प्रयागराजः हर साल की तरह इस बार भी होलिका दहन से पहले प्रयागराज चौक की ऐतिहासिक हथौड़ा बरात निकाली गई. दूल्हे के रूप में हथौड़े को सजाया गया और उसके बाद पूरे रीति रिवाज के साथ ढोल-ताशे के साथ हथोड़े की अनूठी बारात निकाली गई. इस अनूठी परंपरा वाली शादी में एक भारी-भरकम हथौड़ा कद्दू भंजन के साथ-ढोल ताशे की धुन पर लोग नाचते दिखाई दिए. कद्दू भंजन संस्था के लोगों का कहना है कि इस बार कद्दू भंजन के साथ कोरोना समाप्त करने की कामना की गई है. रास्ते भर हथौड़ा बरात देखने वाल खड़े रहे.
हथौड़े से किया कद्दू भंजन
इस बार इस ऐतिहासिक हथोड़ा बरात पर भी कोरोना वायरस का असर पड़ा है. हर बार डीजे, हाथी-घोड़ा इस बरात में शामिल होते थे. लेकिन इस बार इस हथौड़े बरात की भव्यता में थोड़ी सी कमी आई है. इस बरात की खास बात यह है कि पहले दूल्हे की तरह पहले हथौड़े की नजर उतारी जाती है उसके काजल लगाया जाता है. यहां हथौड़े दूल्हे की नजर लालटेन से उतारी जाती है. इसके बाद हथौड़े से कद्दू को फोड़ा जाता है, जिसको कद्दू भंजन भी कहते हैं.
सदियों पुरानी परंपरा
धार्मिक नगरी कहे जाने वाले प्रयागराज की यह परंपरा सदियों पुरानी है. यहां होलिका दहन होने से पहले शहर की सड़कों पर पूरे विधि विधान के साथ हथौड़े की बारात निकाली जाती है. लोगों की माने तो इस हथौड़े बरात का मकसद समाज में फैली कुरीतियों को खत्म करना भी है. शहर की गलियों में जैसे ही हथौड़े दूल्हे राजा निकलते हैं और सैकड़ों लोग ढोल नगाड़ों के साथ इसमें शामिल होते हैं. इसमें आम शादियों की तरह डांस भी होता है. इस हथोड़ा बरात में वही भव्यता देखने को मिलती है जो की एक आम शादी में देखने को मिलती है. इस तरह का नजारा पूरे देश में कहीं देखने को नहीं मिलता है.
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हथौड़ा बरात की धार्मिक मान्यता
हथौड़ा बरात के संयोजक संजय सिंह के मुताबिक इसकी अपनी एक धार्मिक मान्यता भी है. पुराण के 126 वे श्लोक में वर्णन है कि भगवान विष्णु प्रलय काल के बाद प्रयागराज में अक्षयवट के छांव में बैठे थे. उन्होंने सृष्टि की फिर से रचना करने के लिए भगवान विश्वकर्मा से आह्वान किया. उस समय भगवान विश्वकर्मा समझ समझ में नहीं आया कि क्या किया जाए. इसके बाद भगवान विष्णु ने यहीं पर तपस्या, हवन, यज्ञ किया. इसके बाद ही इस हथौड़े की उत्पत्ति हुई. इसलिए इस संगम नगरी प्रयागराज को यह हथौड़ा प्यारा है.