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सहारनपुर : जानिए क्यों विलुप्त हो रही प्राचीनतम भाषा संस्कृत

पीएम मोदी और सीएम योगी देश को डिजिटल इंडिया बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इस डिजिटल इंडिया के चक्कर में हम सभी लोग अपनी संस्कृत भाषा को भूल रहे है. इस पर संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. प्रेम सिंह का कहना है कि शासन-प्रशासन में बैठे लोगों को संस्कृत भाषा को गंभीरता से लेकर विचार करना चाहिए.

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क्यों विलुप्त हो रही है प्राचीनतम भाषा संस्कृत
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Published : Nov 29, 2019, 7:49 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST

सहारनपुर : एक ओर जहां प्रधानमंत्री मोदी देश को डिजिटल इंडिया बनाने के दावे कर रहे हैं, वहीं दैवीय भाषा संस्कृत का अस्तित्व खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है. दक्षिणी देशों की सभ्यता के चलते संस्कृत भाषा के साथ देश की संस्कति भी विलुप्त होती जा रही है. हालांकि संस्कृत एवं संस्कृति को बचाने के लिए संस्कृत से जुड़े लोग अभियान चलाने की बात कर रहे हैं.

उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. प्रेम सिंह ने मीडिया से बातचीत में बताया कि मानव जाति को बचाना है तो संस्कृत एवं संस्कृति को बचाना होगा. अंग्रेजों ने भारतवर्ष पर राज करने के लिए संस्कृत भाषा को खत्म करने कोशिश की थी. युवाओं को संस्कृत भाषा को बचाने के लिए आगे आना होगा. संस्कृत भाषा को अंग्रेजी से ज्यादा महत्व देने की जरूरत है.

जानकारी देते संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष.
संस्कृत भाषा ऐसी भाषा है जिसे देवी-देवता भी बोलते थे. संस्कृत भाषा का प्रचलन बहुत कम हो गया है. इसके पीछे भारत की गुलामी का एक लंबा इतिहास रहा है. भारतवर्ष में बहुत लंबे समय तक बहुत सारे आक्रमणकारी आये, लेकिन भारत कभी गुलाम नहीं हुआ. अंत में जब अंग्रेज भारत आये तो अंग्रेजों ने भारत की संस्कृति और अखंडता को खत्म करने के लिए संस्कृत भाषा के प्रचलन के खिलाफ अभियान चलाया. इतने शक्तिशाली आक्रमणकारियों के बाद भी भारत लंबे समय तक गुलाम नहीं रहा.

नासा के अधिकारी भी ग्रंथों को लेकर कर रहे शोध
शासन-प्रशासन में बैठे लोगों को संस्कृत भाषा को गंभीरता से लेकर विचार करना चाहिए. उनको केवल इसलिए विचार नहीं करना चाहिए कि यह भारत की बात है, जबकि सारी दुनिया के देशों में संस्कृत को पढ़ाया जा रहा है. विश्व की जो सबसे प्रसिद्ध संस्था नासा ने पानीनी गैलरी के नाम से बहुत बड़े विश्वविद्यालय की तरह संस्कृत परिसर बनाया हुआ है. नासा के अधिकारी संस्कृत के ग्रंथों को लेकर रिसर्च कर रहे हैं. उनका मानना है कि आगे जो कुछ भी खोजने के लिए बचा है वह संस्कृत भाषा के माध्यम से और संस्कृत भाषा में लिखे हुए ग्रन्थ एवं विभिन्न विषयों के ज्ञान और विज्ञान पर है, उनमें से ही खोज पाएंगे. नासा अधिकारियों का मानना है कि अब तक जितनी भी रिसर्च हुई है उनका मूल स्रोत संस्कृत के ग्रंथ में रहा है.

संस्कृत ने दुनिया को श्रेष्ठ बनाने का कार्य किया
संस्कृत का अस्तित्व इतनी जल्दी खतरे में तो नहीं जाएगा, क्योंकि संस्कृत के अस्तित्व के खतरे का मतलब है संपूर्ण मानवता का अस्तित्व खतरे में है, इसलिए यदि मानवता को सुरक्षित बचाना है तो संस्कृत को बचाना पड़ेगा. एक मात्र संस्कृत ही ऐसी भाषा है जिसने पूरी दुनिया को श्रेष्ठ बनाने का काम किया है. संस्कृत में ही "वासुदेव विकुटुंबकम" सारी दुनिया परिवार है. संस्कृत में ही गेयु शांति, आकाश में शांति, अंतरिक्ष शांति, पृथ्वी में शांति, तापे जलम शांति के श्लोक हैं. इतना ही नहीं पर्यावरण का प्रदूषण का सबसे बड़ा संकट है, उसका निदान भी संस्कृत के ग्रथों में है.

  • संस्कृत विश्व की सब जातियों की भाषा है और उसको पढ़ने-पढ़ाने से कोई भी नहीं रोक सकता.
  • बीएचयू में फिरोज खान को जॉइनिंग मेरी व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर मेरा मानना है कि यह विवाद जिस रूप में सामने आ रहा है वास्तव में उस रूप में नहीं है.
  • पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने बीएचयू की स्थापना की.
  • उसमें एक विभाग बनाया संस्कृत एवं भाषा विज्ञान एवं धर्म विज्ञान संकाय.
  • उसमें संस्कृत साहित्य और संस्कृत व्याकरण भी पढ़ाया जाता है.
  • वहां संस्कृत भाषा भी पढ़ाई की जाती है. इसके साथ-साथ वेदों के अनुसार कर्मकांड कैसे करना चाहिए.
  • पूजा-पाठ कैसे करना चाहिए, हवन कैसे करना चाहिए.

संस्कृत एवं भाषा विज्ञान एवं धर्म विज्ञान संकाय विभाग में से संस्कृत साहित्य व्याकरण को पढ़ाने का काम किसी जाति, धर्म का व्यक्ति कर सकता है, लेकिन फिरोज खान दूसरे समुदाय से होने के चलते हिन्दू कर्मकांडों को नहीं कर सकता. उस पर सवाल उठने लाज़मी हैं. मुस्लिम होने के चलते फिरोज खान हिन्दू आस्था के हिसाब से सफल नहीं हो पाएगा. यही वजह है कि हिन्दू विश्वविद्यालय में केवल हिन्दू समुदाय के व्यक्ति को ही अध्यापन कार्य की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, जिससे यह विवाद ही नहीं खड़ा होता.
-डॉ. प्रेम सिंह, उपाध्यक्ष, संस्कृत अकादमी उत्तराखंड

सहारनपुर : एक ओर जहां प्रधानमंत्री मोदी देश को डिजिटल इंडिया बनाने के दावे कर रहे हैं, वहीं दैवीय भाषा संस्कृत का अस्तित्व खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है. दक्षिणी देशों की सभ्यता के चलते संस्कृत भाषा के साथ देश की संस्कति भी विलुप्त होती जा रही है. हालांकि संस्कृत एवं संस्कृति को बचाने के लिए संस्कृत से जुड़े लोग अभियान चलाने की बात कर रहे हैं.

उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. प्रेम सिंह ने मीडिया से बातचीत में बताया कि मानव जाति को बचाना है तो संस्कृत एवं संस्कृति को बचाना होगा. अंग्रेजों ने भारतवर्ष पर राज करने के लिए संस्कृत भाषा को खत्म करने कोशिश की थी. युवाओं को संस्कृत भाषा को बचाने के लिए आगे आना होगा. संस्कृत भाषा को अंग्रेजी से ज्यादा महत्व देने की जरूरत है.

जानकारी देते संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष.
संस्कृत भाषा ऐसी भाषा है जिसे देवी-देवता भी बोलते थे. संस्कृत भाषा का प्रचलन बहुत कम हो गया है. इसके पीछे भारत की गुलामी का एक लंबा इतिहास रहा है. भारतवर्ष में बहुत लंबे समय तक बहुत सारे आक्रमणकारी आये, लेकिन भारत कभी गुलाम नहीं हुआ. अंत में जब अंग्रेज भारत आये तो अंग्रेजों ने भारत की संस्कृति और अखंडता को खत्म करने के लिए संस्कृत भाषा के प्रचलन के खिलाफ अभियान चलाया. इतने शक्तिशाली आक्रमणकारियों के बाद भी भारत लंबे समय तक गुलाम नहीं रहा.

नासा के अधिकारी भी ग्रंथों को लेकर कर रहे शोध
शासन-प्रशासन में बैठे लोगों को संस्कृत भाषा को गंभीरता से लेकर विचार करना चाहिए. उनको केवल इसलिए विचार नहीं करना चाहिए कि यह भारत की बात है, जबकि सारी दुनिया के देशों में संस्कृत को पढ़ाया जा रहा है. विश्व की जो सबसे प्रसिद्ध संस्था नासा ने पानीनी गैलरी के नाम से बहुत बड़े विश्वविद्यालय की तरह संस्कृत परिसर बनाया हुआ है. नासा के अधिकारी संस्कृत के ग्रंथों को लेकर रिसर्च कर रहे हैं. उनका मानना है कि आगे जो कुछ भी खोजने के लिए बचा है वह संस्कृत भाषा के माध्यम से और संस्कृत भाषा में लिखे हुए ग्रन्थ एवं विभिन्न विषयों के ज्ञान और विज्ञान पर है, उनमें से ही खोज पाएंगे. नासा अधिकारियों का मानना है कि अब तक जितनी भी रिसर्च हुई है उनका मूल स्रोत संस्कृत के ग्रंथ में रहा है.

संस्कृत ने दुनिया को श्रेष्ठ बनाने का कार्य किया
संस्कृत का अस्तित्व इतनी जल्दी खतरे में तो नहीं जाएगा, क्योंकि संस्कृत के अस्तित्व के खतरे का मतलब है संपूर्ण मानवता का अस्तित्व खतरे में है, इसलिए यदि मानवता को सुरक्षित बचाना है तो संस्कृत को बचाना पड़ेगा. एक मात्र संस्कृत ही ऐसी भाषा है जिसने पूरी दुनिया को श्रेष्ठ बनाने का काम किया है. संस्कृत में ही "वासुदेव विकुटुंबकम" सारी दुनिया परिवार है. संस्कृत में ही गेयु शांति, आकाश में शांति, अंतरिक्ष शांति, पृथ्वी में शांति, तापे जलम शांति के श्लोक हैं. इतना ही नहीं पर्यावरण का प्रदूषण का सबसे बड़ा संकट है, उसका निदान भी संस्कृत के ग्रथों में है.

  • संस्कृत विश्व की सब जातियों की भाषा है और उसको पढ़ने-पढ़ाने से कोई भी नहीं रोक सकता.
  • बीएचयू में फिरोज खान को जॉइनिंग मेरी व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर मेरा मानना है कि यह विवाद जिस रूप में सामने आ रहा है वास्तव में उस रूप में नहीं है.
  • पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने बीएचयू की स्थापना की.
  • उसमें एक विभाग बनाया संस्कृत एवं भाषा विज्ञान एवं धर्म विज्ञान संकाय.
  • उसमें संस्कृत साहित्य और संस्कृत व्याकरण भी पढ़ाया जाता है.
  • वहां संस्कृत भाषा भी पढ़ाई की जाती है. इसके साथ-साथ वेदों के अनुसार कर्मकांड कैसे करना चाहिए.
  • पूजा-पाठ कैसे करना चाहिए, हवन कैसे करना चाहिए.

संस्कृत एवं भाषा विज्ञान एवं धर्म विज्ञान संकाय विभाग में से संस्कृत साहित्य व्याकरण को पढ़ाने का काम किसी जाति, धर्म का व्यक्ति कर सकता है, लेकिन फिरोज खान दूसरे समुदाय से होने के चलते हिन्दू कर्मकांडों को नहीं कर सकता. उस पर सवाल उठने लाज़मी हैं. मुस्लिम होने के चलते फिरोज खान हिन्दू आस्था के हिसाब से सफल नहीं हो पाएगा. यही वजह है कि हिन्दू विश्वविद्यालय में केवल हिन्दू समुदाय के व्यक्ति को ही अध्यापन कार्य की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, जिससे यह विवाद ही नहीं खड़ा होता.
-डॉ. प्रेम सिंह, उपाध्यक्ष, संस्कृत अकादमी उत्तराखंड

Intro:सहारनपुर : एक ओर जहां प्रधानमंत्री मोदी देश को डिजिटल इंडिया बनाने के दावे कर रहे हैं वहीं दैवीय भाषा संस्कृत का अस्तित्व खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है। दक्षिणी देशों की सभ्यता के चलते संस्कृत भाषा के साथ देश की संस्कति भी विलुप्त होती जा रही है। हालांकि संस्कृत एवं संस्कृति को बचाने के लिए संस्कृत से जुड़े लोग अभियान चलाने की बात कर रहे है। उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ प्रेम सिंह ने ईटीवी भारत से EXCLUSIVE बातचीत में बताया कि मानवजाति को बचाना है तो संस्कृत एवं संस्कृति को बचाना होगा। अंग्रेजो ने भारतवर्ष पर राज करने के लिए संस्कृत भाषा को खत्म करने की की थी। युवाओं को संस्कृत भाषा को बचाने के लिए आगे आना होगा। संस्कृत भाषा को अंग्रेजी से ज्यादा महत्व देने की जरूरत है।


Body:VO 1 - उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ प्रेम सिंह ने ईटीवी भारत से EXCLUSIVE बातचीत में बताया कि संस्कृत भाषा ऐसी भाषा है जिसे देवी देवता भी बोलते थे। संस्कृत भाषा का प्रचलन बहुत कम हो गया है। जिसके पीछे भारत की गुलामी एक लंबा इतिहास रहा है। भारतवर्ष में बहुत लंबे समय तक बहुत सारे आक्रमणकारी आये लेकिन भारत कभी गुलाम नही हुआ। अंत में जब अंग्रेज भारत आये तो अंग्रेजों ने भारत की संस्कृति और अखंडता को खत्म करने के लिए संस्कृत भाषा के प्रचलन के खिलाफ अभियान चलाया। जब इतने शक्तिशाली आक्रमणकारियों के बाद भी भारत लंबे समय तक गुलाम नहीं रहा अंग्रेजो को अपना शासन चलाना है। अंग्रेजो ने पूरी ताकत भारतवर्ष की शक्ति और एकता का कारण यहां की संस्कृति है। जो संस्कृत भाषा के कारण है। अंग्रेजो ने संस्कृत के साथ संस्कृति को समाप्त कर शासन किया।

ईटीवी के सवाल पर उन्होंने बताया कि देश का युवा संस्कृत भाषा से अंजान बनता जा रहा है। उनका कहना है कि युवाओं को जैसा वातावरण मिला, जैसे अध्यापक, माता पिता मिले, समाज मिला उससे युवाओं का कोई दोष नही है। लेकिन जब ये युवा बड़े होकर इंजीनियर, डॉक्टर, बड़े अधिकारी बनते है तो तब इनके ध्यान में आता है जो भी उन्हें पढा है उसका मूल पहले से ही संस्कृत भाषा के वेद, ब्राहाम्ण ग्रंथ, उपनिशद, गीता, रामायण आदि मे दिया जा चुका है। लेकिन तब तक पढ़ने की उम्र निकल चुकी होती है।

स्कूल कॉलेजों में संस्कृत नही पढ़ाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि शासन-प्रशासन मे बैठे लोगो को चाहिए कि संस्कृत भाषा को गंभीरता से लेकर विचार करना चाहिए। उनको केवल इसलिए विचार नहीं करना चाहिए कि यह भारत की बात है जबकि सारी दुनिया के विश्व के देशों में संस्कृत को पढ़ाया जा रहा है, विश्व के जो सबसे प्रसिद्ध संस्था नासा ने पानीनी गैलरी के नाम से बहुत बड़े विश्वविद्यालय की तरह संस्कृत परिसर बनाया हुआ है। नसाल कि अधिकारी संस्कृत के ग्रंथों को लेकर रिसर्च कर रहे है। उनका मानना है कि आगे जो कुछ भी खोजने के लिए बचा है वह संस्कृत भाषा के माध्यम से और संस्कृत भाषा में लिखे हुए ग्रन्थ एवं विभिन्न विषयों के ज्ञान और विज्ञान है उनमें से ही खोज पाएंगे। नासा अधिकारियों का मानना है कि अब तक जितनी भी रिसर्च हुई है उनका मूल स्रोत संस्कृत के ग्रंथ में रहा है।

संस्कृत भाषा का अस्तित्व खतरे में जाने के सवाल पर संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष का कहना है कि संस्कृत का अस्तित्व इतनी जल्दी खतरे में तो नही जाएगा। क्योंकि संस्कृत का अस्तित्व खतरे का मतलब है संपूर्ण मानवता का अस्तित्व खतरे में है। इसलिए यदि मानवता को सुरक्षित बचाना है तो संस्कृत को बचाना पड़ेगा। एक मात्र संस्कृत ही ऐसी भाषा है जिसने पूरी दुनिया को श्रेष्ठ बनाने का काम किया है। संस्कृत में ही "वासुदेव विकुटुंबकम"सारी दुनिया परिवार है। संस्कृत में ही गेयु शांति, आकाश में शांति, अंतरिक्ष शांति, पृथ्वी में शांति, तापे जलम शांति के श्लोक है। इतना ही नही पर्यावरण का प्रदूषण का सबसे बड़ा संकट है उसका निदान भी संस्कृत के ग्रथो में है।


बीएचयू में फिरोज खान की जॉइनिंग पर उन्होंने कहना है कि संस्कृत विश्व के सब जातियों की भाषा है और उसको पढ़ने- पढ़ाने से कोई भी नहीं रोक सकता। जहां तक बीएचयू में फिरोज खान को जॉइनिंग का का प्रश्न है मेरी व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर मेरा मानना है कि यह विवाद जिस रूप में सामने आ रहा है वास्तव में उस रूप में नहीं है। उन्होंने कहा कि पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने जब बीएचयू की स्थापना की उन्होंने एक विभाग बनाया संस्कृत एवं भाषा विज्ञान एवं धर्म विज्ञान संकाय। उसमें संस्कृत साहित्य और संस्कृत व्याकरण भी पढ़ाया जाता है। वहां संस्कृत भाषा भी पढ़ाई जाती है इसके साथ-साथ वेदों के अनुसार कर्मकांड कैसे करना चाहिए, पूजा पाठ कैसे करना चाहिए, हवन कैसे करना चाहिए, उस विभाग में से संस्कृत साहित्य व्याकरण को पढ़ाने का काम किसी जाति धर्म का व्यक्ति पढने पढ़ाने का काम कर सकता है। लेकिन फिरोज खान दूसरे समुदाय से होने चलते हिन्दू कर्मकांडो को नही कर सकता। उस पर सवाल उठने लाज़मी हैं। मुस्लिम होने के चलते फिरोज खान हिन्दू आस्था के हिसाब से सफल नही हो पायेगा। यही वजह है कि हिन्दू विश्वविद्यालय में केवल हिन्दू समुदाय के व्यक्ति को ही अध्यापन कार्य को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। जिससे यह विवाद ही नही खड़ा होता।

बाईट - डॉ प्रेम सिंह ( उपाध्यक्ष संस्कृत अकादमी उत्तराखंड )





Conclusion:रोशन लाल सैनी
सहारनपुर
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Last Updated : Sep 17, 2020, 4:21 PM IST
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