प्रयागराजः मथुरा के बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी के मौके पर हुई भगदड़ जैसी घटना की पुनरावृति रोकने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत योजना का मंदिर का प्रबंध देखने वाले सेवायतों ने घोर विरोध किया है. मंदिर का रखरखाव और बांके बिहारी की पूजा व सेवा करने वाले गोस्वामी परिवार ने मंगलवार को कोर्ट में चल रही जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान मंगलवार को इंटरवेनिंग एप्लीकेशन दाखिल कर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत योजना का विरोध किया.
गोस्वामी परिवार कहना था कि मंदिर पूरी तरीके से प्राइवेट है और इसमें सरकारी अधिकारियों का हस्तक्षेप किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है. सेवायतो ने कॉरिडोर बनाने के लिए अधिग्रहित की जाने वाली 5 एकड़ जमीन को खरीदने में मंदिर का फंड इस्तेमाल करने पर भी विरोध जताया. इस पर मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार से पूछा है कि क्या सरकार कॉरिडोर के लिए जमीन खरीदने और फिर कॉरिडोर के रखरखाव का खर्च उठाने के लिए तैयार है.
बांके बिहारी मंदिर में भगदड़ की घटना को रोकने के लिए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है. इस पर कोर्ट ने प्रदेश सरकार से योजना प्रस्तुत करने के लिए कहा था, जिससे कि दोबारा ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो. मंगलवार को अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने प्रदेश सरकार की योजना कोर्ट के समक्ष रखी. इसके मुताबिक मंदिर के यमुना नदी वाले साइड में खाली पड़ी लगभग 5 एकड़ जमीन सरकार खरीद कर अधिग्रहित करेगी और इससे कॉरिडोर बनाया जाएगा. वहां पार्किंग और नागरिक सुविधाएं भी विकसित की जाएंगी, ताकि आने वाले श्रद्धालुओं को न सिर्फ सुविधाएं दी जा सके बल्कि भगदड़ जैसी स्थिति ना आने पाए.
सरकार की योजना के अनुसार इस पर आने वाला खर्च मंदिर में आने वाले चढ़ावे की रकम से लिया जाएगा. मंदिर के रखरखाव के लिए एक ट्रस्ट बनाने का प्रस्ताव है, जिसमें सेवायत परिवार से 2 सदस्य, वैष्णो समुदाय, सनातन सम्प्रदाय के धर्मगुरुओं व महंतों तथा जिलाधिकारी मथुरा, धर्मार्थ कार्य विभाग के एक अधिकारी सहित कुल 11 सदस्य होंगे. कोर्ट ने जानना चाहा कि मंदिर का प्रवेश काफी सकरा है, क्या इसे चौड़ा किया जाएगा. इस पर अपर महाधिवक्ता का कहना था कि वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रवेश भी काफी सकरा था. कॉरिडोर बनाने के बाद उसे चौड़ा कर दिया गया है.
गोस्वामी परिवार ने सरकार के हस्तक्षेप पर जताया विरोध
मंदिर के सेवायत गोस्वामी परिवार की ओर से इस योजना का विरोध करते हुए भगवान बांके बिहारी की ओर से पक्षकार बनाने की अर्जी दाखिल की गई. कहा गया कि मंदिर में सेवा का अधिकार सिर्फ एक ही परिवार को है. यह पूरी तरीके से प्राइवेट मंदिर है, इसलिए सरकार को इसके कार्यों में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है. इस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह सेवायतो के अधिकारों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं. न ही उनके विपरीत कोई भी आदेश पारित किया जाएगा. कोर्ट की मंशा सिर्फ मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को किसी हादसे से बचाने की व्यवस्था करने तक है.
सेवायतो का कहना था कि यदि इस मंदिर के प्रबंधन और फंड में सरकारी अधिकारियों का हस्तक्षेप होगा, तो फंड का दुरुपयोग शुरू हो जाएगा. वर्तमान में मंदिर में आने वाले चढ़ावे के उपयोग के लिए व्यवस्था बनी हुई है. चढ़ावे की रकम गुल्लक में एकत्र की जाती है और फिर उसे बांके बिहारी मंदिर के खाते में जमा किया जाता है. सारी संपत्ति के मालिक स्वयं भगवान बांके बिहारी जी हैं. मंदिर पर आने वाला खर्च सिविल जज जूनियर डिविजन मथुरा के आदेश से निष्पादित किया जाता है.
आस पास के मंदिरों को भी कॉरिडोर के दायरे में लाने का प्रस्ताव
कोर्ट ने प्रदेश सरकार से पूछा है कि प्रस्तावित कॉरिडोर के दायरे में बांके बिहारी जी के आस पास के मंदिर भी लाये जा सकते हैं. गोस्वामी के वकील ने आस पास गलियों को भी विकसित करने का सुझाव दिया. इस पर अगली सुनवाई पर जानकारी देने का निर्देश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 17 नवंबर को होगी.
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