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शहद उत्पादन में एशिया में नम्बर 1 बना सहारनपुर मंडल - honey production hub

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में इस बार सबसे ज्यादा शहद का उत्पादन हुआ है. इस साल 600 क्विंटल से ज्यादा शहद विदेशों में निर्यात किया गया है. यही वजह है कि सहारनपुर अब न सिर्फ शहद उत्पादन का हब बन चुका है. बल्कि मौन पालन के क्षेत्र में एशिया का नम्बर वन मंडल भी बन गया है.

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शहद उत्पादन में एशिया में नम्बर 1 पर है सहारनपुर.
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Published : Feb 3, 2020, 5:29 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST

सहारनपुर: जिला अब सिगरेट फैक्ट्री और स्टार पेपर मिल से ही नहीं शहद उत्पादन से भी अपनी पहचान बना रहा है. मंडल के तीनों जिलों से 600 क्विंटल से ज्यादा शहद का विदेशों में निर्यात किया जा रहा है. इसी के चलते एशिया का नम्बर वन मंडल बन गया है.

शहद उत्पादन में एशिया में नम्बर 1 है सहारनपुर.
2020 में सहारनपुर मंडल ने एक और रिकार्ड अपने नाम कर लिया है. शहद उत्पादन एवं मौन पालन के क्षेत्र में सहारनपुर मंडल ने एशिया में पहला स्थान प्राप्त कर लिया है. उपनिदेशक उद्यान डॉ. राजेश प्रसाद ने बताया कि मौन पालन की शुरुआत उद्यानिक फसलों के रूप में हुई थी. क्योंकि परागण की प्रक्रिया में मधुमक्खियों की अहम भूमिका रहती है. इसके लिए उद्यान विभाग की ओर से कई योजनाएं भी चलाई गई हैं.

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शहद उत्पादन को किसानों ने बनाया रोजगार
मधुमक्खियों से जो शहद उत्पादन हुआ उससे किसानों को लाभ मिलने लगा है, जिसके बाद किसानों ने इसे एक रोजगार के रूप में अपना लिया है. वहीं उद्यान विभाग की ओर से मौन पालन का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया. डॉ. राजेश ने बताया कि प्रदेश में सबसे ज्यादा प्रशिक्षण सहारनपुर में ही दिए जाते हैं, जिसका मुख्य कारण यहां का वातावरण और उत्तराखंड के पहाड़ का निकट होना है. मौन पालन के लिए सरसों, युकेलिप्टस, लीची समेत अन्य फूलों की फसल भी इस इलाके में होती है और मधुमक्खियां इन फूलों से रस लेकर शहद बनाती हैं.

छात्र-छात्राओं ने भी मौन पालन को बनाया रोजगार
जिले में जब मौन पालन का प्रशिक्षण दिया जाने लगा तो पहले कुछ ही किसान आये, लेकिन जब शहद उत्पादन से उन किसानों को आमदनी हुई तो किसानों के साथ छात्र-छात्राओं ने भी इसे एक रोजगार के रूप में अपना लिया. वर्तमान में यहां मौन पालन के लिए दो तरह के प्रशिक्षण दिये जा रहे हैं, एक 45 दिन का दूसरा 90 दिन का. हालांकि ज्यादातर प्रशिक्षु एक सप्ताह की क्लास में ही प्रशिक्षण ले रहे हैं. कुल मिलाकर मंडल सहारनपुर के तीनों जिलों में 10 हजार से ज्यादा किसान एवं छात्र-छात्राएं मौन पालन का प्रशिक्षण ले रहे हैं.


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सहारनपुर में मौन पालकों के लिए प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाई गई है. जहां हर साल सेकड़ों क्विंटल शहद का उत्पादन किया जाता है, लेकिन इस बार सहारनपुर मंडल में सबसे न्यादा शहद का उत्पादन हुआ है. इस साल 600 क्विंटल से ज्यादा शहद विदेशों में निर्यात किया गया.
-डॉ. राजेश प्रसाद, उपनिदेशक उद्यान

सहारनपुर: जिला अब सिगरेट फैक्ट्री और स्टार पेपर मिल से ही नहीं शहद उत्पादन से भी अपनी पहचान बना रहा है. मंडल के तीनों जिलों से 600 क्विंटल से ज्यादा शहद का विदेशों में निर्यात किया जा रहा है. इसी के चलते एशिया का नम्बर वन मंडल बन गया है.

शहद उत्पादन में एशिया में नम्बर 1 है सहारनपुर.
2020 में सहारनपुर मंडल ने एक और रिकार्ड अपने नाम कर लिया है. शहद उत्पादन एवं मौन पालन के क्षेत्र में सहारनपुर मंडल ने एशिया में पहला स्थान प्राप्त कर लिया है. उपनिदेशक उद्यान डॉ. राजेश प्रसाद ने बताया कि मौन पालन की शुरुआत उद्यानिक फसलों के रूप में हुई थी. क्योंकि परागण की प्रक्रिया में मधुमक्खियों की अहम भूमिका रहती है. इसके लिए उद्यान विभाग की ओर से कई योजनाएं भी चलाई गई हैं.

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शहद उत्पादन को किसानों ने बनाया रोजगार
मधुमक्खियों से जो शहद उत्पादन हुआ उससे किसानों को लाभ मिलने लगा है, जिसके बाद किसानों ने इसे एक रोजगार के रूप में अपना लिया है. वहीं उद्यान विभाग की ओर से मौन पालन का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया. डॉ. राजेश ने बताया कि प्रदेश में सबसे ज्यादा प्रशिक्षण सहारनपुर में ही दिए जाते हैं, जिसका मुख्य कारण यहां का वातावरण और उत्तराखंड के पहाड़ का निकट होना है. मौन पालन के लिए सरसों, युकेलिप्टस, लीची समेत अन्य फूलों की फसल भी इस इलाके में होती है और मधुमक्खियां इन फूलों से रस लेकर शहद बनाती हैं.

छात्र-छात्राओं ने भी मौन पालन को बनाया रोजगार
जिले में जब मौन पालन का प्रशिक्षण दिया जाने लगा तो पहले कुछ ही किसान आये, लेकिन जब शहद उत्पादन से उन किसानों को आमदनी हुई तो किसानों के साथ छात्र-छात्राओं ने भी इसे एक रोजगार के रूप में अपना लिया. वर्तमान में यहां मौन पालन के लिए दो तरह के प्रशिक्षण दिये जा रहे हैं, एक 45 दिन का दूसरा 90 दिन का. हालांकि ज्यादातर प्रशिक्षु एक सप्ताह की क्लास में ही प्रशिक्षण ले रहे हैं. कुल मिलाकर मंडल सहारनपुर के तीनों जिलों में 10 हजार से ज्यादा किसान एवं छात्र-छात्राएं मौन पालन का प्रशिक्षण ले रहे हैं.


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सहारनपुर में मौन पालकों के लिए प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाई गई है. जहां हर साल सेकड़ों क्विंटल शहद का उत्पादन किया जाता है, लेकिन इस बार सहारनपुर मंडल में सबसे न्यादा शहद का उत्पादन हुआ है. इस साल 600 क्विंटल से ज्यादा शहद विदेशों में निर्यात किया गया.
-डॉ. राजेश प्रसाद, उपनिदेशक उद्यान

Intro:सहारनपुर : उत्तर प्रदेश का सहारनपुर मंडल सिगरेट फैक्ट्री और स्टार पेपर मिल से ही नही अब शहद उत्पादन क्षेत्र में भी एशिया में नम्बर वन बन चुका है। मंडल के तीनों जिलों से न सिर्फ 600 किवंटल से ज्यादा शहद का विदेशों में निर्यात किया जा रहा है बल्कि मौन पालन के लिए 10 हजार से ज्यादा लोग प्रशिक्षण ले रहे है। खास बात ये है कि मौन पालन क्षेत्र में किसान ही नही अब छात्र भी प्रशिक्षण ले रहे हैं। जिसके चलते मौन पालन एवं शहद उत्पादन ने लघु एवं घरेलू उधोग का रूप ले लिया है। उप निदेशक उधान ने ईटीवी भारत पर EXCLUSIVE जानकारी देते हुए बताया कि सहारनपुर मंडल में सबसे ज्यादा शहद उत्पादन हो रहा है। जिसके चलते एशिया में नम्बर वन पर आ गया है।


Body:VO 1 - आपको बता दें कि सहारनपुर मंडल शहद उत्पादन का हब बन चुका है। 2020 में सहारनपुर मंडल ने एक ओर रिकार्ड अपने नाम कर लिया है। शहद उत्पादन एवं मौन पालन के क्षेत्र में सहारनपुर मंडल ने एशिया में अव्वल स्थान प्राप्त कर लिया है। ईटीवी भारत से EXCLUSIVE बातचीत में उपनिदेशक उधान डॉ राजेश प्रसाद ने जहां मौन पालन एवं सहारनपुर की इस उपलब्धि पर विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि मौन पालन की शुरूआत उद्यानिक फसलों के रूप में हुई थी। क्योंकि प्रागरण की प्रक्रिया में मधु मक्खियों की अहम भूमिका रहती है। यही वजह है कि इसकी शुरुआत किसानों के यहां हुई थी ताकि प्रागरण करके ज्यादा से ज्यादा पैदावार ली जा सके। इसके लिए उद्यान विभाग की ओर से कई योजनाएं भी चलाई हुई है।

कालान्तर में मधु मक्खियों से जो शहद उत्पादन हुआ उससे किसानों को लाभ मिलने लगा है। जिसके बाद किसानों ने इसे एक रोजगार के रूप में अपना लिया। वहीँ उद्यान विभाग की ओर से मौन पालन के प्रशिक्षण देने शुरू कर दिए। डॉ राजेश ने बताया कि प्रदेश में सबसे ज्यादा प्रशिक्षण सहारनपुर में ही दिए जाते है। जिसका मुख्य कारण यहां का वातावरण और उत्तराखंड की पहाड़ का निकटम होना है। मौन पालन के लिए सरसो, युकेलिप्टस, लीची समेत अन्य फूलों की फसल भी इस इलाके में होती है और मधु मक्खियां इन फूलों से रस लेकर शहद बनाती है। डॉ राजेश के मुताबिक पहाड़ पास होने की वजह से मौन पालन का स्कोप बढ़ा है।

उन्होंने बताया कि सहारनपुर में जब मौन पालन का प्रशिक्षण दिया जाने लगा तो पहले कुछ ही किसान आये लेकिन जब शहद उत्पादन से उन किसानों को आमदनी हुई तो किसानों के साथ छात्र छात्राओं ने भी इसे एक रोजगार के रूप में अपना लिया। वर्तमान में यहां मौन पालन के लिए दो तरह के प्रशिक्षण दिये जा रहे है। एक 45 दिन का दूसरा 90 दिन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हालांकि ज्यादातर प्रशिक्षु एक सप्ताह की क्लास में ही प्रशिक्षण ले रहे है। कुल मिलाकर मंडल सहारनपुर के तीनों जिलों में 10 हजार से ज्यादा किसान एवं छात्र छात्राएं मौन पालन का प्रशिक्षण ले रहे है।

खास बात ये है कि सहारनपुर में मौन पालकों के लिए प्रोसेसिक यूनिट भी लगाई गई है। जहां हर साल में सेकड़ो किवंटल शहद का उत्पादन किया जाता है। लेकिन इस बार सहारनपुर मंडल में सबसे न्यादा शहद का उत्पादन हुआ है। इस साल 600 किवंटल से ज्यादा शहद विदेशों में निर्यात किया गया। जो भारत के अन्य मंडलों की उत्पादन क्षमता से बहुत ज्यादा बताया जा रहा है। यही वजह है कि सहारनपुर अब न सिर्फ शहद उत्पादन का हब बन चुका है बल्कि मौन पालन के क्षेत्र में एशिया का नम्बर वन मंडल भी बन गया है। स्थानीय किसानों ने मौन पालन को लघु एवं घरेलू उद्योग के रूप में अपना लिया है। जिससे किसानों एवं मौन पालकों को शहद बेचकर अच्छी खासी आमदनी हो रही है।

बाईट - डॉ राजेश प्रसाद ( उपनिदेशक उद्यान )


Conclusion:रोशन लाल सैनी
सहारनपुर
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Last Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST
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