हो गए.

अंग्रेजो ने सन् 1850 मे जनपद के खमरियां मे ई-हिल कम्पनी की स्थापना कर कालीनों का विदेशों में निर्यात करना शुरु किया. इसके बाद अंग्रेजों ने भदोही में टेलरी एंड संस और गोपीगंज मे ओबीटी कंपनी बना कर कालीन उद्योग पर अपना कब्जा जमा लिया. 1947 मे कालीन निर्यात एक करोड़ रुपए तक जा पहुंचा था. देश की आजादी के बाद यहां के तमाम लोगों ने भी कालीन कारोबार मे आजमाईश शुरु की. धीरे-धीरे इस उद्योग ने विस्तार करना शुरु कर दिया. भदोही- मिर्जापुर कालीन परिक्षेत्र से यह उद्योग आगे बढता गया, जो आगरा, सहारनपुर, शाहजहांपुर, जयपुर, पानीपत, दिल्ली और जम्मू काश्मीर तक पहुंच गया. ऐसे मे इस उद्योग का निर्यात आंकड़ा निरंतर बढता ही रहा. यह उद्योग लगभग 20 लाख से अधिक लोगों को रोजगार दे रहा है. वहीं, भारतीय कालीन का निर्यात प्रतिवर्ष बढ़ रहा है. वर्तमान समय के निर्यातक पर गौर करें तो भारतीय कालीन का अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सालाना निर्यात 13810.41 करोड़ रुपए से भी अधिक तक पहुंच गया है. जिसमें 60 फीसदी की हिस्सेदारी भदोही-मिर्जापुर कालीन परिक्षेत्र के निर्यातकों की है.

वित्तिय वर्ष 2007-08 में अमेरिका में आई वैश्विक मंदी का असर कालीन उद्योग पर भी पड़ा. इससे निर्यात आंकड़े मे 4.08 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी. मंदी की काली छाया न छटने के कारण वित्तिय वर्ष 2008-09 में भारतीय कालीन उद्योग पर इसका व्यापक असर देखने को मिला था, जिससे निर्यात आंकड़ा धड़ाम से गिरा तो उद्योग को 23.15 फीसदी का नुकसान हुआ था. हालांकि बाद में अमेरिका सहित विश्व बाजार मे आई तरलता से भारतीय कालीन उद्योग की सेहत में सुधार हुई. समय के साथ लोगों ने इस कारोबार में भाग्य आजमाना फिर से शुरु कर दिया. वैसे अब देखा जाए तो निर्यात आंकड़े में प्रतिवर्ष ग्रोथ हो रहा है. कोविड के कारण दो वर्ष उद्योग को नुकसान उठाने पड़े. इसकी भी वजह से जिस रफ्तार के साथ निर्यात आंकड़ा बढ़ना चाहिए था. उस अनुपात में वह नहीं बढ़ पाया.

पिछले 5 सालों के कालीन निर्यात का आंकड़ा
2015-16 में 11299.73
2016-17 में 11895.17
2017-18 में 11028.05
2018-19 में 12364.69
2019-20 में 11799.46
2020-21 में 13810.41 करोड़ रुपए का निर्यात हुआ है.

यह भी पढ़ें- Polytechnic में कम होंगी सीटें, 16 मार्च को 8 सदस्यीय कमेटी करेगी निर्णय


भदोही की कालीन का इतिहास

भदोही: कालीन व्यवसाय से देश का एक बड़ा तबका जुड़ा हुआ है. भारत से करोड़ों रुपये का कालीन प्रतिवर्ष विदेशों को निर्यात किया जाता है. यह उद्योग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में भी शामिल है. सरकार लगातार इसको बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है. पीएम मोदी ने हाल ही में हुए यूपी के इन्वेस्टर समिट में देश विदेश के निवेशकों के सामने कालीन उद्योग का जिक्र किया था. साथ ही बढ़ावा देने की भी बात कही थी. प्रधानमंत्री के संसदीय सीट से सटा जनपद भदोही कालीन व्यवसाय के लिए मशहूर है. देश का पचास फीसदी कालीन का कारोबार भदोही और मिर्जापुर परिक्षेत्र से होता है. भदोही कॉरपेट सिटी के नाम से वैश्विक पटल पर विख्यात है. यहां के गलीचे के धमक विदेशों तक है.

आंकड़ों व कालीन उद्योग का इतिहास
भदोही औद्योगिक कालीन नगरी है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा उद्योग है. यहां की बनी कलात्मक और रंग-बिरंगी कालीन विदेशों में निर्यात किए जाते हैं. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में होने वाले कालीन व्यापार पर 60 फीसदी कब्जा भारतीय कालीन निर्यातकों का है. जिसमें औद्योगिक कालीन नगरी भदोही की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है. लगभग 20 लाख से भी अधिक लोगों को रोजगार देने वाला कालीन एक कुटिर उद्योग है. जिसका उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काफी लोकप्रिय हैं. वर्ष 2007 से 09 तक अमेरीका में छाई वैश्विक मंदी का असर कालीन उद्योग पर पड़ा था. जिससे निर्यात का आंकड़ा धड़ाम से गिर गया था और उद्योग 23.15 फीसदी के निर्यात का नुकसान हुआ था. हालांकि उसके बाद इस उत्पाद का निर्यात प्रतिवर्ष ग्रोथ कर रहा है. वित्तिय वर्ष 2021-22 में कालीन का निर्यात करोड़ रुपए का हुआ था.

कालीन निर्यातक वसीम अख्तर के मुताबिक, भारतीयों को कालीन बुनाई के गुर ईरानियों ने सिखाए थे, जो समय के साथ पुष्पित और पल्लवित हुआ. आज एक वट वृक्ष के रुप में हमारे सामने है. उद्योग के जानकारों की मानें तो भारत में कालीन इजात करने की देन सम्राट अकबर की है. उन्होंने ही लोगों को बुनकरी कला से दक्ष करने के लिए ईरान से बुनकरों को बुलाया था. लाहौर, जयपुर और आगरा में प्रशिक्षण देने के बाद बुनकरों का काफिला जीटी रोड से गुजर रहा था. इसी बीच जिले के माधोसिंह के पास काफिला पहुंचने के बाद उसमे से एक सदस्य की तबीयत खराब हो गई. उसके बाद काफिले के सभी सदस्य माधोसिंह में कुछ दिनों के लिए रुक गए. लेकिन जब उसकी तबीयत में सुधार नहीं हुई तो वे उसे वहीं पर छोड़कर गंतव्य को रवाना हो गए. हालाकि गांव वालों की सेवा के बाद उसके स्वास्थ्य मे सुधार हो गया. ऐसे में गांव वालों की सेवा से खुश होकर उसने लोगों को कालीन के बुनाई का प्रशिक्षण देना शुरु कर दिया. रंग-बिरंगे और कलात्मक कालीनों को देखकर अंग्रेज इसके मुरीद हो गए.

अंग्रेजो ने सन् 1850 मे जनपद के खमरियां मे ई-हिल कम्पनी की स्थापना कर कालीनों का विदेशों में निर्यात करना शुरु किया. इसके बाद अंग्रेजों ने भदोही में टेलरी एंड संस और गोपीगंज मे ओबीटी कंपनी बना कर कालीन उद्योग पर अपना कब्जा जमा लिया. 1947 मे कालीन निर्यात एक करोड़ रुपए तक जा पहुंचा था. देश की आजादी के बाद यहां के तमाम लोगों ने भी कालीन कारोबार मे आजमाईश शुरु की. धीरे-धीरे इस उद्योग ने विस्तार करना शुरु कर दिया. भदोही- मिर्जापुर कालीन परिक्षेत्र से यह उद्योग आगे बढता गया, जो आगरा, सहारनपुर, शाहजहांपुर, जयपुर, पानीपत, दिल्ली और जम्मू काश्मीर तक पहुंच गया. ऐसे मे इस उद्योग का निर्यात आंकड़ा निरंतर बढता ही रहा. यह उद्योग लगभग 20 लाख से अधिक लोगों को रोजगार दे रहा है. वहीं, भारतीय कालीन का निर्यात प्रतिवर्ष बढ़ रहा है. वर्तमान समय के निर्यातक पर गौर करें तो भारतीय कालीन का अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सालाना निर्यात 13810.41 करोड़ रुपए से भी अधिक तक पहुंच गया है. जिसमें 60 फीसदी की हिस्सेदारी भदोही-मिर्जापुर कालीन परिक्षेत्र के निर्यातकों की है.

वित्तिय वर्ष 2007-08 में अमेरिका में आई वैश्विक मंदी का असर कालीन उद्योग पर भी पड़ा. इससे निर्यात आंकड़े मे 4.08 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी. मंदी की काली छाया न छटने के कारण वित्तिय वर्ष 2008-09 में भारतीय कालीन उद्योग पर इसका व्यापक असर देखने को मिला था, जिससे निर्यात आंकड़ा धड़ाम से गिरा तो उद्योग को 23.15 फीसदी का नुकसान हुआ था. हालांकि बाद में अमेरिका सहित विश्व बाजार मे आई तरलता से भारतीय कालीन उद्योग की सेहत में सुधार हुई. समय के साथ लोगों ने इस कारोबार में भाग्य आजमाना फिर से शुरु कर दिया. वैसे अब देखा जाए तो निर्यात आंकड़े में प्रतिवर्ष ग्रोथ हो रहा है. कोविड के कारण दो वर्ष उद्योग को नुकसान उठाने पड़े. इसकी भी वजह से जिस रफ्तार के साथ निर्यात आंकड़ा बढ़ना चाहिए था. उस अनुपात में वह नहीं बढ़ पाया.

पिछले 5 सालों के कालीन निर्यात का आंकड़ा
2015-16 में 11299.73
2016-17 में 11895.17
2017-18 में 11028.05
2018-19 में 12364.69
2019-20 में 11799.46
2020-21 में 13810.41 करोड़ रुपए का निर्यात हुआ है.

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