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कांग्रेस विधायक अदिति ने फोड़ा लेटर बम, जानें कौन है निशाने पर

रायबरेली से कांग्रेस विधायक अदिति सिंह ने KNES में आर्थिक गड़बड़ी व अनियमितता के बारे में ट्वीट के माध्यम से यूपी पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा(EOW) के डीजी को एक पत्र लिखा है. अदिति सिंह ने पत्र लिख इस मामले मे जांच की मांग की है और गांधी परिवार पर निशाना साधा है.

KNES में गड़बड़ी को लेकर कांग्रेस विधायक विधायक अदिति सिंह ने किया ट्वीट
KNES में गड़बड़ी को लेकर कांग्रेस विधायक विधायक अदिति सिंह ने किया ट्वीट
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Published : Nov 6, 2020, 6:55 PM IST

रायबरेली: सदर से कांग्रेस विधायक अदिति सिंह को राजनीति विरासत में मिली है. इसके साथ ही क्षेत्र में अपना दबदबा कायम रखने का हुनर भी उन्होंने अपने पिता से सीखा है. बेहद कम समय में अपने राजनीतिक कैरियर में विधायक अदिति सिंह ने वो मुकाम हासिल किया, जिससे ज्यादातर पॉलिटिशियन वंचित रह जाते हैं. सोमवार देर शाम अदिति सिंह का एक ट्वीट चर्चा का विषय बन गया. इसका जिक्र मोदी मंत्रिमंडल के पीयूष गोयल और प्रकाश जावड़ेकर ने भी अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर किया है.

स्पेशल रिपोर्ट


अदिति सिंह ने KNES क लेकर किया ट्वीट
अदिति सिंह ने कमला नेहरू एजुकेशन सोसाइटी (KNES) में आर्थिक गड़बड़ी और अनियमितता के बारे में ट्वीट किया है. उन्होंने इस मामले में यूपी पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) के डीजी को एक पत्र लिखा है. इस सोसाइटी को फर्जी करार देते हुए उन्होंने इसकी व्यावसायिक और आर्थिक गतिविधियों की जांच कराने की भी सिफारिश की है. निशाना सीधे तौर पर गांधी और नेहरु परिवार से जुड़े लोगों पर है. महिला डिग्री कॉलेज के नाम पर मिली जमीन को फ्री होल्ड कराकर बेचने का भी आरोप लगाया है.

भाजपा को मिला मौका

अदिति सिंह के इस आक्रामक रुख से भाजपा को बैठे-बैठे गांधी परिवार पर निशाना साधने का एक सुनहरा अवसर मिल गया. इस मामले में रायबरेली कांग्रेस ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि गांधी परिवार का कोई भी सदस्य इस सोसाइटी का कभी मेंबर नहीं रहा और न ही पार्टी का कोई अन्य सक्रिय सदस्य इसमें शामिल रहा.

क्या कहते हैं कब्जेदार
जमीन पर काबिज राजू मिस्त्री कहते हैं कि उनकी यह दूसरी पीढ़ी है. 1980 से उनके पिताजी यहां पर दुकान लगाते थे. वह खुद भी 1984 के करीब से लगातार यहां पर आ रहे हैं. इस उम्र में अब कहीं नौकरी भी नहीं मिलेगी. परिवार का खर्चा भी इसी से निकलता था. प्रशासन लगातार हमे नोटिस दे रहा है. यदि यहां से हटाया गया तब हम यहां से जाएंगे कहां?

40 - 45 वर्षों से रह रहे हैं कब्जेदार
स्थानीय निवासी मकबूल अली कहते हैं कि करीब 40 से 45 वर्षों से यहां पर तमाम दुकानदार रह रहे हैं. अब अचानक से प्रशासन उन्हें हटाने के फिराक में है. कानूनी अड़चनों से ज्यादा सत्तारूढ़ दल का दबाव देखा जा रहा है. यहां से लोगों को हटाया जाएगा तो उनके परिवार भूखे रह जाएंगे.

विधायक अदिति सिंह से है आस
नवयुवक मैकेनिक मो. अमीर कहते हैं कि प्रशासन आए दिन नोटिस भेजकर हमें डराता है. सभी गरीब तबके से होने के कारण कुछ ठोस नहीं कर पा रहे. अब विधायक अदिति सिंह से ही आस है. ट्रांसपोर्ट मोटर यूनियन के जिला अध्यक्ष राम मोहन श्रीवास्तव उर्फ रामू दादा कहते हैं कि प्रशासन सत्ता के दबाव में काम कर रहा है। रायबरेली सदर विधायक अदिति सिंह गरीबों की आवाज बन कर आई हैं. उनके प्रयासों से लग रहा है कुछ सार्थक नतीजा निकलेगा. सरकार कब्जेदारो को हटाने की जगह उनका पक्ष जानकर निर्णय लेगी।


क्या कहना है कांग्रेस जिलाअध्यक्ष का
रायबरेली के कांग्रेस जिला अध्यक्ष पंकज तिवारी कहते हैं कि कमला नेहरू एजुकेशन सोसायटी में गांधी परिवार का कोई भी सदस्य शामिल नहीं है. रायबरेली सदर विधायक अदिति सिंह सिर्फ राजनीति करने के मकसद से इस मुद्दे को तूल दे रही हैं. कांग्रेस पार्टी का इस मसले से कोई लेना-देना नहीं है. मामला न्यायालय में विचाराधीन है. स्थानीय प्रशासन को कार्रवाई करनी है. पार्टी सालों से रह रहे कब्जेदारों को हटाने की बजाय विस्थापित करने की भी मांग करती है.


क्या कहते है स्थानीय राजनीतिक जानकार
रायबरेली के स्थानीय राजनीतिक जानकार विजय विद्रोही कहते हैं कि इस मामले में हर तरफ से राजनीति हो रही है. यह बात सही है कि कमला नेहरू ट्रस्ट में गांधी परिवार से जुड़ा कोई भी सदस्य मेंबर नहीं रहा र वर्तमान में भी इसका सीधा कोई लाभ गांधी परिवार को नहीं होने वाला. विधायक अदिति सिंह भले ही कांग्रेस से चुनी गई हों, पर वह प्रबल भाजपा और योगी समर्थक हैं. सोसाइटी के चेयरमैन और सचिव ने जब इस जमीन को बेचने का मन बनाया, तो पहले इसे फ्री होल्ड कराने की सोची. नियमों को दरकिनार करते हुए इसे फ्री होल्ड किया गया. इसके तरीकों पर हाईकोर्ट ने आपत्ति भी जाहिर की है. विधायक अदिति सिंह पहले इन कब्जेदरों के पक्ष में आकर सड़क पर खड़ी थी. अब वो पत्र लिखकर इतिश्री करती दिख रही है. यह मसला कांग्रेस-भाजपा का नहीं रहा, इसमें निजी टकराव भी जन्म ले रहा है.


कब, कहां और कितनी आवंटित हुई थी ज़मीन -
जानकार बताते हैं कि वर्ष 1969 में इंदिरा गांधी की सहमति पर तत्कालीन जिला परिषद अध्यक्ष राम शंकर त्रिपाठी ने सांसद उमाशंकर त्रिपाठी, बैजनाथ कुरील, यशपाल कपूर, एमएलसी शीला कौल और गया प्रसाद शुक्ला के साथ मिलकर रायबरेली में कमला नेहरू एजुकेशन सोसायटी का गठन किया था. कुछ सालों बाद साल 1974 में महिला डिग्री कॉलेज और स्कूल बनाने के नाम पर रायबरेली शहर के सिविल लाइंस चौराहे पर 5 बीघे से ज्यादा की नजूल जमीन कमला नेहरु एजुकेशनल सोसाइटी के नाम आवंटित की गई थी.

सालों तक खाली पड़ी रही जमीन पर हुआ कब्जा
साल दर साल गुजरने के बाद भी उस जमीन पर बच्चियों और महिलाओं के लिए किसी शिक्षण संस्थान का निर्माण नहीं हो सका. यही कारण रहा कि लखनऊ-प्रयागराज हाईवे से लगी इस भूमि पर अवैध कब्जे होते चले गए. लंबे समय तक खाली पड़ी रहने के कारण कई दुकानदार, मोटर पार्ट्स, मकैनिक समेत कई अन्य दुकानदार भी यहां पर काबिज हो गए. कब्जेदारों का कहना है कि इस पूरे क्षेत्र में लगभग सवा सौ से अधिक स्थानीय लोगों की दुकानें हैं और हजारों परिवारों का जीवन यापन भी इन्ही दुकानों के से होता है.


साल 2000 के बाद बदले हैं समीकरण
रायबरेली की कमला नेहरु एजुकेशनल सोसाइटी भूमि का आवंटन होने के बाद से ज्यादा सक्रिय नहीं रही. आम जनता इस सोसाइटी के बारे ज्यादा जानती नहीं है. साल 1991 में सोसाइटी के बोर्ड मेंबर और गांधी परिवार की रिश्तेदार शीला कौल के साथ उनके बेटे विक्रम और सुनील देव सहित अन्य लोग भी शामिल हुए. साल 2000 में सोसाइटी की जमीन बेचने के लिए फ्री होल्ड की कार्रवाई शुरु हुई. सोसायटी के सचिव सुनील देव ने पहले सोसाइटी के रजिस्ट्रेशन का रिन्यूअल कराया और फ्रीहोल्ड के लिए 2001 में आवेदन किया. 9 फरवरी 2002 में फ्री होल्ड के लिए आदेश पारित हुआ. 6 मार्च 2003 को डीड संपादित हो गई. 10 मार्च 2016 को कागजों पर चल रही कमला नेहरू सोसायटी के सचिव सुनील देव ने सपा सांसद की पत्नी और बेटे के नाम पर लैंड सेल एग्रीमेंट कर दिया.

एग्रीमेंट के बाद जब जमीन पर कब्जा लेने पूर्व सपा सांसद के आदमी पहुंचे तब जाकर पूरे खेल की जानकारी यहां पर काबिज लोगों को हुई. उस समय विरोध के कारण कब्जा मिलना मुश्किल हो गया. इसी बीच दुकानदार हाईकोर्ट चले गए. 25 अगस्त 2017 को फैसला आया कि फ्रीहोल्ड गलत तरीके से हुआ है. इस को खारिज किया जाना चाहिए. बड़ी मशक्कत के बाद 23 मार्च 2019 को जिलाधिकारी रायबरेली ने फ्रीहोल्ड कैंसिलेशन का आदेश पारित कर दिया.

2018 में जमीन का पुनः सेल एग्रीमेंट
इसी बीच 10 अक्टूबर 2018 को बीजेपी के बड़े नेता ने अपनी भाई की कंपनी के नाम पर 9 करोड़ 30 लाख रुपये में सोसायटी के अध्यक्ष विक्रम कौल से एग्रीमेंट करा लिया. इसके साथ ही सोसाइटी ने फ्री गोल्ड कैंसिलेशन के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की. दावा था कि जिलाधिकारी रायबरेली ने गलत तरीके से फ्री होल्ड को कैंसिल किया है. इसके बाद हाईकोर्ट ने 7 जुलाई 2020 को एक आदेश पारित किया. इसमें कहा गया 6 मार्च 2003 की डीड वैसे ही बनी रहेगी. जब तक इसे सिविल सूट के माध्यम से कैंसिलेशन न कराया जाए.

1 मार्च 2020 को भेजा नोटिस

जिला प्रशासन ने 1 मार्च 2020 को मौके पर काबिज लोगों को नोटिस भेजकर 7 दिन के अंदर सोसाइटी की जमीन से कब्जा हटाने के निर्देश दिए. लॉक डाउन के चलते मामला शांत हो गया. अनलॉक होने पर जिला प्रशासन को कोर्ट के आदेश की याद आई. उसने दुकानदारों को फिर नोटिस दिया. इसके बाद 9 अगस्त 2020 को सदर विधायक अदिति सिंह काबिज दुकानदारों के साथ सिविल लाइंस पर सैकड़ों कार्यकर्ताओं को लेकर खड़ी हो गईं. अदिति सिंह के विरोध को देखते हुए कार्रवाई करने आए प्रशासनिक अधिकारियों को बैरंग लौटना पड़ा और मामला मुख्यमंत्री तक पहुंच गया.

फिर मिला कब्जेदारों को प्रशासन का नोटिस

जिला प्रशासन ने दीवानी न्यायालय में सिविल सूट 117/20 दायर किया. इसकी एक सुनवाई 20 अक्टूबर को सिविल जज सीनियर डिवीजन के यहां हो चुकी है. अगली सुनवाई 18 नवंबर 2020 को होनी है. एमएलसी के भाई से मामला जुड़ा होने के चलते जिला प्रशासन ने एक बार पुनः कब्जेदारों को नोटिस भेजा है कि हर हाल में 11 नवंबर 2020 तक कब्जा हटा लें.


कब्जेदारों के पक्ष में खड़ी हुईं विधायक अदिति सिंह
प्रशासन के आगे आने से एक बार फिर अदिति ने मोर्चा संभाला और कब्जेदार दुकानदारों के समर्थन में आगे आ गईं. इस बार उन्होंने चिट्ठी लिखकर आर्थिक अपराध शाखा (EOW) से जांच की मांग कर दी है और गांधी परिवार पर निशाना साधा है. उनके इस कदम में भाजपा के बड़े नेताओं का उन्हें साथ मिल रहा है. उनके द्वारा किए गए ट्वीट को कई केंद्रीय मंत्रियों ने रिट्वीट भी किया है. अदिति मुखर होकर कहती है कि जो पीएम केयर्स फंड पर पारदर्शिता लाने की बात कह रहे थे वह अब कमला नेहरू एजुकेशन सोसाइटी के मसले पर मौन हैं.

रायबरेली: सदर से कांग्रेस विधायक अदिति सिंह को राजनीति विरासत में मिली है. इसके साथ ही क्षेत्र में अपना दबदबा कायम रखने का हुनर भी उन्होंने अपने पिता से सीखा है. बेहद कम समय में अपने राजनीतिक कैरियर में विधायक अदिति सिंह ने वो मुकाम हासिल किया, जिससे ज्यादातर पॉलिटिशियन वंचित रह जाते हैं. सोमवार देर शाम अदिति सिंह का एक ट्वीट चर्चा का विषय बन गया. इसका जिक्र मोदी मंत्रिमंडल के पीयूष गोयल और प्रकाश जावड़ेकर ने भी अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर किया है.

स्पेशल रिपोर्ट


अदिति सिंह ने KNES क लेकर किया ट्वीट
अदिति सिंह ने कमला नेहरू एजुकेशन सोसाइटी (KNES) में आर्थिक गड़बड़ी और अनियमितता के बारे में ट्वीट किया है. उन्होंने इस मामले में यूपी पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) के डीजी को एक पत्र लिखा है. इस सोसाइटी को फर्जी करार देते हुए उन्होंने इसकी व्यावसायिक और आर्थिक गतिविधियों की जांच कराने की भी सिफारिश की है. निशाना सीधे तौर पर गांधी और नेहरु परिवार से जुड़े लोगों पर है. महिला डिग्री कॉलेज के नाम पर मिली जमीन को फ्री होल्ड कराकर बेचने का भी आरोप लगाया है.

भाजपा को मिला मौका

अदिति सिंह के इस आक्रामक रुख से भाजपा को बैठे-बैठे गांधी परिवार पर निशाना साधने का एक सुनहरा अवसर मिल गया. इस मामले में रायबरेली कांग्रेस ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि गांधी परिवार का कोई भी सदस्य इस सोसाइटी का कभी मेंबर नहीं रहा और न ही पार्टी का कोई अन्य सक्रिय सदस्य इसमें शामिल रहा.

क्या कहते हैं कब्जेदार
जमीन पर काबिज राजू मिस्त्री कहते हैं कि उनकी यह दूसरी पीढ़ी है. 1980 से उनके पिताजी यहां पर दुकान लगाते थे. वह खुद भी 1984 के करीब से लगातार यहां पर आ रहे हैं. इस उम्र में अब कहीं नौकरी भी नहीं मिलेगी. परिवार का खर्चा भी इसी से निकलता था. प्रशासन लगातार हमे नोटिस दे रहा है. यदि यहां से हटाया गया तब हम यहां से जाएंगे कहां?

40 - 45 वर्षों से रह रहे हैं कब्जेदार
स्थानीय निवासी मकबूल अली कहते हैं कि करीब 40 से 45 वर्षों से यहां पर तमाम दुकानदार रह रहे हैं. अब अचानक से प्रशासन उन्हें हटाने के फिराक में है. कानूनी अड़चनों से ज्यादा सत्तारूढ़ दल का दबाव देखा जा रहा है. यहां से लोगों को हटाया जाएगा तो उनके परिवार भूखे रह जाएंगे.

विधायक अदिति सिंह से है आस
नवयुवक मैकेनिक मो. अमीर कहते हैं कि प्रशासन आए दिन नोटिस भेजकर हमें डराता है. सभी गरीब तबके से होने के कारण कुछ ठोस नहीं कर पा रहे. अब विधायक अदिति सिंह से ही आस है. ट्रांसपोर्ट मोटर यूनियन के जिला अध्यक्ष राम मोहन श्रीवास्तव उर्फ रामू दादा कहते हैं कि प्रशासन सत्ता के दबाव में काम कर रहा है। रायबरेली सदर विधायक अदिति सिंह गरीबों की आवाज बन कर आई हैं. उनके प्रयासों से लग रहा है कुछ सार्थक नतीजा निकलेगा. सरकार कब्जेदारो को हटाने की जगह उनका पक्ष जानकर निर्णय लेगी।


क्या कहना है कांग्रेस जिलाअध्यक्ष का
रायबरेली के कांग्रेस जिला अध्यक्ष पंकज तिवारी कहते हैं कि कमला नेहरू एजुकेशन सोसायटी में गांधी परिवार का कोई भी सदस्य शामिल नहीं है. रायबरेली सदर विधायक अदिति सिंह सिर्फ राजनीति करने के मकसद से इस मुद्दे को तूल दे रही हैं. कांग्रेस पार्टी का इस मसले से कोई लेना-देना नहीं है. मामला न्यायालय में विचाराधीन है. स्थानीय प्रशासन को कार्रवाई करनी है. पार्टी सालों से रह रहे कब्जेदारों को हटाने की बजाय विस्थापित करने की भी मांग करती है.


क्या कहते है स्थानीय राजनीतिक जानकार
रायबरेली के स्थानीय राजनीतिक जानकार विजय विद्रोही कहते हैं कि इस मामले में हर तरफ से राजनीति हो रही है. यह बात सही है कि कमला नेहरू ट्रस्ट में गांधी परिवार से जुड़ा कोई भी सदस्य मेंबर नहीं रहा र वर्तमान में भी इसका सीधा कोई लाभ गांधी परिवार को नहीं होने वाला. विधायक अदिति सिंह भले ही कांग्रेस से चुनी गई हों, पर वह प्रबल भाजपा और योगी समर्थक हैं. सोसाइटी के चेयरमैन और सचिव ने जब इस जमीन को बेचने का मन बनाया, तो पहले इसे फ्री होल्ड कराने की सोची. नियमों को दरकिनार करते हुए इसे फ्री होल्ड किया गया. इसके तरीकों पर हाईकोर्ट ने आपत्ति भी जाहिर की है. विधायक अदिति सिंह पहले इन कब्जेदरों के पक्ष में आकर सड़क पर खड़ी थी. अब वो पत्र लिखकर इतिश्री करती दिख रही है. यह मसला कांग्रेस-भाजपा का नहीं रहा, इसमें निजी टकराव भी जन्म ले रहा है.


कब, कहां और कितनी आवंटित हुई थी ज़मीन -
जानकार बताते हैं कि वर्ष 1969 में इंदिरा गांधी की सहमति पर तत्कालीन जिला परिषद अध्यक्ष राम शंकर त्रिपाठी ने सांसद उमाशंकर त्रिपाठी, बैजनाथ कुरील, यशपाल कपूर, एमएलसी शीला कौल और गया प्रसाद शुक्ला के साथ मिलकर रायबरेली में कमला नेहरू एजुकेशन सोसायटी का गठन किया था. कुछ सालों बाद साल 1974 में महिला डिग्री कॉलेज और स्कूल बनाने के नाम पर रायबरेली शहर के सिविल लाइंस चौराहे पर 5 बीघे से ज्यादा की नजूल जमीन कमला नेहरु एजुकेशनल सोसाइटी के नाम आवंटित की गई थी.

सालों तक खाली पड़ी रही जमीन पर हुआ कब्जा
साल दर साल गुजरने के बाद भी उस जमीन पर बच्चियों और महिलाओं के लिए किसी शिक्षण संस्थान का निर्माण नहीं हो सका. यही कारण रहा कि लखनऊ-प्रयागराज हाईवे से लगी इस भूमि पर अवैध कब्जे होते चले गए. लंबे समय तक खाली पड़ी रहने के कारण कई दुकानदार, मोटर पार्ट्स, मकैनिक समेत कई अन्य दुकानदार भी यहां पर काबिज हो गए. कब्जेदारों का कहना है कि इस पूरे क्षेत्र में लगभग सवा सौ से अधिक स्थानीय लोगों की दुकानें हैं और हजारों परिवारों का जीवन यापन भी इन्ही दुकानों के से होता है.


साल 2000 के बाद बदले हैं समीकरण
रायबरेली की कमला नेहरु एजुकेशनल सोसाइटी भूमि का आवंटन होने के बाद से ज्यादा सक्रिय नहीं रही. आम जनता इस सोसाइटी के बारे ज्यादा जानती नहीं है. साल 1991 में सोसाइटी के बोर्ड मेंबर और गांधी परिवार की रिश्तेदार शीला कौल के साथ उनके बेटे विक्रम और सुनील देव सहित अन्य लोग भी शामिल हुए. साल 2000 में सोसाइटी की जमीन बेचने के लिए फ्री होल्ड की कार्रवाई शुरु हुई. सोसायटी के सचिव सुनील देव ने पहले सोसाइटी के रजिस्ट्रेशन का रिन्यूअल कराया और फ्रीहोल्ड के लिए 2001 में आवेदन किया. 9 फरवरी 2002 में फ्री होल्ड के लिए आदेश पारित हुआ. 6 मार्च 2003 को डीड संपादित हो गई. 10 मार्च 2016 को कागजों पर चल रही कमला नेहरू सोसायटी के सचिव सुनील देव ने सपा सांसद की पत्नी और बेटे के नाम पर लैंड सेल एग्रीमेंट कर दिया.

एग्रीमेंट के बाद जब जमीन पर कब्जा लेने पूर्व सपा सांसद के आदमी पहुंचे तब जाकर पूरे खेल की जानकारी यहां पर काबिज लोगों को हुई. उस समय विरोध के कारण कब्जा मिलना मुश्किल हो गया. इसी बीच दुकानदार हाईकोर्ट चले गए. 25 अगस्त 2017 को फैसला आया कि फ्रीहोल्ड गलत तरीके से हुआ है. इस को खारिज किया जाना चाहिए. बड़ी मशक्कत के बाद 23 मार्च 2019 को जिलाधिकारी रायबरेली ने फ्रीहोल्ड कैंसिलेशन का आदेश पारित कर दिया.

2018 में जमीन का पुनः सेल एग्रीमेंट
इसी बीच 10 अक्टूबर 2018 को बीजेपी के बड़े नेता ने अपनी भाई की कंपनी के नाम पर 9 करोड़ 30 लाख रुपये में सोसायटी के अध्यक्ष विक्रम कौल से एग्रीमेंट करा लिया. इसके साथ ही सोसाइटी ने फ्री गोल्ड कैंसिलेशन के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की. दावा था कि जिलाधिकारी रायबरेली ने गलत तरीके से फ्री होल्ड को कैंसिल किया है. इसके बाद हाईकोर्ट ने 7 जुलाई 2020 को एक आदेश पारित किया. इसमें कहा गया 6 मार्च 2003 की डीड वैसे ही बनी रहेगी. जब तक इसे सिविल सूट के माध्यम से कैंसिलेशन न कराया जाए.

1 मार्च 2020 को भेजा नोटिस

जिला प्रशासन ने 1 मार्च 2020 को मौके पर काबिज लोगों को नोटिस भेजकर 7 दिन के अंदर सोसाइटी की जमीन से कब्जा हटाने के निर्देश दिए. लॉक डाउन के चलते मामला शांत हो गया. अनलॉक होने पर जिला प्रशासन को कोर्ट के आदेश की याद आई. उसने दुकानदारों को फिर नोटिस दिया. इसके बाद 9 अगस्त 2020 को सदर विधायक अदिति सिंह काबिज दुकानदारों के साथ सिविल लाइंस पर सैकड़ों कार्यकर्ताओं को लेकर खड़ी हो गईं. अदिति सिंह के विरोध को देखते हुए कार्रवाई करने आए प्रशासनिक अधिकारियों को बैरंग लौटना पड़ा और मामला मुख्यमंत्री तक पहुंच गया.

फिर मिला कब्जेदारों को प्रशासन का नोटिस

जिला प्रशासन ने दीवानी न्यायालय में सिविल सूट 117/20 दायर किया. इसकी एक सुनवाई 20 अक्टूबर को सिविल जज सीनियर डिवीजन के यहां हो चुकी है. अगली सुनवाई 18 नवंबर 2020 को होनी है. एमएलसी के भाई से मामला जुड़ा होने के चलते जिला प्रशासन ने एक बार पुनः कब्जेदारों को नोटिस भेजा है कि हर हाल में 11 नवंबर 2020 तक कब्जा हटा लें.


कब्जेदारों के पक्ष में खड़ी हुईं विधायक अदिति सिंह
प्रशासन के आगे आने से एक बार फिर अदिति ने मोर्चा संभाला और कब्जेदार दुकानदारों के समर्थन में आगे आ गईं. इस बार उन्होंने चिट्ठी लिखकर आर्थिक अपराध शाखा (EOW) से जांच की मांग कर दी है और गांधी परिवार पर निशाना साधा है. उनके इस कदम में भाजपा के बड़े नेताओं का उन्हें साथ मिल रहा है. उनके द्वारा किए गए ट्वीट को कई केंद्रीय मंत्रियों ने रिट्वीट भी किया है. अदिति मुखर होकर कहती है कि जो पीएम केयर्स फंड पर पारदर्शिता लाने की बात कह रहे थे वह अब कमला नेहरू एजुकेशन सोसाइटी के मसले पर मौन हैं.

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