सहारनपुरः सगीर अहमद को कश्मीर के पुलवामा में 16 सितंबर की शाम 6 बजे आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. सोमवार सुबह 5.30 बजे सगीर का शव एंबुलेंस से सहारनपुर पहुंचा. करीब 11 बजे दबनी वाले कब्रिस्तान में सगीर को सुपुर्द-ए-खाक किया गया. सुबह ही पुलिस ने पहुंचकर कागजी कार्रवाई की थी. सगीर अपने पीछे चार बेटियों और एक बेटे को छोड़ गए हैं.
सगीर अहमद के भतीजे फैसल ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की वजह से दूसरे प्रदेशों के लोग हर समय दहशत में रहते हैं. पुलवामा में जिले के दस से अधिक लोग लकड़ी का कार्य करते हैं. फैसल ने बताया कि पुलवामा में कार्य करना आसान नहीं है. उन्होंने बताया कि वह भी सगीर के साथ काम करते थे. वह कुछ दिन पहले ही जम्मू-कश्मीर से घर वापस आए थे. फैसल का कहना है कि सहारनपुर में काम न मिलने और परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से वह पुलवामा में काम करने गए थे. कोरोना काल के बाद से जिले में काम मिलना मुश्किल हो गया था. काफी तलाश के बाद पुलवामा में काम मिला था.
पत्नी की कोरोना से हुई थी मौत
सगीर अहमद की पत्नी नफीसा की मौत चार माह पूर्व कोरोना संक्रमण की वजह से हुई थी. उनका बेटा जहांगीर राजस्थान के बाडमेर में लकड़ी कटाई और छिलाई का कार्य करता है. क्षेत्रीय पार्षद मंसूर बदर का कहना है कि मुफलिसी की वजह से लोग जम्मू-कश्मीर और दूसरे राज्यों में नौकरी करने को मजबूर हैं. मंसूर बदर ने बताया कि उनकी 4 बेटियां नजराना (32), आयशा, 25) सीबा (23) और शोबी (20) हैं. इनमें शोबी को छोड़कर बाकी तीनों बेटियों की शादी हो चुकी है. एक बेटा भी है. उसका नाम जहांगीर (30) है. उसकी भी शादी हो चुकी है. वह राजस्थान के वाडमेर में कारपेंटर का काम करता है.
बोली पुत्रियां, सेना ले बदला
सगीर अहमद की बेटियों का पिता की मौत पर रो-रोकर बुरा हाल हो गया. नफीसा, नजाराना और आयशा का कहना है कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता है. नजराना और जहांगीर का कहना है कि भारतीय सेना उनके पिता की मौत का बदला ले. दूसरे राज्यों और जिलों के लोगों को जम्मू-कश्मीर में पूरी सुरक्षा प्रदान की जाए.