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रुक गई है खटर-पटर, कैसे होगा गुजर-बसर - हथकघा उद्योग के बुनकर

संत कबीर नगर जिले में हथकरघा उद्योग अपने आप में एक अलग पहचान रखता है, लेकिन सरकार की बेरुखी और प्रशासनिक उपेक्षा के चलते आज हथकरघा उद्योग बदहाली के कगार पर है. यहां के बुनकर रोजी रोटी की संकट से जूझ रहे हैं. सूती वस्त्रों का उद्योग महंगाई और जीएसटी की मार से चौपट होता दिख रहा है.

Handloom day
हथकरघा दिवस.
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Published : Aug 7, 2021, 8:22 PM IST

Updated : Aug 7, 2021, 8:38 PM IST

संत कबीर नगरः 7 अगस्त को बुनकरों को प्रोत्साहन देने के लिए हथकरघा दिवस मनाया जाता है. संत कबीर नगर जिला महापुरुषों की कर्मभूमि के साथ ही साथ पुरातात्विक महत्व को भी खुद में संजोए हुए हैं. साथ ही सूती वस्त्रों के लिए संत कबीर नगर जिला पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान रखता है. यहां के बुनकरों के हाथों के बने कपड़े पूरे भारत के लोग पहनते हैं.

दो दशक पूर्व बुनकरों के हाथों से बने कपड़ों की धूम पूरे पूर्वांचल के साथ ही साथ समूचे देश में लंबे समय तक रही, लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा और बढ़ती हुई महंगाई की मार से अब बुनकरों का कारोबार लगभग बंदी के कगार पर है. महंगाई की मार से हथकरघा उद्योग बेहाल है. पावर लूम की खड़खड़ आहट अब बंद होने के कगार पर है. कभी पावर लूम के कारोबार से आबाद रहा जिला अब बुनकरों की आह से कराह रहा है. पीढ़ियों से हुनरमंद हाथों से लिबास बुनने वाली यह जमात संसाधनों की कमी और सरकार की बेरुखी से तबाह होती दिख रही है.

हथकरघा दिवस.

बढ़ती हुई महंगाई और जीएसटी के संकट ने इस फलते फूलते कारोबार को ऐसी चोट पहुंचाई है कि नई नस्लें इस कारोबार से तौबा कर रही हैं. कारखानों में काम करने वाले सैकड़ों कामगार और बुनकरों की जिंदगी बेनूर सी हो गई है. बुनकर संघ के जिला अध्यक्ष हाजी इमामुद्दीन अंसारी ने बताया कि दो दशक पूर्व जनपद के 250 गांव में हथकरघा से निकलने वाली आवाज हमेशा कानों में गुंजा करती थी.

Handloom industry
हथकरघा उद्योग.

उन्होंने कहा कि सरकार सिर्फ हथकरघा दिवस ही मनाती है, पर बुनकरों को प्रोत्साहन देने के लिए किसी भी सरकार ने कोई जहमत नहीं उठाई. जिससे सूती वस्त्रों का कारोबार अब बंद होने के कगार पर है. यहां के बने कपड़े देश के कोने-कोने में अपनी एक अलग पहचान रखता है, लेकिन बदलते दौर में अब यह उद्योग बाजार में खुद को टिकाए रखने के लिए संघर्ष करता दिख रहा है.

Handloom industry
हथकरघा उद्योग.

इसे भी पढ़ें- संकट में मगहर का गांधी आश्रम, भुखमरी की कगार पर कर्मचारी

बुनकर इलियास अंसारी ने बताया कि सरकार कागजों में ही बुनकरों के लिए योजनाएं चला रही हैं. जमीनी स्तर पर बुनकरों को एक भी लाभ नहीं मिल पा रहा है. सूती वस्त्रों को निर्मित करने वाला संत कबीर नगर जिला खलीलाबाद में अपनी अलग पहचान रखता था. कबीर दास की नगरी में दूर-दूर से व्यापारी कपड़े के लिए आर्डर देने आते थे, लेकिन अब व्यापारी भी इस तरफ अपना रुख नहीं करते दिख रहे हैं. कपड़ा व्यवसाय के क्षेत्र में यह जिला काफी दिनों तक चर्चा में रहा, लेकिन बाद में प्रोत्साहन के अभाव के चलते यहां का हथकरघा उद्योग दम तोड़ने लगा है. उन्होंने सरकार से मांग की है कि जिस तरीके से सरकार हथकरघा दिवस मना रही है. उसी तरीके से बुनकरों के ऊपर ध्यान दिया जाए, ताकि उनका कारोबार फिर से शुरू हो सके.

संत कबीर नगरः 7 अगस्त को बुनकरों को प्रोत्साहन देने के लिए हथकरघा दिवस मनाया जाता है. संत कबीर नगर जिला महापुरुषों की कर्मभूमि के साथ ही साथ पुरातात्विक महत्व को भी खुद में संजोए हुए हैं. साथ ही सूती वस्त्रों के लिए संत कबीर नगर जिला पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान रखता है. यहां के बुनकरों के हाथों के बने कपड़े पूरे भारत के लोग पहनते हैं.

दो दशक पूर्व बुनकरों के हाथों से बने कपड़ों की धूम पूरे पूर्वांचल के साथ ही साथ समूचे देश में लंबे समय तक रही, लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा और बढ़ती हुई महंगाई की मार से अब बुनकरों का कारोबार लगभग बंदी के कगार पर है. महंगाई की मार से हथकरघा उद्योग बेहाल है. पावर लूम की खड़खड़ आहट अब बंद होने के कगार पर है. कभी पावर लूम के कारोबार से आबाद रहा जिला अब बुनकरों की आह से कराह रहा है. पीढ़ियों से हुनरमंद हाथों से लिबास बुनने वाली यह जमात संसाधनों की कमी और सरकार की बेरुखी से तबाह होती दिख रही है.

हथकरघा दिवस.

बढ़ती हुई महंगाई और जीएसटी के संकट ने इस फलते फूलते कारोबार को ऐसी चोट पहुंचाई है कि नई नस्लें इस कारोबार से तौबा कर रही हैं. कारखानों में काम करने वाले सैकड़ों कामगार और बुनकरों की जिंदगी बेनूर सी हो गई है. बुनकर संघ के जिला अध्यक्ष हाजी इमामुद्दीन अंसारी ने बताया कि दो दशक पूर्व जनपद के 250 गांव में हथकरघा से निकलने वाली आवाज हमेशा कानों में गुंजा करती थी.

Handloom industry
हथकरघा उद्योग.

उन्होंने कहा कि सरकार सिर्फ हथकरघा दिवस ही मनाती है, पर बुनकरों को प्रोत्साहन देने के लिए किसी भी सरकार ने कोई जहमत नहीं उठाई. जिससे सूती वस्त्रों का कारोबार अब बंद होने के कगार पर है. यहां के बने कपड़े देश के कोने-कोने में अपनी एक अलग पहचान रखता है, लेकिन बदलते दौर में अब यह उद्योग बाजार में खुद को टिकाए रखने के लिए संघर्ष करता दिख रहा है.

Handloom industry
हथकरघा उद्योग.

इसे भी पढ़ें- संकट में मगहर का गांधी आश्रम, भुखमरी की कगार पर कर्मचारी

बुनकर इलियास अंसारी ने बताया कि सरकार कागजों में ही बुनकरों के लिए योजनाएं चला रही हैं. जमीनी स्तर पर बुनकरों को एक भी लाभ नहीं मिल पा रहा है. सूती वस्त्रों को निर्मित करने वाला संत कबीर नगर जिला खलीलाबाद में अपनी अलग पहचान रखता था. कबीर दास की नगरी में दूर-दूर से व्यापारी कपड़े के लिए आर्डर देने आते थे, लेकिन अब व्यापारी भी इस तरफ अपना रुख नहीं करते दिख रहे हैं. कपड़ा व्यवसाय के क्षेत्र में यह जिला काफी दिनों तक चर्चा में रहा, लेकिन बाद में प्रोत्साहन के अभाव के चलते यहां का हथकरघा उद्योग दम तोड़ने लगा है. उन्होंने सरकार से मांग की है कि जिस तरीके से सरकार हथकरघा दिवस मना रही है. उसी तरीके से बुनकरों के ऊपर ध्यान दिया जाए, ताकि उनका कारोबार फिर से शुरू हो सके.

Last Updated : Aug 7, 2021, 8:38 PM IST
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