रायबरेली: दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में मनाया जाने वाला पर्व है. विजयदशमी पर रावण दहन की मान्यता भी सदियों से चली आ रही है. मगर रावण मुक्त समाज बनने की राह अभी भी अधूरी है. हर साल दशहरा मनाया जाता है और रावण जलाया जाता है, पर जलाने के बाद भी समाज से रावण रूपी दानव का अंश नहीं मिटता और न ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम जैसे व्यक्तित्व मिलते हैं.
'मन से रावण को निकालो, राम तेरे मन में हैं'
समाज के हर वर्ग में हमें रावण बड़ी ही आसानी से मिल जाते हैं, उन्हें ढूढ़ना भी नहीं पड़ता. विभिन्न स्वरूपों में हर तरह के रावण हमसे रू-ब-रू होते हैं. इसी कड़ी में विजयदशमी के पर्व पर ईटीवी भारत ने शहर के कुछ प्रबुद्ध वर्ग के लोगों से समाज में व्याप्त दोषों पर चर्चा की और जानने की कोशिश की उनकी इस विषय पर क्या राय है.
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डॉ. हेमंत सिंह, आईएमए प्रमुख व वरिष्ठ चिकित्सक ने कहा कि, राम-रावण हमारी सोच में हैं. जरूरत है कि स्वयं का आंकलन कर खुद से बुराइयों को खत्म करने का संकल्प ले. वहीं बुराइयों के हटते ही अच्छाइयां खुद स्थापित हो जाएगी. धनवान व्यक्ति को समाज में दी जाने वाली तरजीह हर चीज पर भारी पड़ रही है. जरुरत है कि धनवान से ज्यादा चरित्रवान व्यक्ति को तरजीह दी जाए.
प्रो. जीतेंद्र, सीनियर फैकल्टी प्रोफेसर, फिरोज गांधी डिग्री कॉलेज ने कहा कि, समाज में स्वार्थ रुपी रावण का इस कदर अंबार लगा है कि हम चाह कर भी उससे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. वहीं हर व्यक्ति के अंदर रावण और श्रीराम दोनों हो समाहित होते हैं इसीलिए बुराई पर अच्छाई के विजय के इस पर्व पर हम सबको श्रीराम से प्रेरणा लेकर जीवन पथ पर अग्रसर होना चाहिए.
राघवेंद्र मिश्र, एडवोकेट कहा कि, आज लोगों की सबसे बड़ी जरूरत है आत्ममंथन और स्वमूल्यांकन करने की. वहीं शासक वर्ग को इस बात का ध्यान देने चाहिए कि सरकारी तंत्र में छिपे रावण को कैसे समाप्त किया जाए. समाज के हर वर्ग तक कल्याणकारी योजनाएं सुलभ कराई जाए, जिससे लोगों को लाभ मिल सके.