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हिजाब मामले में बोले नाराज देवबंदी उलेमा, 'मुसलमान केवल कुरान को मानेगा' - इस्लामिक धर्म गुरु कासमी

कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा हिजाब मामले की याचिका को खारिज किए जाने के बाद इस्लामिक जगत में नई बहस छिड़ गई है. कर्नाटक की छात्रा मुस्कान ने स्कूल कॉलेजों में हिजाब पहनने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. देवबंदी उलेमा मुफ्ती असद कासमी ने कहा मजहब-ए-इस्लाम में पर्दा करना लाजमी ही नहीं बेहद जरूरी भी है.

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मुसलमान केवल कुरान को मानेगा
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Published : Mar 15, 2022, 10:01 PM IST

सहारनपुर. कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा हिजाब मामले की याचिका को खारिज किए जाने के बाद इस्लामिक जगत में नई बहस छिड़ गई है. हिजाब को लेकर मुस्लिम महिलाओं ने खुशी जाहिर की है. वहीं, इस्लामिक धर्म गुरु इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. देवबंदी उलेमा मुफ्ती असद कासमी का कहना है कि मुसलमान केवल शरीयत और कुरान-ए-करीम के नियमों का ही पालन करेगा. कोर्ट के फैसले से हमारा कोई सरोकार नहीं है.

मुसलमान केवल कुरान को मानेगा
कर्नाटक की छात्रा मुस्कान ने स्कूल कॉलेजों में हिजाब पहनने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. मंगलवार को कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है. इसके बाद इस्लामिक जगत में नई बहस छिड़ गई.

यह भी पढ़ें- हिजाब पर मुस्लिम महिलाएं अड़ीं, कह दी यह बात..


देवबंदी उलेमा मुफ्ती असद कासमी ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब पहनने पर फैसला सुनाया है लेकिन मजहब-ए-इस्लाम मे पर्दा करना लाजमी ही नहीं बेहद जरूरी भी है. इस्लाम में पर्दे के बिना कोई युवतियों एवं महिलाओं का घर से निकलना गलत है. हम शरीयत और इस्लाम के बारे में बता दें कि इस्लाम में खुद कुरान-ए-करीम में अल्लाह ने मुस्लिम महिलाओं एवं बच्चियों को पर्दा पहनने का हुक्म दिया है.

उन्होंने आगे कहा, 'सभी मुसलमान कुरान-ए-करीम और शरीयत के नियमों का पालन करते हैं. कर्नाटक कोर्ट का क्या फैसला आया है, उसकी हमें कोई परवाह नहीं है लेकिन जो हमारा मजहब और शरीयत कहता है, हम उस पर अमल करेंगे'.

मुफ्ती असद कासमी ने कहा कि स्कूलों में जो ड्रेस कोड दिया गया है, उसका पालन करना सभी छात्र-छात्राओं के लिए जरूरी है. उनका साफ कहना है कि स्कूलों में दिए गए ड्रेस कोड अपनी जगह सही हैं लेकिन किसी भी छात्रा को हिजाब या पर्दे से रोका जाए तो यह सही नहीं है. हिंदुस्तान का संविधान इस चीज की इजाजत देता है कि हर पुरुष, महिला एवं छात्र-छात्राओं को अपने धर्म के मुताबिक जिंदगी जीने की आजादी है.

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सहारनपुर. कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा हिजाब मामले की याचिका को खारिज किए जाने के बाद इस्लामिक जगत में नई बहस छिड़ गई है. हिजाब को लेकर मुस्लिम महिलाओं ने खुशी जाहिर की है. वहीं, इस्लामिक धर्म गुरु इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. देवबंदी उलेमा मुफ्ती असद कासमी का कहना है कि मुसलमान केवल शरीयत और कुरान-ए-करीम के नियमों का ही पालन करेगा. कोर्ट के फैसले से हमारा कोई सरोकार नहीं है.

मुसलमान केवल कुरान को मानेगा
कर्नाटक की छात्रा मुस्कान ने स्कूल कॉलेजों में हिजाब पहनने को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. मंगलवार को कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है. इसके बाद इस्लामिक जगत में नई बहस छिड़ गई.

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देवबंदी उलेमा मुफ्ती असद कासमी ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब पहनने पर फैसला सुनाया है लेकिन मजहब-ए-इस्लाम मे पर्दा करना लाजमी ही नहीं बेहद जरूरी भी है. इस्लाम में पर्दे के बिना कोई युवतियों एवं महिलाओं का घर से निकलना गलत है. हम शरीयत और इस्लाम के बारे में बता दें कि इस्लाम में खुद कुरान-ए-करीम में अल्लाह ने मुस्लिम महिलाओं एवं बच्चियों को पर्दा पहनने का हुक्म दिया है.

उन्होंने आगे कहा, 'सभी मुसलमान कुरान-ए-करीम और शरीयत के नियमों का पालन करते हैं. कर्नाटक कोर्ट का क्या फैसला आया है, उसकी हमें कोई परवाह नहीं है लेकिन जो हमारा मजहब और शरीयत कहता है, हम उस पर अमल करेंगे'.

मुफ्ती असद कासमी ने कहा कि स्कूलों में जो ड्रेस कोड दिया गया है, उसका पालन करना सभी छात्र-छात्राओं के लिए जरूरी है. उनका साफ कहना है कि स्कूलों में दिए गए ड्रेस कोड अपनी जगह सही हैं लेकिन किसी भी छात्रा को हिजाब या पर्दे से रोका जाए तो यह सही नहीं है. हिंदुस्तान का संविधान इस चीज की इजाजत देता है कि हर पुरुष, महिला एवं छात्र-छात्राओं को अपने धर्म के मुताबिक जिंदगी जीने की आजादी है.

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