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रिटायर्ड सैनिक देवी सिंह ने बताई चीन की सच्चाई, बोले- धोखेबाज चीन को देना चाहिए मुंहतोड़ जवाब

यूपी के सहारनपुर के रहने वाले रिटायर्ड सैनिक देवी सिंह से ईटीवी भारत ने बात की. बातचीत के दौरान उन्होंने चीन और पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि 1962 युद्ध के दौरान वह बंदी बना लिए गए थे. इसके बाद लगभग एक साल तक वह बंदी रहे. भारत-चीन की हिंसक झड़प के बारे में उन्होंने कहा कि चीन हमेशा से ही धोखेबाजी करता आया है.

रिटायर्ड सैनिक देवी सिंह
रिटायर्ड सैनिक देवी सिंह
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Published : Jun 23, 2020, 10:44 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:22 PM IST

सहारनपुर: बीते दिनों गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों में हिंसक झड़प हुई थी. इस झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे. इसके साथ ही चीनी सेना के सैनिक भी मारे गए थे. भारतीय सेना पर चीनी सेना के हमले की यह कोई पहली घटना नहीं है. इससे पहले भी अपनी आदत से मजबूर चीन कई बार धोखा दे चुका है. धोखेबाजी जैसी हरकतें करना उसकी फितरत में है. इसलिए अब जरूरी है कि उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जाए. उसके साथ युद्ध किया जाए और उसे बताया जाए कि भारत किसी भी तरह चीन से कम नहीं है. यह कहना है भारतीय सेना के सेवानिवृत्त जवान देवी सिंह का.

अपनी यादें साझा करते रिटायर्ड सैनिक देवी सिंह.

एक साल तक रहे थे चीन की कैद में
देवी सिंह 1962 में चीन के खिलाफ लड़ाई में भी शामिल हुए थे. सेवानिवृत देवी सिंह न सिर्फ चीन के खिलाफ जंग लड़ चुके हैं, बल्कि 1965 में कारगिल पुंछ दर्रा और बारामुला में पाकिस्तान की सेना से भी लोहा ले चुके हैं. इतना ही नहीं सेवानिवृत देवी सिंह एक साल तक चीन की कैद में रहकर यातनाएं भी सह चुके हैं. ईटीवी भारत ने उनसे बात कर जानी उनकी कहानी.

चीन और पाकिस्तान से युद्ध में हुए थे शामिल
भारतीय सेना से रिटायर देवी सिंह जिले के थाना नकुड़ इलाके के गांव मोहदीनपुर में रहते हैं. आजादी के बाद देवी सिंह ने भारतीय सेना जॉइन की थी. जिसके बाद उन्होंने न सिर्फ पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई में अपना योगदान दिया, बल्कि 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में भी हिस्सा लिया था. इसके बाद 1975 में बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी के साथ भी बांग्लादेश को मुक्त कराने के लिए पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में भी भाग लिया.

चीन की कैद में सही थीं यातनाएं
अपने पुराने दिन याद करते हुए देवी सिंह बताते हैं जब 1962 में वह चीन के खिलाफ जंग लड़ रहे थे, तब उन्होंने नेफा के एरिया में चीन के सैनिकों के साथ युद्ध किया था. इस दौरान उन्हें 11 दिन तक खाना भी नहीं मिला. भूखे-प्यासे रहकर भी भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे. इसी बीच चीनी सैनिकों ने उन्हें घेर कर पकड़ भी लिया था. जिसके बाद तिब्बत की राजधानी लहासा तक उन्हें पैदल ले जाया गया. इससे पहले उन्हें मानसरोवर झील के पास भी रखा गया था. लहासा से उन्हें गाड़ियों में चीन तक ले जाया गया. जहां उन्हें कई तरह की यातनाएं दी गईं.

घरवालों ने मान लिया था मरा
देवी सिंह ने बताया कि चीनी सेना और सरकार ने एक साल तक बंदी बनाये रखा और इसकी जानकारी भारत को नहीं दी थी. इसके चलते उनके परिजनों ने उन्हें मरा हुआ मानकर उनका अंतिम संस्कार और पिंडदान तक कर डाला था, लेकिन एक साल बाद चीनी सरकार ने उन्हें छोड़ा दिया. इसके बाद देवी सिंह अपने देश भारत लौट आये. उनके सकुशल घर आने पर परिजनों में खुशी का माहौल बन गया था.

अपने युद्ध के दिन याद करते हुए देवी सिंह ने बताया कि चीन ने हमेशा से ही हमसे धोखेबाजी की है. चाहे वह आज का समय हो या 1962 का. चीन ने हमेशा ही भारत को धोखा देने का काम किया है. अब ऐसे समय में चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए.

सहारनपुर: बीते दिनों गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों में हिंसक झड़प हुई थी. इस झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे. इसके साथ ही चीनी सेना के सैनिक भी मारे गए थे. भारतीय सेना पर चीनी सेना के हमले की यह कोई पहली घटना नहीं है. इससे पहले भी अपनी आदत से मजबूर चीन कई बार धोखा दे चुका है. धोखेबाजी जैसी हरकतें करना उसकी फितरत में है. इसलिए अब जरूरी है कि उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जाए. उसके साथ युद्ध किया जाए और उसे बताया जाए कि भारत किसी भी तरह चीन से कम नहीं है. यह कहना है भारतीय सेना के सेवानिवृत्त जवान देवी सिंह का.

अपनी यादें साझा करते रिटायर्ड सैनिक देवी सिंह.

एक साल तक रहे थे चीन की कैद में
देवी सिंह 1962 में चीन के खिलाफ लड़ाई में भी शामिल हुए थे. सेवानिवृत देवी सिंह न सिर्फ चीन के खिलाफ जंग लड़ चुके हैं, बल्कि 1965 में कारगिल पुंछ दर्रा और बारामुला में पाकिस्तान की सेना से भी लोहा ले चुके हैं. इतना ही नहीं सेवानिवृत देवी सिंह एक साल तक चीन की कैद में रहकर यातनाएं भी सह चुके हैं. ईटीवी भारत ने उनसे बात कर जानी उनकी कहानी.

चीन और पाकिस्तान से युद्ध में हुए थे शामिल
भारतीय सेना से रिटायर देवी सिंह जिले के थाना नकुड़ इलाके के गांव मोहदीनपुर में रहते हैं. आजादी के बाद देवी सिंह ने भारतीय सेना जॉइन की थी. जिसके बाद उन्होंने न सिर्फ पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई में अपना योगदान दिया, बल्कि 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में भी हिस्सा लिया था. इसके बाद 1975 में बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी के साथ भी बांग्लादेश को मुक्त कराने के लिए पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में भी भाग लिया.

चीन की कैद में सही थीं यातनाएं
अपने पुराने दिन याद करते हुए देवी सिंह बताते हैं जब 1962 में वह चीन के खिलाफ जंग लड़ रहे थे, तब उन्होंने नेफा के एरिया में चीन के सैनिकों के साथ युद्ध किया था. इस दौरान उन्हें 11 दिन तक खाना भी नहीं मिला. भूखे-प्यासे रहकर भी भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे. इसी बीच चीनी सैनिकों ने उन्हें घेर कर पकड़ भी लिया था. जिसके बाद तिब्बत की राजधानी लहासा तक उन्हें पैदल ले जाया गया. इससे पहले उन्हें मानसरोवर झील के पास भी रखा गया था. लहासा से उन्हें गाड़ियों में चीन तक ले जाया गया. जहां उन्हें कई तरह की यातनाएं दी गईं.

घरवालों ने मान लिया था मरा
देवी सिंह ने बताया कि चीनी सेना और सरकार ने एक साल तक बंदी बनाये रखा और इसकी जानकारी भारत को नहीं दी थी. इसके चलते उनके परिजनों ने उन्हें मरा हुआ मानकर उनका अंतिम संस्कार और पिंडदान तक कर डाला था, लेकिन एक साल बाद चीनी सरकार ने उन्हें छोड़ा दिया. इसके बाद देवी सिंह अपने देश भारत लौट आये. उनके सकुशल घर आने पर परिजनों में खुशी का माहौल बन गया था.

अपने युद्ध के दिन याद करते हुए देवी सिंह ने बताया कि चीन ने हमेशा से ही हमसे धोखेबाजी की है. चाहे वह आज का समय हो या 1962 का. चीन ने हमेशा ही भारत को धोखा देने का काम किया है. अब ऐसे समय में चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए.

Last Updated : Sep 17, 2020, 4:22 PM IST
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