सहारनपुर : एक ओर जहां प्रधानमंत्री मोदी देश को डिजिटल इंडिया बनाने के दावे कर रहे हैं, वहीं दैवीय भाषा संस्कृत का अस्तित्व खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है. दक्षिणी देशों की सभ्यता के चलते संस्कृत भाषा के साथ देश की संस्कति भी विलुप्त होती जा रही है. हालांकि संस्कृत एवं संस्कृति को बचाने के लिए संस्कृत से जुड़े लोग अभियान चलाने की बात कर रहे हैं.
उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. प्रेम सिंह ने मीडिया से बातचीत में बताया कि मानव जाति को बचाना है तो संस्कृत एवं संस्कृति को बचाना होगा. अंग्रेजों ने भारतवर्ष पर राज करने के लिए संस्कृत भाषा को खत्म करने कोशिश की थी. युवाओं को संस्कृत भाषा को बचाने के लिए आगे आना होगा. संस्कृत भाषा को अंग्रेजी से ज्यादा महत्व देने की जरूरत है.
नासा के अधिकारी भी ग्रंथों को लेकर कर रहे शोध
शासन-प्रशासन में बैठे लोगों को संस्कृत भाषा को गंभीरता से लेकर विचार करना चाहिए. उनको केवल इसलिए विचार नहीं करना चाहिए कि यह भारत की बात है, जबकि सारी दुनिया के देशों में संस्कृत को पढ़ाया जा रहा है. विश्व की जो सबसे प्रसिद्ध संस्था नासा ने पानीनी गैलरी के नाम से बहुत बड़े विश्वविद्यालय की तरह संस्कृत परिसर बनाया हुआ है. नासा के अधिकारी संस्कृत के ग्रंथों को लेकर रिसर्च कर रहे हैं. उनका मानना है कि आगे जो कुछ भी खोजने के लिए बचा है वह संस्कृत भाषा के माध्यम से और संस्कृत भाषा में लिखे हुए ग्रन्थ एवं विभिन्न विषयों के ज्ञान और विज्ञान पर है, उनमें से ही खोज पाएंगे. नासा अधिकारियों का मानना है कि अब तक जितनी भी रिसर्च हुई है उनका मूल स्रोत संस्कृत के ग्रंथ में रहा है.
संस्कृत ने दुनिया को श्रेष्ठ बनाने का कार्य किया
संस्कृत का अस्तित्व इतनी जल्दी खतरे में तो नहीं जाएगा, क्योंकि संस्कृत के अस्तित्व के खतरे का मतलब है संपूर्ण मानवता का अस्तित्व खतरे में है, इसलिए यदि मानवता को सुरक्षित बचाना है तो संस्कृत को बचाना पड़ेगा. एक मात्र संस्कृत ही ऐसी भाषा है जिसने पूरी दुनिया को श्रेष्ठ बनाने का काम किया है. संस्कृत में ही "वासुदेव विकुटुंबकम" सारी दुनिया परिवार है. संस्कृत में ही गेयु शांति, आकाश में शांति, अंतरिक्ष शांति, पृथ्वी में शांति, तापे जलम शांति के श्लोक हैं. इतना ही नहीं पर्यावरण का प्रदूषण का सबसे बड़ा संकट है, उसका निदान भी संस्कृत के ग्रथों में है.
- संस्कृत विश्व की सब जातियों की भाषा है और उसको पढ़ने-पढ़ाने से कोई भी नहीं रोक सकता.
- बीएचयू में फिरोज खान को जॉइनिंग मेरी व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर मेरा मानना है कि यह विवाद जिस रूप में सामने आ रहा है वास्तव में उस रूप में नहीं है.
- पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने बीएचयू की स्थापना की.
- उसमें एक विभाग बनाया संस्कृत एवं भाषा विज्ञान एवं धर्म विज्ञान संकाय.
- उसमें संस्कृत साहित्य और संस्कृत व्याकरण भी पढ़ाया जाता है.
- वहां संस्कृत भाषा भी पढ़ाई की जाती है. इसके साथ-साथ वेदों के अनुसार कर्मकांड कैसे करना चाहिए.
- पूजा-पाठ कैसे करना चाहिए, हवन कैसे करना चाहिए.
संस्कृत एवं भाषा विज्ञान एवं धर्म विज्ञान संकाय विभाग में से संस्कृत साहित्य व्याकरण को पढ़ाने का काम किसी जाति, धर्म का व्यक्ति कर सकता है, लेकिन फिरोज खान दूसरे समुदाय से होने के चलते हिन्दू कर्मकांडों को नहीं कर सकता. उस पर सवाल उठने लाज़मी हैं. मुस्लिम होने के चलते फिरोज खान हिन्दू आस्था के हिसाब से सफल नहीं हो पाएगा. यही वजह है कि हिन्दू विश्वविद्यालय में केवल हिन्दू समुदाय के व्यक्ति को ही अध्यापन कार्य की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, जिससे यह विवाद ही नहीं खड़ा होता.
-डॉ. प्रेम सिंह, उपाध्यक्ष, संस्कृत अकादमी उत्तराखंड