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बदहाल है मगहर का गांधी आश्रम, भूखमरी के कगार पर कर्मचारी

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खादी के सपने को साकार करने के लिए संतकबीरनगर के मगहर में गांधी आश्रम की स्थापना की गई थी. आज सरकार की उदासीनता के चलते यही आश्रम अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. गांधी आश्रम की बदहाली और बंदी से कर्मचारी भुखमरी के शिकार हैं.

बदहाल है मगहर का गांधी आश्रम
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Published : Feb 2, 2019, 8:10 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:22 PM IST

संतकबीरनगर : 'खादी वस्त्र नहीं, विचार है' राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इस सपने को साकार करने के लिए आजाद भारत में खादी वस्त्रों के निर्माण के लिए गांधी आश्रम की स्थापना गई थी. वहीं जिले के मगहर में महात्मा गांधी के सपने को साकार करने और हुनर्मंड को काम देने के मकसद से 60 के दशक में स्थापित गांधी आश्रम लोगों की रोजी रोटी का साधन था, लेकिन आज यह अपनी बदहाली पर रोने को मजबूर है.

बदहाल है मगहर का गांधी आश्रम
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इस गांधी आश्रम को बनाने की सोच भी सही दिशा में जा रही थी. 80 के दशक तक खादी आश्रमों की रौनक देखने लायक थी. इसके बाद सरकार की दूरदर्शिता और उदासीनता के चलते यही आश्रम अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. यहां काम कर रहे सैकड़ों कर्मचारियों और बुनकरों की जिंदगी बेनूर और बेजार है. गांधी आश्रम की बदहाली और बंदी से कर्मचारी भूखमरी के शिकार हैं.


एक वक्त था जब इस गांधी आश्रम में लगभग तीन हजार कर्मचारी थे, लेकिन अब सिर्फ उनकी संख्या 27 रह गई है. यह गांधी आश्रम एक चैरिटेबल ट्रस्ट से चलाया जा रहा था. यहां खादी से बने कपड़े, अगरबत्ती, साबुन और अन्य सामानों का उत्पादन होता था, लेकिन आज सरकारी उदासीनता के चलते यहां पर पड़ी तमाम मशीनें जंग खा रहे हैं.

संतकबीरनगर : 'खादी वस्त्र नहीं, विचार है' राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इस सपने को साकार करने के लिए आजाद भारत में खादी वस्त्रों के निर्माण के लिए गांधी आश्रम की स्थापना गई थी. वहीं जिले के मगहर में महात्मा गांधी के सपने को साकार करने और हुनर्मंड को काम देने के मकसद से 60 के दशक में स्थापित गांधी आश्रम लोगों की रोजी रोटी का साधन था, लेकिन आज यह अपनी बदहाली पर रोने को मजबूर है.

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इस गांधी आश्रम को बनाने की सोच भी सही दिशा में जा रही थी. 80 के दशक तक खादी आश्रमों की रौनक देखने लायक थी. इसके बाद सरकार की दूरदर्शिता और उदासीनता के चलते यही आश्रम अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. यहां काम कर रहे सैकड़ों कर्मचारियों और बुनकरों की जिंदगी बेनूर और बेजार है. गांधी आश्रम की बदहाली और बंदी से कर्मचारी भूखमरी के शिकार हैं.


एक वक्त था जब इस गांधी आश्रम में लगभग तीन हजार कर्मचारी थे, लेकिन अब सिर्फ उनकी संख्या 27 रह गई है. यह गांधी आश्रम एक चैरिटेबल ट्रस्ट से चलाया जा रहा था. यहां खादी से बने कपड़े, अगरबत्ती, साबुन और अन्य सामानों का उत्पादन होता था, लेकिन आज सरकारी उदासीनता के चलते यहां पर पड़ी तमाम मशीनें जंग खा रहे हैं.

Intro:संतकबीरनगर
एंकर
खादी वस्त्र नहीं विचार है शायद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इसी सपने को साकार करने के लिए आजाद भारत में खादी वस्त्रों के निर्माण के लिए गांधी आश्रम की स्थापना इस उद्देश्य के साथ शुरू की गई थी जिसके चलते एक तरफ जहां राष्ट्रपिता गांधी के सपने सच होते तो दूसरी तरफ से करो बेरोजगारों को रोजगार भी मिलता था इन्हीं में से एक है संत कबीर नगर जिले में स्थित मगर का गांधी आश्रम गांधी के स्वाभिमान व स्वदेशी के सपने को साकार करने और हुनर्मंड हाथों को काम देने के मकसद से 60 के दशक में स्थापित या गांधी आश्रम लोगों की रोजी रोटी का साधन था लेकिन आज यह अपनी बदहाली पर रोने को मजबूर है


Body:वी.ओ1
इस गांधी आश्रम को बनाने की सोच भी सही दिशा में जा रही थी और 80 के दशक तक खादी आश्रमों की रौनक देखने लायक थी पर बाद में सरकारों की और दूरदर्शिता और उदासीनता के चलते आज गांधी जी के यही आश्रम अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं और यहां पर काम कर रहे हैं सैकड़ों कर्मचारियों और बुनकरों की जिंदगी बेनूर और बेजार है गांधी आश्रम की बदहाली और बंदी से कर्मचारी भुखमरी के शिकार हैं महीनों से वेतन न मिलने से कर्मचारी सहित उनका पूरा परिवार भुखमरी के कगार पर आ गया है


Conclusion:वी.ओ2
एक वक्त था जब इस गांधी आश्रम में लगभग 3000 कर्मचारी थे लेकिन अब सिर्फ उनकी संख्या 27 रह गई है दरअसल यह गांधी आश्रम एक चैरिटेबल ट्रस्ट के द्वारा चलाए जा रहा था जहां पर खादी से बने कपड़े अगरबत्ती साबुन तथा अन्य सामानों का उत्पादन होता था लेकिन आज सरकारी उदासीनता के चलते यहां पर पड़ी तमाम मशीनें जंग खा रहे हैं इस गांधी आश्रम में काम करने वाले बुनकर आज बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर है अब यह सवाल लाजमी है कि ट्रस्ट और सरकार के बीच फंसे पेज में भला इन कर्मचारियों का क्या दोष है यह वह कर्मचारी है जिनके घर की रोजी रोटी इस गांधी आश्रम से चलती थी लेकिन अब वही कर्मचारी भूखो मरने को मजबूर है भला आज वह अपना दर्द कहे तो कह किस्से उनकी सुनने वाला ना तो ट्रस्ट का कोई अधिकारी है और ना ही शासन-प्रशासन

बाईट-कर्मचारी
इंद्रेश
पीटीसी
गौरव तिवारी
Last Updated : Sep 10, 2020, 12:22 PM IST
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