रायबरेली: फिरोज गांधी यह एक ऐसा नाम है, जिन्हें कोई भारतीय राजनीति की अबूझ पहेली करार देता है, तो कोई उन्हें करप्शन के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाला देश का पहला सांसद मानता है. हालांकि फिरोज गांधी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, लेकिन वर्तमान समय में लोगों का यह जानना आवश्यक है कि फिरोज गांधी देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दामाद, इंदिरा गांधी के पति, राजीव गांधी के पिता और प्रियंका गांधी व राहुल गांधी के दादा हैं.
फिरोज गांधी में कुछ तो खास जरूर था, जिसके कारण मृत्यु के 6 दशक बीत जाने के बावजूद आज भी उनके संसदीय क्षेत्र में तमाम ऐसे लोग हैं, जिनका मानना है कि वर्तमान दौर में फिरोज गांधी बेहद प्रासंगिक हैं और उनसे काफी कुछ सीखने की जरूरत है. ईटीवी भारत रायबरेली के इस प्रथम सांसद की 108वीं जयंती पर उनके व्यक्तित्व से जुड़े कुछ अनछुए पहलुओं से रुबरू करा रहा है.
फिरोज गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन में भी लिया था हिस्सा
रायबरेली के प्रथम सांसद फिरोज गांधी से जुड़ी तमाम रोचक जानकारियों को साझा करते हुए स्थानीय इतिहासकार डॉ. जितेंद्र बताते हैं कि फिरोज का जन्म 12 सितंबर 1912 को मुंबई के एक पारसी परिवार में हुआ था. जन्म के कुछ सालों बाद ही वह इलाहाबाद आ गए थे. यहीं से उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई और इसी दौरान इलाहाबाद से ही उनकी स्वाधीनता आंदोलन में एंट्री हुई. उन्होंने बताया कि बात साल 1930 की है. भीषण गर्मी के बीच इलाहाबाद के इविंग क्रिश्चियन कॉलेज के बाहर एक धरना-प्रदर्शन के दौरान जवाहरलाल नेहरू की पत्नी और इंदिरा गांधी की मां कमला नेहरू बेहोश हो गईं. तभी फिरोज गांधी ने आगे बढ़कर उनको सहारा देकर मदद की थी. तभी से फिरोज का आना-जाना आनंद भवन में होने लगा. 1932-33 के दौरान करीब 19 माह तक फिरोज फैजाबाद जेल में निरुद्ध रहे. यहीं पर उनकी भेंट लाल बहादुर शास्त्री से हुई. वर्ष 1935 में उच्च शिक्षा हासिल करने के मकसद से फिरोज ने लंदन का रुख किया. वहां से डिग्री लेकर लौटे फिरोज ने भारत छोड़ो आंदोलन में भी हिस्सा लिया और एक बार पुनः गिरफ्तार हुए. 1946 में रिहाई के बाद उन्होंने नेशनल हेराल्ड नाम के पेपर के संपादक की भूमिका अदा की. आजादी के आंदोलन से लेकर स्वाधीनता के बाद के दौर में भी बतौर रायबरेली सांसद फिरोज गांधी बेहद सक्रिय रहे.
संसद में गलत नीतियों पर बेबाकी से करते थे वार
रायबरेली के एफजी डिग्री कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और फिरोज गांधी प्रेरक व्यक्तित्व नाम की पुस्तक के संपादक रहे. डॉ. राम बहादुर वर्मा बताते हैं कि यदि दुनियाभर में सर्वश्रेष्ठ पार्लियामेंटेरियन की सर्वकालिक सूची बनेगी तो उसमें फिरोज गांधी का नाम जरुर शुमार होगा. डॉ. राम बहादुर वर्मा ने बताया कि वे उन चुनिंदा लोगों में रहे जिन्होंने संसद की गरिमा व गौरव को स्थापित करने का महत्वपूर्ण काम किया. संसद संवाद को लोकतंत्र की असल शक्ति करार देते हुए इसी के जरिए तमाम समस्याओं का समाधान निकालने पर वह बल देते थे. भारतीय संसद में संभवतः वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ सदन में आवाज उठाई.
अपनी ही पार्टी के मंत्री के खिलाफ और कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जो उनके ससुर भी थे, उनकी गलत नीतियों पर भी बेबाकी से वार करते नजर आते थे. निजी बीमा कंपनियों द्वारा की जा रही घोर अनीतिक नीतियों पर लगाम लगाने और भारतीय जीवन बीमा निगम को स्वरूप देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही. उनकी भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का ही नतीजा रहा कि तत्कालीन वित्तमंत्री और नेहरू कैबिनेट के सदस्य टीटी कृष्णामचारी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
फिरोज प्रेस की स्वतंत्रता के भी प्रबल समर्थक रहे. उस दौर में संसद की कार्रवाई की कवरेज करने वाले समाचार पत्रों और संवाददाताओं पर मानहानि के मुकदमे की तलवार अटकी रहती थी. फिरोज गांधी के प्रयासों का ही नतीजा रहा कि संसदीय कार्यवाही प्रकाशन का संरक्षण अधिनियम 1956 पास हो सका. रायबरेली के विकास में भी फिरोज का अतुलनीय योगदान रहा. जिले में पहला उच्च शिक्षण संस्थान उन्हीं के प्रयासों से साकार रूप ले सका. यही कारण रहा कि जनपद के पहले डिग्री कॉलेज का नामकरण भी उनके नाम पर हुआ.
आज के तमाम नेताओं को फिरोज गांधी से सीखने की जरूरत
स्थानीय राजनीतिक जानकार विजय विद्रोही कहते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में फिरोज साहब बेहद प्रासंगिक हैं. खासतौर पर तब जब बीते कुछ दशकों से संसद लोकतांत्रिक मूल्यों के बहस का स्थान न होकर शोर-शराबे और हुड़दंग के स्थल के रूप में पहचान बना चुकी हैं. उस दौर में फिरोज गांधी संसद के असाधारण सांसदों के अगुआ रहे. यही कारण रहा कि दलगत राजनीति के ऊपर उठकर कई सियासी पार्टियों के लोग उनके मुरीद बन जाते थे.
विजय विद्रोही ने बताया कि कई ऐसे अवसर आए जब कांग्रेस के सांसद होने के बावजूद फिरोज अपने ही दल की सरकार के खिलाफ लोकसभा मे डटकर खड़े हो जाते थे. तमाम मुद्दों पर उन्होंने सरकार की गलत नीतियों को आगाह किया. संसद में हिंदू कोड बिल में संशोधन के दौरान चल रही बहस में फिरोज करीब 48 से 52 घंटे तक तथ्यात्मक तर्क रखते नजर आए थे.
व्यवहार से बेहद शालीन और विद्वान व्यक्तित्व के फिरोज संसदीय गरिमा का हमेशा ध्यान रखते थे. तमाम ऐसे अवसर आए जब उनके तर्कों के आगे सत्ताधारी दल के मंत्री समेत तमाम सांसद भी निरुत्तर हो जाते थे. इसके अलावा वह जन सरोकार से जुड़े मुद्दों को तवज्जो देने वाले व्यक्ति थे और कई मौकों पर संसद में उन्होंने भारत के आम नागरिकों से जुड़े मसलों को प्रमुखता से उठाया. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी फिरोज गांधी वर्तमान दौर में बेहद प्रासंगिक हैं और आज के दौर के तमाम सियासी नेताओं को उनके आचार व्यवहार से सीख लेने की जरूरत है.