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HC: श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा के मामले में फैसला सुरक्षित - श्रृंगार गौरी की न्यूज

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा के मामले में शुक्रवार को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया.

High court news
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Published : Dec 23, 2022, 9:38 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (High court) ने श्रृंगार गौरी (Shringar Gauri case) की नियमित पूजा के मामले में शुक्रवार को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया. यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से दाखिल याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई पूरी होने के बाद दिया है.

अंजुमने इंतजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से कहा गया कि नियमित पूजा उपासना स्थल अधिनियम से नियमित पूजा प्रतिबंधित है इसलिए यहां नियमित पूजा की अनुमति नहीं मिलना चाहिए. कमेटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी ने बहस की. उन्होंने कुल तीन बिंदुओं पर अपना पक्ष रखा. कहा, जिला अदालत में श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा के लिए दाखिल वाद सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि यह उपासना स्थल से प्रतिबंधित है. मंदिर पक्ष यह स्पष्ट नहीं कर पाया है कि पूजा 1990 में रोकी गई या 1993 में. यदि इन दोनों ही तिथियों में नियमित पूजा रोकी गई तो यह लिमिटेशन एक्ट से प्रतिबंधित है. लिमिटेशन एक्ट से वाद केवल तीन वर्षों के भीतर ही दाखिल हो सकता है. दूसरा यह कि यह उपासना स्थल अधिनियम से भी प्रतिबंधित है. 15 अगस्त 1947 से ज्ञानवापी मस्जिद का वही स्टेट्स बरकरार रहना चाहिए. इसके अलावा यह सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश सात के नियम 11 के तहत राहत पाने के हकदार नहीं है. यह काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता है.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (High court) ने श्रृंगार गौरी (Shringar Gauri case) की नियमित पूजा के मामले में शुक्रवार को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया. यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से दाखिल याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई पूरी होने के बाद दिया है.

अंजुमने इंतजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से कहा गया कि नियमित पूजा उपासना स्थल अधिनियम से नियमित पूजा प्रतिबंधित है इसलिए यहां नियमित पूजा की अनुमति नहीं मिलना चाहिए. कमेटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी ने बहस की. उन्होंने कुल तीन बिंदुओं पर अपना पक्ष रखा. कहा, जिला अदालत में श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा के लिए दाखिल वाद सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि यह उपासना स्थल से प्रतिबंधित है. मंदिर पक्ष यह स्पष्ट नहीं कर पाया है कि पूजा 1990 में रोकी गई या 1993 में. यदि इन दोनों ही तिथियों में नियमित पूजा रोकी गई तो यह लिमिटेशन एक्ट से प्रतिबंधित है. लिमिटेशन एक्ट से वाद केवल तीन वर्षों के भीतर ही दाखिल हो सकता है. दूसरा यह कि यह उपासना स्थल अधिनियम से भी प्रतिबंधित है. 15 अगस्त 1947 से ज्ञानवापी मस्जिद का वही स्टेट्स बरकरार रहना चाहिए. इसके अलावा यह सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश सात के नियम 11 के तहत राहत पाने के हकदार नहीं है. यह काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता है.

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