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धन ही नहीं जन की कमी से भी जूझ रहे उद्यमी, राहत की दरकार

उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के कारोबारी इस समय पैसे के साथ-साथ श्रमिकों के नहीं होने के कारण भी परेशान दिख रहे हैं. लॉकडाउन के कारण श्रमिकों का जीना मुश्किल हो गया है, वहीं दूसरी ओर प्रवासी श्रमिक अपने घर जा चुके हैं.

श्रमिकों की कमी से जूझ रहे उद्यमी.
श्रमिकों की कमी से जूझ रहे उद्यमी.
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Published : May 22, 2020, 5:57 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:19 PM IST

रायबरेली: जिले के कारोबारी लॉकडाउन के कारण फैक्ट्रियों के बंद होने से काफी परेशान हैं. वहीं दोबारा से इन बंद पड़ी फैक्ट्रियों को शुरू करने के लिए फैक्ट्री मालिकों को श्रमिक नहीं मिल रहे हैं. दरअसल प्रवासी मजदूर लॉकडाउन के बाद अपने घरों को जा चुके हैं और जो स्थानीय मजदूर बचे भी हैं, वे भी बड़ी मुश्किल से मिल रहे हैं.

श्रमिकों की कमी से जूझ रहे उद्यमी.

उद्योग-धंधे दोबारा से पटरी पर दौड़ सकें, इसी मकसद से केंद्र सरकार ने आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी. आर्थिक पैकेज के जरिए कई रियायतें देने का दावा भी सरकार कर रही थी. लॉकडाउन के चौथे चरण में इंडस्ट्रीज के संचालन पर प्रशासन जोर दे रहा है. वहीं दूसरी ओर बिगड़ते हालात से परेशान उद्यमी मुखर होकर अपनी आप बीती कहने को मजबूर हैं. ईटीवी भारत ने रायबरेली जनपद के कुछ उद्यमियों से इस विषय पर बात कर उनका रुख जानने का प्रयास किया.

रायबरेली के बड़े उद्यमियों में गिने जाने वाले आस्था इंडस्ट्रीज के मालिक महेंद्र गुप्ता ने ईटीवी भारत को बताया कि आने वाले समय में इंडस्ट्री को चलाने में सबसे बड़ी चुनौती श्रमिकों का न होना रहेगा. सरकार के आर्थिक पैकेज पर निशाना साधते हुए वह कहते हैं कि हम उद्यमियों के लिए इस पैकेज में कुछ भी ठोस नहीं था. सरकार को कम से कम ब्याज में 2 - 3 प्रतिशत की छूट देकर ही हमें राहत देनी चाहिए थी.

वर्तमान समय की चुनौतियों के बारे में गुप्ता कहते हैं कि कच्चे माल का मिलना इस समय असंभव दिखता है. साथ ही कमर्शियल एक्टिविटी बंद होने के कारण डिमांड में भी भारी कमी है. लेबर की समस्या का कोई हल भी निकलता नहीं दिख रहा है, इसीलिए हम लोगों पर लॉकडाउन की दोहरी मार पड़ी है.

शहर के इंडस्ट्रियल एरिया में प्लास्टिक फैक्ट्री का संचालन कर रहे युवा उद्यमी प्रदीप शुक्ला कहते हैं कि सरकार का आर्थिक पैकेज उनके समझ से परे है. बैंक से ऋण लेकर करीब साल भर पहले ही उन्होंने फैक्ट्री डाली थी. इस बीच जो बचत हुई वह 2 महीने की छुट्टी के दौरान वर्कर की सैलरी में चला गया. अब पूंजी बची नहीं है और साथ ही सब कुछ ठप होने के कारण बाजार से उधार मिलना भी संभव नहीं है. प्रवासी श्रमिक चले गए हैं और लोकल स्तर पर लेबर मिल नहीं रहे हैं, इसीलिए दोबारा पुराने ढर्रे पर इंडस्ट्री को लाना फिलहाल कठिन दिखता है.

इसे भी पढ़ें:-बांदा: नाबालिग ने जीभ काटकर मंदिर में चढ़ाई, गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती

शासन की मंशा के अनुरुप उद्योगों के पुनः संचालन में उद्यमियों को हर संभव मदद दी जा रही है. प्रयास यही है कि कोरोना से बचाव को लेकर जारी किए गए नियमों को पालन करते हुए जिले की सभी इंडस्ट्रीज जल्द ही अपना काम शुरू कर देंगी.
महेश चंद्र,अधिकारी, जिला उद्योग केंद्र

रायबरेली: जिले के कारोबारी लॉकडाउन के कारण फैक्ट्रियों के बंद होने से काफी परेशान हैं. वहीं दोबारा से इन बंद पड़ी फैक्ट्रियों को शुरू करने के लिए फैक्ट्री मालिकों को श्रमिक नहीं मिल रहे हैं. दरअसल प्रवासी मजदूर लॉकडाउन के बाद अपने घरों को जा चुके हैं और जो स्थानीय मजदूर बचे भी हैं, वे भी बड़ी मुश्किल से मिल रहे हैं.

श्रमिकों की कमी से जूझ रहे उद्यमी.

उद्योग-धंधे दोबारा से पटरी पर दौड़ सकें, इसी मकसद से केंद्र सरकार ने आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी. आर्थिक पैकेज के जरिए कई रियायतें देने का दावा भी सरकार कर रही थी. लॉकडाउन के चौथे चरण में इंडस्ट्रीज के संचालन पर प्रशासन जोर दे रहा है. वहीं दूसरी ओर बिगड़ते हालात से परेशान उद्यमी मुखर होकर अपनी आप बीती कहने को मजबूर हैं. ईटीवी भारत ने रायबरेली जनपद के कुछ उद्यमियों से इस विषय पर बात कर उनका रुख जानने का प्रयास किया.

रायबरेली के बड़े उद्यमियों में गिने जाने वाले आस्था इंडस्ट्रीज के मालिक महेंद्र गुप्ता ने ईटीवी भारत को बताया कि आने वाले समय में इंडस्ट्री को चलाने में सबसे बड़ी चुनौती श्रमिकों का न होना रहेगा. सरकार के आर्थिक पैकेज पर निशाना साधते हुए वह कहते हैं कि हम उद्यमियों के लिए इस पैकेज में कुछ भी ठोस नहीं था. सरकार को कम से कम ब्याज में 2 - 3 प्रतिशत की छूट देकर ही हमें राहत देनी चाहिए थी.

वर्तमान समय की चुनौतियों के बारे में गुप्ता कहते हैं कि कच्चे माल का मिलना इस समय असंभव दिखता है. साथ ही कमर्शियल एक्टिविटी बंद होने के कारण डिमांड में भी भारी कमी है. लेबर की समस्या का कोई हल भी निकलता नहीं दिख रहा है, इसीलिए हम लोगों पर लॉकडाउन की दोहरी मार पड़ी है.

शहर के इंडस्ट्रियल एरिया में प्लास्टिक फैक्ट्री का संचालन कर रहे युवा उद्यमी प्रदीप शुक्ला कहते हैं कि सरकार का आर्थिक पैकेज उनके समझ से परे है. बैंक से ऋण लेकर करीब साल भर पहले ही उन्होंने फैक्ट्री डाली थी. इस बीच जो बचत हुई वह 2 महीने की छुट्टी के दौरान वर्कर की सैलरी में चला गया. अब पूंजी बची नहीं है और साथ ही सब कुछ ठप होने के कारण बाजार से उधार मिलना भी संभव नहीं है. प्रवासी श्रमिक चले गए हैं और लोकल स्तर पर लेबर मिल नहीं रहे हैं, इसीलिए दोबारा पुराने ढर्रे पर इंडस्ट्री को लाना फिलहाल कठिन दिखता है.

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शासन की मंशा के अनुरुप उद्योगों के पुनः संचालन में उद्यमियों को हर संभव मदद दी जा रही है. प्रयास यही है कि कोरोना से बचाव को लेकर जारी किए गए नियमों को पालन करते हुए जिले की सभी इंडस्ट्रीज जल्द ही अपना काम शुरू कर देंगी.
महेश चंद्र,अधिकारी, जिला उद्योग केंद्र

Last Updated : Sep 17, 2020, 4:19 PM IST
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