सहारनपुर: एक ओर लोग दीपों के पर्व दीपावली मनाने के लिए छुट्टियां लेकर अपने परिवार के बीच पहुंच रहे हैं. वहीं कुछ माता-पिता ऐसे भी हैं, जो वृद्धाश्रम में दिवाली मनाने को मजबूर हैं. सहारनपुर के वृद्धाश्रम में 14 बुजुर्ग महिलाएं और 45 पुरुष दीपावली के मौके पर न सिर्फ अपने बेटों को याद कर रहे हैं, बल्कि उनके लिए खुशहाली एवं समृद्धि की कामना कर रहे हैं. जिंदगी 'आखरी पड़ाव मानव मंदिर' (वृध्दाश्रम) में जीवन काट रहे ये माता-पिता अब आश्रम में रह रहे वृद्धों को ही अपना परिवार मान चुके हैं.
बच्चों से परेशान बुजुर्ग वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर
बता दें कि सहारनपुर के वृद्धाश्रम में देश भर के कई राज्यों से वृद्ध महिलाएं और पुरुष आकर रह रहे हैं. शहर के सम्पन्न परिवार आश्रम में ही इनके खाने-पीने की सभी सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं. आश्रम में कुल 14 महिलाएं और 45 पुरुष हैं. ये बुजुर्ग आश्रम में अपनी मर्जी से नहीं बल्कि अपनों से परेशान होकर आए हैं.
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त्योहार पर भी नहीं लेते मां-बाप की सुध
खास बात तो ये है कि इनके बच्चे इन्हें साल में एक बार आने वाले पावन पर्व दीपावली पर भी लेने नहीं आते, जिसके चलते ये बुजुर्ग वृद्धाश्रम में ही दीपावली मनाने को मजबूर हैं.
परिजनों पर उठाते थे हाथ
ईटीवी भारत ने आश्रम में पहुंचकर इन बुजुर्गों से बात की. उनका कहना है कि हमारे बहु-बेटे न तो हमें समय से खाना देते थे और न ही देखभाल करते थे. इतना ही नहीं कभी-कभी इन पर हाथ भी उठा देते थे.
वृद्धाश्रम को ही बना लिया अपना सहारा
इसके चलते हमने वृद्धाश्रम को ही अपना सहारा बना लिया है. आश्रम में रहने वाले बुजुर्ग न सिर्फ एक-दूसरे का सुख-दुख साझा करते हैं, बल्कि एक साथ मिलकर त्योहार पर पूजा-पाठ भी करते हैं.
बच्चों के देते हैं दुआएं
वो कहते हैं कि औलाद चाहे कैसी भी हो, लेकिन मां-बाप की ममता कभी कम नहीं होती. भले ही ये बुजुर्ग अपनी औलाद से कितने दूर हों, लेकिन आज भी अपनी औलाद के लिए दुआएं करते हैं. आश्रम में रहने वाले रकम सिंह का कहना है कि उनकी औलाद ऐसी नहीं है कि उन्हें याद किया जा सके. वे शराब पीकर उनके साथ मारपीट करते हैं. इतना ही नहीं कई बार तो घर से भी निकाल देते थे. यही वजह है कि वे यहां आकर अपनी जिंदगी काट रहे हैं.