रायबरेली: कोरोना काल के दौरान 'कोरोना फाइटर' शब्द का इजाद चिकित्सकों के लिए किया गया था. हालांकि, बाद में अन्य पेशेवर लोगों को भी इस श्रेणी में शुमार किया गया, लेकिन इससे डॉक्टरों की अहमियत कम नहीं हुई. एक जुलाई को जब पूरा देश डॉक्टर्स डे मना रहा है, तब इस संकट काल में धरती का भगवान करार दिए जाने वाले चिकित्सकों को हम नमन करते हैं. खासकर वह चिकित्सक, जो अपनी जान की परवाह किए बगैर ही देश-दुनिया को तबाह करने वाली इस अंजान बीमारी से तब दो-दो हाथ करने पर उतारु हो गए, जब इस अदृश्य बीमारी से जुड़ी ज्यादा कुछ जानकारी उन्हें खुद भी नहीं थी.
उत्तर प्रदेश के रायबरेली जनपद में ऐसी ही एक सरकारी चिकित्सक जो कोरोना वारियर की भूमिका का बखूबी निर्वहन करते रहे. ईटीवी भारत की टीम ने कोरोना वारियर डॉ. शिवकुमार से बातचीत की. दरअसल, शासन के निर्देश पर जिला चिकित्सालय परिसर में कोरोना वार्ड बनाया गया था. इस वार्ड में कोरोना के लक्षण पाए जाने वाले मरीजों को टेस्ट की रिपोर्ट आने तक आइसोलेशन वार्ड में रखा जाता था. इसी कोरोना वार्ड के मरीजों की देखरेख का जिम्मा डॉ. शिवकुमार को सौंपा गया था. अनवरत ऐसे मरीजों की संख्या बरकरार रही और डॉ. शिवकुमार भी उनकी इलाज करते रहे.
न डरे न डिगे, बस डटे रहे
डॉ. शिवकुमार कहते हैं कि जिला अस्पताल के कोरोना वार्ड में ड्यूटी के दौरान कोरोना संदिग्ध मरीजों के निगरानी की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई थी. संकट के इस दौर में विभाग के आला अधिकारियों की ओर से दी गई इस जिम्मेदारी को उन्होंने बखूबी निभाया है. हालांकि उनके परिवार में दो नन्हे बच्चे भी हैं. उनकी पत्नी और वह खुद दोनों ही चिकित्सक होने के कारण हालात से भली भांति वाकिफ थे कि खुद कैसे बचना और कैसे परिवार वालों को बचाना है? काम थोड़ा मुश्किल जरूर था, पर मरीजों का उपचार करना सर्वोपरि. यही वजह रही कि उन्होंने बच्चों को समझा कर दूरी बनाए रखी और मरीजों का इलाज भी जारी रहा.
कोरोना वार्ड का माहौल और उससे उबरने के तौर-तरीके
कोरोना वार्ड के माहौल के बारे में पूछने पर डॉ. शिवकुमार कहते हैं कि माहौल बेहद संजीदा हुआ करता था. हमें मरीजों की काउंसलिंग भी करनी पड़ती थी. यह भी पता नहीं होता था कि मरीज कोरोना पॉजिटिव है भी कि नहीं? कई बार संदिग्धों में से कई मरीजों की रिपोर्ट पॉजिटिव भी आई, लेकिन कठिन समय में सबका मनोबल बरकरार रखा और खुद भी सयंमित होकर काम करते रहे.