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सोनिया के गढ़ में लोगों को रास नहीं आया 'मोदी का बजट'

सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र में लोगों को आम बजट 2021-22 रास नहीं आया. यहां लोगों ने बजट को लेकर तीखी प्रतिक्रया व्यक्त की. देखें ये रिपोर्ट...

sonia gandhi constituency reaction on budget
रायबरेली में लोगों की बजट पर प्रतिक्रिया.
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Published : Feb 1, 2021, 10:18 PM IST

रायबरेली: सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में केंद्र सरकार के आम बजट को लेकर जनता में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली. यहां के स्थानीय लोगों का यह मानना रहा कि बजट से जो उम्मीदें थी, वह कतई पूरी नहीं हुई. मोदी सरकार के इस बजट से केवल निराशा हाथ लगी है. हालांकि बजट में युवाओं को लेकर जरूर कुछ सकारात्मक आस जगी है. पर फिलहाल नवयुवकों के लिए भी वित्त मंत्री के पिटारे में कुछ खास नहीं मिला.

लोगों को रास नहीं आया बजट.
'निजी कंपनियों के हाथों बेची जा रही सरकारी धरोहर'
आर्थिक मामलों के स्थानीय जानकार व ट्रेड यूनियन के राजनीति से जुड़े रहे विजय विद्रोही कहते हैं कि सरकार के बजट में जनता के हित में कुछ भी ठोस नहीं मिला. सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां भी निजी कंपनियों व पूंजीपतियों के हाथों बेची जा रही है. एफडीआई के नाम पर निजीकरण किया जा रहा है. रेल, सड़क, जहाज, पेट्रोलियम व बिजली के साथ-साथ देशभर में बने विभिन्न स्टेडियमों को भी सरकार बेचने की राह पर चल पड़ी है.

'मजदूरों के हाथ भी रहे खाली'
वैश्विक महामारी कोरोना के कारण जब सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन लगाया, तब गरीब मजदूरों के हाथों से उनका रोजगार छिन गया. यही कारण रहा कि इस बार के बजट में मजदूरों के लिए विशेष भत्ता देने की कवायद सरकार शुरू कर सकती थी पर यहां भी निराशा ही हाथ लगी. असंगठित क्षेत्र के करोड़ों मजदूरों के लिए वित्त मंत्री ने बजट में कुछ भी देना मुनासिब नहीं समझा.

'डीजल-पेट्रोल में बढ़े टैक्स ने किसानों को दिया झटका'
विजय विद्रोही कहते हैं कि सरकार ने पेट्रोल व डीजल में सेस की वृद्धि करते हुए किसानों समेत आम जनता पर भी दोहरी मार पहुंचाई है।डीजल बढ़ने से खाद्यान्न संकट भी उत्पन्न होने की आशंका है. उन्होंने कहा कि आम आदमी की खरीद क्षमता को बढ़ाने के लिए बजट में कुछ भी कदम नही उठाए गए और यही कारण है कि वर्तमान स्लो डाउन से बाहर निकलने की सूरत भी नजर नहीं आती. देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है.

हेल्थ सेक्टर में भी 'पीपीपी मॉडल' लाने की मंशा पर आगे बढ़ रही सरकार
हेल्थ सेक्टर में भी सरकार की विफलता पर कटाक्ष करते हुए विजय विद्रोही कहते है कि पीपीपी मॉडल लाकर चिकित्सा व स्वास्थ्य संस्थानों में भी निजी कंपनियों की दखलअंदाजी बढ़ाने का की मंशा से सरकार ने यह कदम उठाया है. भले ही हेल्थ सेक्टर में इस बार के बजट में पिछले वर्ष के सापेक्ष कुछ हिस्सेदारी बढ़ाई गई हो पर अभी भी WHO के मानक के अनुसार कुल बजट का 5 प्रतिशत से ज्यादा चिकित्सा व स्वास्थ्य में खर्च करने के मामले में भारत बहुत पीछे नज़र आता है.

रायबरेली के लिए भी 'निराशाजनक' रहा बजट
जिले की तमाम अधूरी योजनाओं को गिनाते हुए विजय विद्रोही कहते हैं कि स्पाइस पार्क से लेकर आईडीटीआर और एम्स जैसे कई अहम प्रोजेक्ट्स बजट की कमी से अब तक साकार रूप नहीं ले सके हैं. यही कारण है कि रायबरेली के लिए भी बजट निराशाजनक रहा है.

स्टार्टअप्स को लेकर जगी आस
इंजीनियरिंग के छात्र ओंकार कहते हैं कि बजट में 'स्टार्टअप्स' को लेकर भी कई ऐसी चीजें हैं, जो नवयुवकों को लुभाती है पर बहुत कुछ और भी इस बजट से अपेक्षित था. कोरोना का असर शैक्षिक सत्रों में भी पड़ा है. यही कारण है कि आने वाले समय में रोजगार के समुचित अवसर सभी को मुहैया कराने में सरकार कितना सफल रहती है, इसी पर देश की प्रगति निर्भर करती है. सरकार की नियति जरूर साफ नजर आती है पर आगे का रास्ता दिखाई नहीं देता और यही कारण है कि वर्तमान में युवा वर्ग घोर आशंकाओं से घिरा नजर आता है.

रायबरेली: सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में केंद्र सरकार के आम बजट को लेकर जनता में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली. यहां के स्थानीय लोगों का यह मानना रहा कि बजट से जो उम्मीदें थी, वह कतई पूरी नहीं हुई. मोदी सरकार के इस बजट से केवल निराशा हाथ लगी है. हालांकि बजट में युवाओं को लेकर जरूर कुछ सकारात्मक आस जगी है. पर फिलहाल नवयुवकों के लिए भी वित्त मंत्री के पिटारे में कुछ खास नहीं मिला.

लोगों को रास नहीं आया बजट.
'निजी कंपनियों के हाथों बेची जा रही सरकारी धरोहर'
आर्थिक मामलों के स्थानीय जानकार व ट्रेड यूनियन के राजनीति से जुड़े रहे विजय विद्रोही कहते हैं कि सरकार के बजट में जनता के हित में कुछ भी ठोस नहीं मिला. सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां भी निजी कंपनियों व पूंजीपतियों के हाथों बेची जा रही है. एफडीआई के नाम पर निजीकरण किया जा रहा है. रेल, सड़क, जहाज, पेट्रोलियम व बिजली के साथ-साथ देशभर में बने विभिन्न स्टेडियमों को भी सरकार बेचने की राह पर चल पड़ी है.

'मजदूरों के हाथ भी रहे खाली'
वैश्विक महामारी कोरोना के कारण जब सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन लगाया, तब गरीब मजदूरों के हाथों से उनका रोजगार छिन गया. यही कारण रहा कि इस बार के बजट में मजदूरों के लिए विशेष भत्ता देने की कवायद सरकार शुरू कर सकती थी पर यहां भी निराशा ही हाथ लगी. असंगठित क्षेत्र के करोड़ों मजदूरों के लिए वित्त मंत्री ने बजट में कुछ भी देना मुनासिब नहीं समझा.

'डीजल-पेट्रोल में बढ़े टैक्स ने किसानों को दिया झटका'
विजय विद्रोही कहते हैं कि सरकार ने पेट्रोल व डीजल में सेस की वृद्धि करते हुए किसानों समेत आम जनता पर भी दोहरी मार पहुंचाई है।डीजल बढ़ने से खाद्यान्न संकट भी उत्पन्न होने की आशंका है. उन्होंने कहा कि आम आदमी की खरीद क्षमता को बढ़ाने के लिए बजट में कुछ भी कदम नही उठाए गए और यही कारण है कि वर्तमान स्लो डाउन से बाहर निकलने की सूरत भी नजर नहीं आती. देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है.

हेल्थ सेक्टर में भी 'पीपीपी मॉडल' लाने की मंशा पर आगे बढ़ रही सरकार
हेल्थ सेक्टर में भी सरकार की विफलता पर कटाक्ष करते हुए विजय विद्रोही कहते है कि पीपीपी मॉडल लाकर चिकित्सा व स्वास्थ्य संस्थानों में भी निजी कंपनियों की दखलअंदाजी बढ़ाने का की मंशा से सरकार ने यह कदम उठाया है. भले ही हेल्थ सेक्टर में इस बार के बजट में पिछले वर्ष के सापेक्ष कुछ हिस्सेदारी बढ़ाई गई हो पर अभी भी WHO के मानक के अनुसार कुल बजट का 5 प्रतिशत से ज्यादा चिकित्सा व स्वास्थ्य में खर्च करने के मामले में भारत बहुत पीछे नज़र आता है.

रायबरेली के लिए भी 'निराशाजनक' रहा बजट
जिले की तमाम अधूरी योजनाओं को गिनाते हुए विजय विद्रोही कहते हैं कि स्पाइस पार्क से लेकर आईडीटीआर और एम्स जैसे कई अहम प्रोजेक्ट्स बजट की कमी से अब तक साकार रूप नहीं ले सके हैं. यही कारण है कि रायबरेली के लिए भी बजट निराशाजनक रहा है.

स्टार्टअप्स को लेकर जगी आस
इंजीनियरिंग के छात्र ओंकार कहते हैं कि बजट में 'स्टार्टअप्स' को लेकर भी कई ऐसी चीजें हैं, जो नवयुवकों को लुभाती है पर बहुत कुछ और भी इस बजट से अपेक्षित था. कोरोना का असर शैक्षिक सत्रों में भी पड़ा है. यही कारण है कि आने वाले समय में रोजगार के समुचित अवसर सभी को मुहैया कराने में सरकार कितना सफल रहती है, इसी पर देश की प्रगति निर्भर करती है. सरकार की नियति जरूर साफ नजर आती है पर आगे का रास्ता दिखाई नहीं देता और यही कारण है कि वर्तमान में युवा वर्ग घोर आशंकाओं से घिरा नजर आता है.

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