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प्रयागराज: मिट्टी के दीयों की बिक्री पर टिकी है कुम्हारों की उम्मीद

देशभर में दीपावली की धूम देखने को मिल रही है. लोग अपने घर को रोशन करने के लिए तरह-तरह की चीज ले रहे हैं. वहीं कुम्हारों की आस उन मिट्टी के दीयों की बिक्री पर टिकी है.

दिवाली में कुम्हारों को उम्मीद.
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Published : Oct 27, 2019, 5:15 PM IST

प्रयागराज: दिवाली का त्योहार खुशियों का त्योहार होता है. कहते हैं कि इस दिन कोई भूखा नहीं सोता है, क्योंकि इसी दिन भगवान राम की अयोध्या में वापसी हुई थी. दिवाली का त्योहार जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे गांव से लेकर बाजारों तक रौनक देखने को मिल रही है. हर कोई इस त्योहार को खास अंदाज में मनाने के लिए जुटा है. इसके साथ ही कुम्हारों की चाक की रफ्तार बढ़ती नजर आ रहीं है. मिट्टी के खिलौना, दीपक और भगवान गणेश लक्ष्मी का आखिरी रूप देने में कुम्हार दिन-रात काम करते नजर आ रहे हैं.

दिवाली में कुम्हारों को उम्मीद.

दिवाली पर टीकी रहती है कुम्हारों की उम्मीद
कुम्हारों का कहना कि हर दिवाली हमारे लिए उम्मीद पर टिकी होती है, जितना दिया बिकता है उसी के आधार पर घर मे दिवाली मनाई जाती है. हम पिछले कई महीनों से दिन-रात मेनहत करके मिट्टी के दीपक बनाते हैं, लेकिन मार्केट में प्लस्टिक और इलेक्ट्रॉनिक आइटम आने से दिवाली का क्रेज खत्म होता नजर आ रहा है. दूसरे के घर को रौशन करने के लिए मिट्टी के दीपक बनाते हैं, लेकिन ठीक दाम नहीं मिलने से अपना ही घर अंधेरे में रहता है.

इसे भी पढ़ें- महराजगंज: बदहाल कुम्हार, चाइनीज झालर से जगमग शहर

50 वर्षों से कर रहे हैं यही काम
कुम्हार अर्जुन लाल बताते हैं कि दिवाली आने के तीन माह पहले से ही पूरा परिवार मिट्टी के बर्तन और दिया बनाने में दिन-रात मेनहत करता हैं, जिसमें मिट्टी के दिया के साथ भगवान की मूर्ति बनाकर कलर भरा जाता हैं. वहीं जितना भी माल माल तैयार होता है, उसकी बिक्री नहीं हो पाती है, जिसकी वजह से आज भी हमें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. 50 सालों से मिट्टी के बर्तन और दिया बनाने का काम कर रहें हैं, लेकिन सरकार की तरफ से ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

मिट्टी की भी चुकानी पड़ती है कीमत
अर्जुन लाल ने बताया कि पहले के समय मे मिट्टी फ्री मिल जाती थी, लेकिन अब ठेकेदारों को भी मिट्टी की कीमत देनी पड़ती है. मेनहत मजदूरी के हिसाब से रोजगार हो जाता है. दिवाली के बाद कुल्हड़ और प्याला बनाकर जीवन यापन करते हैं.

सरकार से मदद की गुहार
बहादुर लाल प्रजापति बताते हैं कि मिट्टी की मूर्ति बनना बहुत ही बारीक काम होता है. दिवाली आने से ठीक सात माह पहले से ही काम शुरू कर दिया जाता है, तभी दिवाली आते ही मूर्ति तैयार हो जाती है. अगर इतने पहले से काम न करें तो दिवाली के दिन घर मे ही दीपक न जले. हम सरकार से यहीं उम्मीद करते हैं कि कुम्हारों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ कदम बढ़ाए, जिससे साल भर रोजगार चलता रहे.

प्रयागराज: दिवाली का त्योहार खुशियों का त्योहार होता है. कहते हैं कि इस दिन कोई भूखा नहीं सोता है, क्योंकि इसी दिन भगवान राम की अयोध्या में वापसी हुई थी. दिवाली का त्योहार जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे गांव से लेकर बाजारों तक रौनक देखने को मिल रही है. हर कोई इस त्योहार को खास अंदाज में मनाने के लिए जुटा है. इसके साथ ही कुम्हारों की चाक की रफ्तार बढ़ती नजर आ रहीं है. मिट्टी के खिलौना, दीपक और भगवान गणेश लक्ष्मी का आखिरी रूप देने में कुम्हार दिन-रात काम करते नजर आ रहे हैं.

दिवाली में कुम्हारों को उम्मीद.

दिवाली पर टीकी रहती है कुम्हारों की उम्मीद
कुम्हारों का कहना कि हर दिवाली हमारे लिए उम्मीद पर टिकी होती है, जितना दिया बिकता है उसी के आधार पर घर मे दिवाली मनाई जाती है. हम पिछले कई महीनों से दिन-रात मेनहत करके मिट्टी के दीपक बनाते हैं, लेकिन मार्केट में प्लस्टिक और इलेक्ट्रॉनिक आइटम आने से दिवाली का क्रेज खत्म होता नजर आ रहा है. दूसरे के घर को रौशन करने के लिए मिट्टी के दीपक बनाते हैं, लेकिन ठीक दाम नहीं मिलने से अपना ही घर अंधेरे में रहता है.

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50 वर्षों से कर रहे हैं यही काम
कुम्हार अर्जुन लाल बताते हैं कि दिवाली आने के तीन माह पहले से ही पूरा परिवार मिट्टी के बर्तन और दिया बनाने में दिन-रात मेनहत करता हैं, जिसमें मिट्टी के दिया के साथ भगवान की मूर्ति बनाकर कलर भरा जाता हैं. वहीं जितना भी माल माल तैयार होता है, उसकी बिक्री नहीं हो पाती है, जिसकी वजह से आज भी हमें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. 50 सालों से मिट्टी के बर्तन और दिया बनाने का काम कर रहें हैं, लेकिन सरकार की तरफ से ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

मिट्टी की भी चुकानी पड़ती है कीमत
अर्जुन लाल ने बताया कि पहले के समय मे मिट्टी फ्री मिल जाती थी, लेकिन अब ठेकेदारों को भी मिट्टी की कीमत देनी पड़ती है. मेनहत मजदूरी के हिसाब से रोजगार हो जाता है. दिवाली के बाद कुल्हड़ और प्याला बनाकर जीवन यापन करते हैं.

सरकार से मदद की गुहार
बहादुर लाल प्रजापति बताते हैं कि मिट्टी की मूर्ति बनना बहुत ही बारीक काम होता है. दिवाली आने से ठीक सात माह पहले से ही काम शुरू कर दिया जाता है, तभी दिवाली आते ही मूर्ति तैयार हो जाती है. अगर इतने पहले से काम न करें तो दिवाली के दिन घर मे ही दीपक न जले. हम सरकार से यहीं उम्मीद करते हैं कि कुम्हारों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ कदम बढ़ाए, जिससे साल भर रोजगार चलता रहे.

Intro:प्रयागराज: दिवाली पर उम्मीदों के दिया तले टिकी है कुम्हारों की दिवाली, जाने क्यों

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प्रयागराज: दिवाली का त्योहार खुशियों का त्योहार होता है. कहते हैं कि इस दिन कोई भूखा नहीं सोता है, क्योंकि इसी दिन भगवान राम की अयोध्या में वापसी हुई है. दिवाली का त्योहार पूरे देश मे बड़े ही धूमधाम से हर साल मनाया जाता है. दिवाली के त्योहार जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे गांव से लेकर बाजारों तक रौनक देखने को मिल रहा है. हर कोई इस त्योहार को खास अंदाज में मनाने के लिए जुटा है. इसके साथ ही कुम्हारों की चाक की रफ्तार बढ़ती नजर आ रहीं है. मिट्टी के खिलौना, दीपक और भगवान गणेश लक्ष्मी का आखिरी रूप देने में कुम्हार दिन रात काम करते नजर आ रहे हैं.

कुम्हारों का कहना कि हर दिवाली हमारे लिए उम्मीदों पर टिकी होती है. जितना दिया बिकता उसी के आधार पर घर मे दिवाली मनाई जाती है. पिछले कई महीनों से दिन रात मेनहत करके मिट्टी के दीपक बनाते हैं लेकिन मार्केट प्लस्टिक और इलेक्ट्रॉनिक आइटम आने दिवाली का क्रेज खत्म होते नजर आ रहा है. दूसरे के घर को रौशन करने के लिए मिट्टी के दीपक बनाते हैं लेकिन ठीक दाम नहीं मिलने से अपना ही घर अंधेरे में रहता है.


Body:50 वर्षों से कर रहे हैं यही काम

कुम्हार अर्जुन लाल बताते हैं कि दिवाली आने तीन माह पहले से ही पूरा परिवार मिट्टी बर्तन और दिया बनाने में दिन रात मेनहत करते हैं. जिसमें मिट्टी के दिया के साथ भगवान की मूर्ति बनाकर कलर भरते हैं. जितना भी माल माल तैयार होता है उसकी बिक्री नहीं हो पाती है जिसकी वजह से आज भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. 50 सालों से मिट्टी के बर्तन और दियाँ बनाने का काम कर रहें हैं लेकिन सरकार की तरफ से को ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

मिट्टी की भी चुकानी पड़ती है कीमत

अर्जुन लाल ने बताया कि पहले के समय मे मिट्टी फ्री मिल जाती थी लेकिन अब ठेकेदारों द्वारा मिट्टी का भी कीमत चूकना पड़ता है. मेनहत मजदूरी के हिसाब से रोजगार हो जाता है. दिवाली के बाद कुल्हड़ और प्याला बनाकर जीवन यापन करते हैं.




Conclusion:सरकार की तरफ से मिले मदद

बहादुर लाल प्रजापति बताते हैं कि मिट्टी की मूर्ति बनना बहुत ही बारीक काम होता है. दिवाली आने से ठीक सात माह पहले से ही काम शुरू कर दिया जाता है, तभी दिवाली आते ही मूर्ति तैयार हो जाती है. अगर इतने पहले से काम न करें तो दिवाली के दिन घर मे ही दीपक न जले. हम सरकार से यहीं उम्मीद करते हैं कि कुम्हारों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ कदम बढ़ाए जिससे साल भर रोजगार चलता रहें.

बाइट- अर्जुन लाल- कुम्हार

बाईट- 2- बहादुर लाल प्रजापति- कुम्हार
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