संभल: ऐतिहासिक नगरी के नाम से प्रसिद्ध संभल जनपद अपने आप में धार्मिक महत्व रखता है. जिले के ग्राम कमलपुर सराय में पांच हजार दो सौ वर्ष पुराना मंदिर और कदम्ब का वृक्ष है. कदम्ब का वृक्ष धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. यह भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़ा हुआ है. गोपाल ईश्वर महादेव मंदिर के अंदर स्थित इस वृक्ष के बारे में मंदिर के स्वामी ने क्या कहा, पढ़िये ये रिपोर्ट...
भगवान श्रीकृष्ण ने इसी वृक्ष के नीचे विश्राम किया
मंदिर के स्वामी जी ने बताया कि मान्यता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी का हरण करने गए तो रुक्मिणी का भाई रुक्मी उनके पीछे पड़ गया. रुक्मी अपनी बहन रुक्मिणी को श्रीकृष्ण के साथ नहीं जाने दे रहा था. इस वजह से भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मी के बीच युद्ध हुआ. यह युद्ध सुबह से शाम तक चला. अंत में इस युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण की विजय हुई. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण कुंदनपुर होते हुए संभल की ओर आ गए और इसी कदम्ब के वृक्ष के नीचे विश्राम किया.
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण जब कदम्ब के वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे तो रुक्मिणी ने उनसे संभल ले आने का कारण पूछा. श्रीकृष्ण ने कहा कि इसके पीछे के दो रहस्य हैं. पहला कि एक बड़ा युद्ध टल गया और रात्रि में विश्राम करने के लिए एक उचित स्थान मिल गया. दूसरी बात कि कलयुग में वह इसी संभल में कल्कि अवतार में आएंगे. इसी वजह से वह रुक्मिणी को संभल लेकर आए हैं.
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बताया जाता है कि श्रीमद्भगवद्गीता में भी संभल स्थित इस कदम्ब के वृक्ष और गोपाल ईश्वर महादेव मंदिर के महत्व का वर्णन किया गया है. एक बार कृष्ण भगवान ने भगवान ब्रह्मा को बुलवाया और कहा कि वे संभल आए हैं. इसके सत्यापन और प्रमाण के लिए यहां पर उनके नाम का मंदिर बनवाएं. ब्रह्माजी को गोपालेश्वर महादेव की स्थापना करने के लिए कहा. ब्रह्माजी ने एक दिन में ही शिव मंदिर (गोपालेश्वर महादेव मंदिर) और तीर्थ की स्थापना की और भव्य मंदिर बनाया.
पांच हजार दो सौ वर्ष पुराने कदम्ब के वृक्ष की महिमा अपार है. इस वृक्ष के बारे में मंदिर के पुजारी ने बताया कि इसी वृक्ष के नीचे बैठकर जो भी संकल्प लिया जाता है, या प्रार्थना या मन्नत मांगी जाती है, वह अवश्य पूरी होती है.