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सब्जी के साथ दाल-मसाला भी हो गया महंगा, त्राहिमाम करने को मजबूर जनता

कोरोना महामारी के समय जनता पर चारों तरफ से मार पड़ रही हैं, जहां रोजगार खत्म हो गए हैं तो वहीं सब्जी के साथ आटा, दाल और तेल पर भी महंगाई आ गई है, जिसके कारण मध्यमवर्गीय परिवारों की रसोई का तो बजट ही पूरी तरह बिगड़ गया है. सब्जी ही नहीं बल्कि आटा, दाल, मसाले, घी, तेल आदि सभी पर ही महंगाई है.

स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Nov 1, 2020, 6:30 AM IST

रायबरेली: एक ओर वैश्विक महामारी का प्रकोप तो वहीं दूसरी तरफ खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों ने आम आदमी को हलकान कर रखा है. मंहगाई की मार से बेबस जनता में दीवाली से पहले ही बढ़ी कीमतों का भय व्याप्त है. सबसे ज्यादा परेशानी सब्जी के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि के कारण है. आलू से लेकर प्याज व टमाटर समेत ज्यादातर सब्जियों के मूल्य में जबरदस्त वृद्धि हुई है, जिसका नतीजा है कि आम आदमी के हाथ से थाली भी दूर खिसकती नजर आती है.

बता दें कि बढ़ती कीमत सिर्फ सब्जियों तक सीमित नहीं है. दाल व मसालों पर भी इसकी गहरी छाप देखी जा रही है. यहां तक मांसाहारी थाली में भी मीट व चिकन जुटाने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. मंहगाई की मार से त्रस्त जनता की वास्तविक समस्याओं से रुबरु कराती पेश है ETV भारत की यह स्पेशल रिपोर्ट.

देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

सब्जी की बढ़ी कीमतों पर व्यापारियों का है अपना राग
सब्जी की बढ़ी कीमतों से आम आदमी परेशान है और उसे कुछ सूझ नहीं रहा है. वहीं सब्जी कारोबारी इसको लेकर तमाम तरह के लॉजिक देते नजर आ रहे हैं. सबकी अपनी-अपनी दलीलें हैं, लेकिन कुल मिलाकर सब यही कहते हैं कि कीमतों में जल्द गिरावट होने के आसार कम ही नजर आते हैं.

आलू की कम पैदावार से बढ़ी आलू की कीमतें
रायबरेली के रतापुर इलाके की नवीन गल्ला मंडी के आलू के थोक व्यापारी मो. मोइन बढ़ी हुई कीमत पर कहते हैं कि इस बार आलू की पैदावार ही कम हुई थी. वर्तमान में किसानों के पास आलू बचे ही नहीं हैं, जो आलू हैं उन्हें वह बीज के रूप में प्रयोग कर रहे हैं. जिले की सबसे बड़ी मंडी के व्यापारी दावा करते हैं कि फिलहाल कोल्ड स्टोरेज में भी पर्याप्त मात्रा में आलू नहीं हैं. यही कारण है कि आलू की कीमतों में वृद्धि देखी जा रही है. हालांकि वह यह जरुर कहते हैं कि आने वाले दिनों में जैसे ही सब्जियों की नई पैदावार बाजार में उपलब्ध होगी. आलू की कीमतों में गिरावट भी देखने को मिलेगी और सही मायने में तभी आम आदमियों को राहत मिल पाएगी.

विक्रेताओं की मनमानी से जनता पर पड़ता है बोझ
इसके साथ ही वह यह भी जोड़ते हैं कि कई बार फुटकर विक्रेता भी मनमाफिक सब्जियों के दाम लगाकर ग्राहकों को बेचते हैं. कुछ यही कारण है कि ग्राहकों को थोक बाजार से दोगुने से भी ज्यादा रेट में सब्जी मुहैया हो पाती है. इसके लिए जरूरत है फुटकर विक्रेताओं पर स्थानीय प्रशासन नकेल कसे.

बारिश के कारण बढ़े हैं दाम
गल्ला मंडी के टमाटर व्यापारी मो. इस्लाम कहते हैं कि बेमौसम बारिश में बड़ी मात्रा में टमाटर की पैदावार को नुकसान पहुंचाया था. यही कारण है कि टमाटर के रेट में तेजी देखी जा रही है. फिलहाल रायबरेली में जो टमाटर आ रहा है. वह मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले से आ रहा है. गैर प्रांत से आने का कारण इसके मूल्य में वृद्धि है. आने वाले दिनों में जब उत्तर प्रदेश के ही रॉबर्ट्सगंज व आसपास के क्षेत्रों से टमाटर की पैदावार रायबरेली लाई जा सकेगी. तब इसके दामों में जरूर गिरावट देखने को मिलेगी.

यदि न रुकता एक्सपोर्ट तब प्याज के दाम होते 200 रुपये किलो
गल्ला मंडी के प्याज कारोबारी मो. जुबैर कहते हैं कि मौसम की मार से पहले ही बड़ी तादाद में प्याज बर्बाद हो चुका था. यही कारण है कि गैर प्रांतों से आ रहा प्याज बेहद महंगा हो गया है. हालांकि वह मानते हैं कि सरकार ने प्याज के दामों पर नियंत्रण लगाते हुए पहले ही से ही बॉर्डर सील कर रखा है. साथ ही इसके एक्सपोर्ट पर भी रोक लगा रखी थी, नहीं तो प्याज के दामों में बेतहाशा वृद्धि होते हुए इसकी कीमत कम से कम 150 से 200 रुपये प्रति किलो तक जा सकती थी. वहीं, जुबैर जमाखोरी को भी एक सिरे से नकारते नजर आते हैं.

अरहर की दाल में दर्ज हुई गिरावट
अरहर के दाल के थोक कारोबारी राजेश कुमार गुप्ता कहते हैं विगत 1 माह पूर्व अरहर की दाल के दामों में अचानक से वृद्धि देखी गई थी, लेकिन अब दाम नियंत्रण में हैं और बाजार में थोक का रेट 90 से 95 रुपये प्रति किलो चल रहा है. हालांकि दाल के बढ़ते दामों के पीछे जमाखोरी के प्रयासों को वह एक सिरे से नकारते नजर आते हैं.

मसालों के दामों पर है नियंत्रण, सरकार चाहे तभी सुलभ होगी थाली
वहीं, मसालों व दाल के दूसरे थोक व फुटकर विक्रेता शिव शंकर अग्रहरी कहते हैं कि सरकार द्वारा टैक्स वसूली को लेकर जोर देने के कारण ही दाल के दामों में बढ़ोतरी हुई थी. बाद में जब सरकार ने इस ओर थोड़ी ढिलाई बरती तो दाल मिल मालिकों ने थोड़ी रियायत दी है. सरकार अगर चाहे तो अपनी नीतियों में सुधार करके हर गरीब आदमी की थाली में सस्ते दामों में चीजें सुलभता से पहुंचा सकती है. हालांकि वह कहते हैं कि इस समय हल्दी, धनिया, मिर्च समेत तमाम मसालों के रेट भी फिलहाल पहले से घटे हैं. यही कारण है कि चीजें कंट्रोल में दिख रही हैं.

बढ़ती महंगाई ने आम आदमी से छीन लिया निवाला
रायबरेली शहर के सत्य नगर निवासी धीरेंद्र सिंह कहते हैं कि गरीब के मुंह से निवाला छीना जा चुका है. अब लोगों को सब्जियां भी नसीब नहीं हो रही. महंगाई अभूतपूर्व है और यही कारण है कि त्योहारों से अब खुशी नहीं घबराहट होती है. हालात इस कदर बदतर हैं कि जनता सब्जियों के लिए भी अब मोहताज नजर आती है, जो सब्जियां कभी 10 से 20 रुपये किलो बिकती थी. अब वह सभी 50 से ऊपर हैं. धीरे-धीरे आम आदमी की थाली से सब्जी नदारद हो गई है.

बढ़े दाम जमाखोरों की धांधली का है नतीजा
शहर के दुर्गा मार्केट निवासी सतीश सक्सेना कहते हैं कि हर जगह धांधली है. जमाखोरों के कारण सब्जी समेत सभी खाने की वस्तुएं आसमान छू रही हैं और सरकार इस ओर ध्यान भी नहीं दे रही. अब आम आदमी की थाली में सिर्फ नमक और रोटी ही बची है, क्योंकि दाल व सब्जी दोनों ही इतने महंगे हो चुके हैं कि उनको खरीद के लाना संभव नहीं है. समझ में नहीं आता 10 आदमियों के परिवार का भरण-पोषण इन परिस्थितियों में कैसे किया जाए?

महिलाओं की रसोई पहुंची ताला बंदी के कगार पर
गृहणी शैलजा कहती हैं कि महिलाओं के लिए यह बेहद कठिन दौर है. नवरात्र के दिनों में जब परिवार के ज्यादातर सदस्य व्रत हुआ करते थे. तब भी सब कुछ बेहद महंगा था. आलू तक सामान्य रेट पर नहीं मिल रहा है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है हालात किस कदर बिगड़े हुए हैं.

जमाखोरी व सरकारी नियंत्रण के अभाव के कारण मंहगी हुई सब्जियां
आर्थिक व बाजार के जानकार विजय विद्रोही कहते हैं कि सब्जी समेत अन्य खाद्य पदार्थों के बाजार मूल्य में भारी वृद्धि किसी वस्तु की कमी के कारण नहीं हुई है बल्कि इसके मूल्य में वृद्धि जमाखोरी व सरकारी तंत्र के नियंत्रण में अभाव का कारण है.

किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिलता है. 2 माह पूर्व तक इंदौर व नासिक जैसी बड़ी मंडियों में किसानों से जब प्याज खरीदा जा रहा था. तब 55 रुपये किलो की बोरी की कीमत महज 45 से 50 रुपये थी. जब व्यापारियों के पास वही प्याज पहुंचा तब उसकी कीमत में इजाफा हो गया. आम आदमियों तक पहुंचने में उसकी कीमत में 70 रुपये प्रति किलो के रेट तक पहुंच गई.

क्या कहते हैं मंडी सचिव ?
इस पूरे मसले पर रायबरेली के नवीन गल्ला मंडी परिसर के प्रभारी अधिकारी व मंडी सचिव देवता नाथ त्रिपाठी कहते हैं कि शासन द्वारा जमाखोरों पर नकेल कसने के निर्देश पहले से ही जारी किए जा चुके हैं. किसी भी सूरत में ऐसे लोगों को बख्शा नहीं जाएगा. फिलहाल अब तक कोई ऐसा मामला रायबरेली में प्रकाश में नहीं आया है. हालांकि वह कहते हैं कि आने वाले दिनों में आलू, प्याज व टमाटर समेत ज्यादातर सब्जियों के बढ़े दामों में कमी आएगी और जल्द ही आम आदमी को राहत मिलेगी.

मांसाहारी थाली पर भी पड़ी है महंगाई की मार
मंहगाई का दंश केवल शाकाहारियों को ही नहीं भोगना पड़ रहा है. इसकी छाया हर किस्म के खानों पर नजर आती है. मीट व चिकन के बढ़े रेट का नतीजा यह है कि मांसाहारी थाली भी अब सजती नजर नहीं आती. यहां तक की अंडे भी महंगे हो चुके हैं. शहर के प्रमुख चौराहे पर चिकन बेचने वाले सलमान कहते हैं कि नवरात्र के दौरान चिकन की खपत में गिरावट रही पर रेट में लगातार वृद्धि जारी है. रेट बढ़ने के कारण लोग अब दूरी बना रहे है.

सब्जी/दाल/मसालादाम
आलू 45
टमाटर60
प्याज 80
लौकी40
अरहर दाल115
हल्दी100
धनियां100
जीरा180
मिर्च180

रायबरेली: एक ओर वैश्विक महामारी का प्रकोप तो वहीं दूसरी तरफ खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों ने आम आदमी को हलकान कर रखा है. मंहगाई की मार से बेबस जनता में दीवाली से पहले ही बढ़ी कीमतों का भय व्याप्त है. सबसे ज्यादा परेशानी सब्जी के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि के कारण है. आलू से लेकर प्याज व टमाटर समेत ज्यादातर सब्जियों के मूल्य में जबरदस्त वृद्धि हुई है, जिसका नतीजा है कि आम आदमी के हाथ से थाली भी दूर खिसकती नजर आती है.

बता दें कि बढ़ती कीमत सिर्फ सब्जियों तक सीमित नहीं है. दाल व मसालों पर भी इसकी गहरी छाप देखी जा रही है. यहां तक मांसाहारी थाली में भी मीट व चिकन जुटाने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. मंहगाई की मार से त्रस्त जनता की वास्तविक समस्याओं से रुबरु कराती पेश है ETV भारत की यह स्पेशल रिपोर्ट.

देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

सब्जी की बढ़ी कीमतों पर व्यापारियों का है अपना राग
सब्जी की बढ़ी कीमतों से आम आदमी परेशान है और उसे कुछ सूझ नहीं रहा है. वहीं सब्जी कारोबारी इसको लेकर तमाम तरह के लॉजिक देते नजर आ रहे हैं. सबकी अपनी-अपनी दलीलें हैं, लेकिन कुल मिलाकर सब यही कहते हैं कि कीमतों में जल्द गिरावट होने के आसार कम ही नजर आते हैं.

आलू की कम पैदावार से बढ़ी आलू की कीमतें
रायबरेली के रतापुर इलाके की नवीन गल्ला मंडी के आलू के थोक व्यापारी मो. मोइन बढ़ी हुई कीमत पर कहते हैं कि इस बार आलू की पैदावार ही कम हुई थी. वर्तमान में किसानों के पास आलू बचे ही नहीं हैं, जो आलू हैं उन्हें वह बीज के रूप में प्रयोग कर रहे हैं. जिले की सबसे बड़ी मंडी के व्यापारी दावा करते हैं कि फिलहाल कोल्ड स्टोरेज में भी पर्याप्त मात्रा में आलू नहीं हैं. यही कारण है कि आलू की कीमतों में वृद्धि देखी जा रही है. हालांकि वह यह जरुर कहते हैं कि आने वाले दिनों में जैसे ही सब्जियों की नई पैदावार बाजार में उपलब्ध होगी. आलू की कीमतों में गिरावट भी देखने को मिलेगी और सही मायने में तभी आम आदमियों को राहत मिल पाएगी.

विक्रेताओं की मनमानी से जनता पर पड़ता है बोझ
इसके साथ ही वह यह भी जोड़ते हैं कि कई बार फुटकर विक्रेता भी मनमाफिक सब्जियों के दाम लगाकर ग्राहकों को बेचते हैं. कुछ यही कारण है कि ग्राहकों को थोक बाजार से दोगुने से भी ज्यादा रेट में सब्जी मुहैया हो पाती है. इसके लिए जरूरत है फुटकर विक्रेताओं पर स्थानीय प्रशासन नकेल कसे.

बारिश के कारण बढ़े हैं दाम
गल्ला मंडी के टमाटर व्यापारी मो. इस्लाम कहते हैं कि बेमौसम बारिश में बड़ी मात्रा में टमाटर की पैदावार को नुकसान पहुंचाया था. यही कारण है कि टमाटर के रेट में तेजी देखी जा रही है. फिलहाल रायबरेली में जो टमाटर आ रहा है. वह मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले से आ रहा है. गैर प्रांत से आने का कारण इसके मूल्य में वृद्धि है. आने वाले दिनों में जब उत्तर प्रदेश के ही रॉबर्ट्सगंज व आसपास के क्षेत्रों से टमाटर की पैदावार रायबरेली लाई जा सकेगी. तब इसके दामों में जरूर गिरावट देखने को मिलेगी.

यदि न रुकता एक्सपोर्ट तब प्याज के दाम होते 200 रुपये किलो
गल्ला मंडी के प्याज कारोबारी मो. जुबैर कहते हैं कि मौसम की मार से पहले ही बड़ी तादाद में प्याज बर्बाद हो चुका था. यही कारण है कि गैर प्रांतों से आ रहा प्याज बेहद महंगा हो गया है. हालांकि वह मानते हैं कि सरकार ने प्याज के दामों पर नियंत्रण लगाते हुए पहले ही से ही बॉर्डर सील कर रखा है. साथ ही इसके एक्सपोर्ट पर भी रोक लगा रखी थी, नहीं तो प्याज के दामों में बेतहाशा वृद्धि होते हुए इसकी कीमत कम से कम 150 से 200 रुपये प्रति किलो तक जा सकती थी. वहीं, जुबैर जमाखोरी को भी एक सिरे से नकारते नजर आते हैं.

अरहर की दाल में दर्ज हुई गिरावट
अरहर के दाल के थोक कारोबारी राजेश कुमार गुप्ता कहते हैं विगत 1 माह पूर्व अरहर की दाल के दामों में अचानक से वृद्धि देखी गई थी, लेकिन अब दाम नियंत्रण में हैं और बाजार में थोक का रेट 90 से 95 रुपये प्रति किलो चल रहा है. हालांकि दाल के बढ़ते दामों के पीछे जमाखोरी के प्रयासों को वह एक सिरे से नकारते नजर आते हैं.

मसालों के दामों पर है नियंत्रण, सरकार चाहे तभी सुलभ होगी थाली
वहीं, मसालों व दाल के दूसरे थोक व फुटकर विक्रेता शिव शंकर अग्रहरी कहते हैं कि सरकार द्वारा टैक्स वसूली को लेकर जोर देने के कारण ही दाल के दामों में बढ़ोतरी हुई थी. बाद में जब सरकार ने इस ओर थोड़ी ढिलाई बरती तो दाल मिल मालिकों ने थोड़ी रियायत दी है. सरकार अगर चाहे तो अपनी नीतियों में सुधार करके हर गरीब आदमी की थाली में सस्ते दामों में चीजें सुलभता से पहुंचा सकती है. हालांकि वह कहते हैं कि इस समय हल्दी, धनिया, मिर्च समेत तमाम मसालों के रेट भी फिलहाल पहले से घटे हैं. यही कारण है कि चीजें कंट्रोल में दिख रही हैं.

बढ़ती महंगाई ने आम आदमी से छीन लिया निवाला
रायबरेली शहर के सत्य नगर निवासी धीरेंद्र सिंह कहते हैं कि गरीब के मुंह से निवाला छीना जा चुका है. अब लोगों को सब्जियां भी नसीब नहीं हो रही. महंगाई अभूतपूर्व है और यही कारण है कि त्योहारों से अब खुशी नहीं घबराहट होती है. हालात इस कदर बदतर हैं कि जनता सब्जियों के लिए भी अब मोहताज नजर आती है, जो सब्जियां कभी 10 से 20 रुपये किलो बिकती थी. अब वह सभी 50 से ऊपर हैं. धीरे-धीरे आम आदमी की थाली से सब्जी नदारद हो गई है.

बढ़े दाम जमाखोरों की धांधली का है नतीजा
शहर के दुर्गा मार्केट निवासी सतीश सक्सेना कहते हैं कि हर जगह धांधली है. जमाखोरों के कारण सब्जी समेत सभी खाने की वस्तुएं आसमान छू रही हैं और सरकार इस ओर ध्यान भी नहीं दे रही. अब आम आदमी की थाली में सिर्फ नमक और रोटी ही बची है, क्योंकि दाल व सब्जी दोनों ही इतने महंगे हो चुके हैं कि उनको खरीद के लाना संभव नहीं है. समझ में नहीं आता 10 आदमियों के परिवार का भरण-पोषण इन परिस्थितियों में कैसे किया जाए?

महिलाओं की रसोई पहुंची ताला बंदी के कगार पर
गृहणी शैलजा कहती हैं कि महिलाओं के लिए यह बेहद कठिन दौर है. नवरात्र के दिनों में जब परिवार के ज्यादातर सदस्य व्रत हुआ करते थे. तब भी सब कुछ बेहद महंगा था. आलू तक सामान्य रेट पर नहीं मिल रहा है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है हालात किस कदर बिगड़े हुए हैं.

जमाखोरी व सरकारी नियंत्रण के अभाव के कारण मंहगी हुई सब्जियां
आर्थिक व बाजार के जानकार विजय विद्रोही कहते हैं कि सब्जी समेत अन्य खाद्य पदार्थों के बाजार मूल्य में भारी वृद्धि किसी वस्तु की कमी के कारण नहीं हुई है बल्कि इसके मूल्य में वृद्धि जमाखोरी व सरकारी तंत्र के नियंत्रण में अभाव का कारण है.

किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिलता है. 2 माह पूर्व तक इंदौर व नासिक जैसी बड़ी मंडियों में किसानों से जब प्याज खरीदा जा रहा था. तब 55 रुपये किलो की बोरी की कीमत महज 45 से 50 रुपये थी. जब व्यापारियों के पास वही प्याज पहुंचा तब उसकी कीमत में इजाफा हो गया. आम आदमियों तक पहुंचने में उसकी कीमत में 70 रुपये प्रति किलो के रेट तक पहुंच गई.

क्या कहते हैं मंडी सचिव ?
इस पूरे मसले पर रायबरेली के नवीन गल्ला मंडी परिसर के प्रभारी अधिकारी व मंडी सचिव देवता नाथ त्रिपाठी कहते हैं कि शासन द्वारा जमाखोरों पर नकेल कसने के निर्देश पहले से ही जारी किए जा चुके हैं. किसी भी सूरत में ऐसे लोगों को बख्शा नहीं जाएगा. फिलहाल अब तक कोई ऐसा मामला रायबरेली में प्रकाश में नहीं आया है. हालांकि वह कहते हैं कि आने वाले दिनों में आलू, प्याज व टमाटर समेत ज्यादातर सब्जियों के बढ़े दामों में कमी आएगी और जल्द ही आम आदमी को राहत मिलेगी.

मांसाहारी थाली पर भी पड़ी है महंगाई की मार
मंहगाई का दंश केवल शाकाहारियों को ही नहीं भोगना पड़ रहा है. इसकी छाया हर किस्म के खानों पर नजर आती है. मीट व चिकन के बढ़े रेट का नतीजा यह है कि मांसाहारी थाली भी अब सजती नजर नहीं आती. यहां तक की अंडे भी महंगे हो चुके हैं. शहर के प्रमुख चौराहे पर चिकन बेचने वाले सलमान कहते हैं कि नवरात्र के दौरान चिकन की खपत में गिरावट रही पर रेट में लगातार वृद्धि जारी है. रेट बढ़ने के कारण लोग अब दूरी बना रहे है.

सब्जी/दाल/मसालादाम
आलू 45
टमाटर60
प्याज 80
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