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रामपुर के इस गांव में आजादी के 75 साल बाद भी नहीं हैं बुनियादी सुविधाएं - azadi ka amrit Mahotsav

रामपुर के अटरिया गांव में आजादी के 75 साल बाद भी इस गांव के लोग बुनियादी सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं. ग्रामीण कंधों पर बिठाकर अपने बच्चों को कीचड़ के बीच स्कूल छोड़ने जाते हैं.

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बिना सड़क के अटरिया गांव
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Published : Aug 10, 2022, 11:23 AM IST

रामपुर: जिले में एक गांव ऐसा भी है, जहां लोगों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं.. गांव में सड़क नहीं है तो रोजाना 50 से 60 स्कूली बच्चे कीचड़ और दलदल के बीच से स्कूल जाने को मजबूर हैं. देश आजादी के 75 सालों के जश्न को अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है. उत्तर प्रदेश में हर घर झंडा फहराने की तैयारी है.

ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ता नूर हसन ने दी जानकारी



रामपुर जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है, जिसका नाम अटरिया का मंजरा है. आजादी के 75 साल बाद भी इस गांव के लोग बुनियादी सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं. गांव में सड़क नहीं है, रोजाना 50 से 60 स्कूली बच्चे और टीचर कीचड़ के बीच से स्कूल जाने को मजबूर हैं. अगर गांव में किसी महिला की डिलीवरी होनी होती है, तो उसे चारपाई पर लिटा कर मेन रोड तक ले जाना पड़ता है. हर जगह गंदगी के ढेर लगे हुए हैं.



अटरिया गांव के लोगों का कहना है कि, पीएम मोदी के मन की बात तो सब सुनते हैं. लेकिन, उनके मन की बात कोई भी सुनने वाला नहीं है. आपको बता दें कि, जिला मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर दूरी वाली ग्राम पंचायत के अटरिया गांव में आजादी के 75 साल बाद भी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं. लगभग 750 जनसंख्या वाले इस गांव में कोई व्यवस्था नहीं है.
इसे भी पढ़े-बुनियादी सुविधाओं से वंचित ग्रामीणों ने जताई नाराजगी, लोकसभा चुनाव में मतदान के बहिष्कार का किया फैसला

ग्रामीण कंधों पर बिठाकर अपने बच्चों को दलदल और कीचड़ के बीच स्कूल छोड़ने जाते हैं. यह गांव मेन रोड से कुछ दूरी पर है. इसके बावजूद भी आने जाने का रास्ता नहीं है. हल्की बारिश में भी रास्ता दलदल में तब्दील हो जाता है. ग्राम अटरिया के सामाजिक कार्यकर्ता नूर हसन कहते हैं कि यहां जितना भी विकास है वह कागजों में है. जो भी सुविधाएं आती हैं, वह प्रधान के घर तक ही आती हैं. सफाई व्यवस्था भी प्रधान के घर के आस-पास तक दिखाई देती है, अंदर गांव तक नहीं.

वहीं जब इस मामले में हमने ग्राम प्रधान पुत्र आरिफ से बात की तो उन्होंने बताया कि शासन की ओर से यहां के विकास के लिए पैसा नहीं आ रहा है. इस कारण बहुत से काम रूके हुए हैं. बहरहाल आजादी के 75 साल बाद भी ग्रामीणों की एक ही मांग है कि, प्रशासन सरकारी भूमि पर रास्ता बनवाएं. ताकि गांव के लोगों को आने-जाने में सुविधा मिल सके.
ऐसी ही जरुरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत

रामपुर: जिले में एक गांव ऐसा भी है, जहां लोगों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं.. गांव में सड़क नहीं है तो रोजाना 50 से 60 स्कूली बच्चे कीचड़ और दलदल के बीच से स्कूल जाने को मजबूर हैं. देश आजादी के 75 सालों के जश्न को अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है. उत्तर प्रदेश में हर घर झंडा फहराने की तैयारी है.

ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ता नूर हसन ने दी जानकारी



रामपुर जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है, जिसका नाम अटरिया का मंजरा है. आजादी के 75 साल बाद भी इस गांव के लोग बुनियादी सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं. गांव में सड़क नहीं है, रोजाना 50 से 60 स्कूली बच्चे और टीचर कीचड़ के बीच से स्कूल जाने को मजबूर हैं. अगर गांव में किसी महिला की डिलीवरी होनी होती है, तो उसे चारपाई पर लिटा कर मेन रोड तक ले जाना पड़ता है. हर जगह गंदगी के ढेर लगे हुए हैं.



अटरिया गांव के लोगों का कहना है कि, पीएम मोदी के मन की बात तो सब सुनते हैं. लेकिन, उनके मन की बात कोई भी सुनने वाला नहीं है. आपको बता दें कि, जिला मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर दूरी वाली ग्राम पंचायत के अटरिया गांव में आजादी के 75 साल बाद भी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं. लगभग 750 जनसंख्या वाले इस गांव में कोई व्यवस्था नहीं है.
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ग्रामीण कंधों पर बिठाकर अपने बच्चों को दलदल और कीचड़ के बीच स्कूल छोड़ने जाते हैं. यह गांव मेन रोड से कुछ दूरी पर है. इसके बावजूद भी आने जाने का रास्ता नहीं है. हल्की बारिश में भी रास्ता दलदल में तब्दील हो जाता है. ग्राम अटरिया के सामाजिक कार्यकर्ता नूर हसन कहते हैं कि यहां जितना भी विकास है वह कागजों में है. जो भी सुविधाएं आती हैं, वह प्रधान के घर तक ही आती हैं. सफाई व्यवस्था भी प्रधान के घर के आस-पास तक दिखाई देती है, अंदर गांव तक नहीं.

वहीं जब इस मामले में हमने ग्राम प्रधान पुत्र आरिफ से बात की तो उन्होंने बताया कि शासन की ओर से यहां के विकास के लिए पैसा नहीं आ रहा है. इस कारण बहुत से काम रूके हुए हैं. बहरहाल आजादी के 75 साल बाद भी ग्रामीणों की एक ही मांग है कि, प्रशासन सरकारी भूमि पर रास्ता बनवाएं. ताकि गांव के लोगों को आने-जाने में सुविधा मिल सके.
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