सहारनपुर: महाराष्ट्र में कोरोना वायरस से मरने वाले लोगों के शवों को दफनाने के खिलाफ दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर जहां इस्लाम से जुड़े लोगों ने राहत की सांस ली है. वहीं धर्म गुरुओं ने खुशी जाहिर की है.
जमीयत उलमा-ए-हिंद राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बहुत ही सराहनीय है. इस फैसले का सभी मुसलमानों को स्वागत करना चाहिए.
बांद्रा सुन्नी कब्रिस्तान ने कोर्ट में किया इसका विरोध
मुंबई के उपनगर बांद्रा निवासी प्रदीप गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कोरोना से मरने वाले लोगों के शवों को दफनाने की बजाए जलाने की याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ता के मुताबिक कब्रिस्तानों में शवों को दफनाने से इलाके में कोरोना वायरस के फैलने का खतरा बना रहता है. वहीं जमीयत उलमा-ए-हिंद महाराष्ट्र और बांद्रा सुन्नी कब्रिस्तान ने कोर्ट में इसका विरोध किया.
याचिका को इस्लाम विरुद्ध मानते हुए कर दिया गया खारिज
दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को इस्लाम विरुद्ध मानते हुए खारिज कर दिया. इस पर जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मुसलमानों ने राहत की सांस ली है. मौलाना अरशद मदनी का कहना है कि कोरोना से मरने वालों के शवों को पहले बीएमसी ने जलाने को कहा था, लेकिन विरोध के बाद उसने अपने आदेश में परिवर्तन कर कर याचिका को खारिज कर दिया है.
दफनाने पर विवाद खड़ा करना दुरुस्त नहीं
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि अल्लाह ने जमीन को ऐसी ताकत दी है कि हर चीज को नष्ट कर देती है. इस्लाम में कब्र इस प्रकार से बनाने का आदेश दिया गया है कि मृतक के अंदर दफन करने के बाद जो परिवर्तन आते हैं वह बाहर न आ सकें. उन्होंने कहा कि कोरोना से मरने वालों की तदफीन डब्ल्यूएचओ और अन्य स्वास्थ्य संगठनों की गाइडलाइन के मुताबिक ही की जा रही है. इसलिए इस पर विवाद खड़ा करना दुरुस्त नहीं है.