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अनोखे कल्पवासी : हजारों मील उड़ान भरकर पहुंचते हैं संगम

14 जनवरी मकर संक्रांति के साथ ही प्रयागराज में माघ मेले का शुभारंभ हो जाएगा. इस दौरान यहां देश के हर हिस्से से श्रद्धालु पहुंचते हैं और यहीं पर एक महीने तक सिर्फ आस्था और श्रद्धा में डूबे रहते हैं, जिसे कल्पवास कहा जाता है. वहीं साइबेरियन पक्षियों के कलरव और अठखेलियों से संगम तट अभी से गुलजार हो गया है.

हजारों मील उड़ान भरकर संगम पहुंचे यह अनोखे कल्पवासी.
हजारों मील उड़ान भरकर संगम पहुंचे यह अनोखे कल्पवासी.
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Published : Jan 8, 2021, 4:37 PM IST

प्रयागराज : पतित पावनी, मोक्ष दायिनी गंगा, श्यामल यमुना और अदृश्य स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के त्रिवेणी के तट पर माघ मेले के दौरान श्रद्धालुओं के एक मास के संयम, श्रद्धा और कायाशोधन का 'कल्पवास' की तरह साइबेरियन पक्षियों का भी एक मास का कल्पवास होता है. त्रिवेणी के तट पर कल्पवासियों के हवन, पूजन, साधु-संतों के प्रवचन से जिस प्रकार पूरे मेला क्षेत्र में आध्यात्मिक वातावरण बना रहता है. उसी प्रकार दूर देश से प्रयागराज पहुंचे साइबेरियन पक्षियों के कलरव और अठखेलियों से संगम तट अभी से गुलजार हो गया है.

हजारों मील उड़ान भरकर संगम पहुंचे यह अनोखे कल्पवासी.

प्रयागराज को तीर्थों का राजा कहा जाता है. यह मान्यता है कि तीर्थराज प्रयाग स्थित संगम में स्नान करने से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है, और मनुष्य को मोक्ष भी प्राप्त होता है. हर वर्ष संगम की रेती पर माघ मास में सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन होता है. 14 जनवरी मकर संक्रांति के साथ ही माघ मेले का शुभारंभ हो जाएगा. इस दौरान यहां देश के हर हिस्से से श्रद्धालु पहुंचते हैं और यहीं पर एक महीने तक सिर्फ आस्था और श्रद्धा में डूबे रहते हैं, जिसे कल्पवास कहा जाता है.

संगम तट पर अनोखे कल्पवासी
आस्था की इस नगरी में कुछ अनोखे कल्पवासी भी पहुंचते हैं. हम इनको कल्पवासी इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि ये ठंड का आरंभ होते ही संगम किनारे पहुंचते हैं और ठंड की समाप्ति तक ये संगम पर ही अपना निवास करते हैं और लोगों के आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं.

हजारों मील दूर का सफर कर आते हैं प्रयागराज
हजारों मील दूर से उड़कर तीर्थराज प्रयाग की पावन धरती पर पहुंचने वाले साइबेरियन पक्षी हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी पहुंच गए हैं. यह पक्षी न सिर्फ प्रयागराज बल्कि बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी मुख्य आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. लोग यह भी मानते हैं कि इन पक्षियों को दाना खिलाने से उनको पुण्य प्राप्त होता है और साथ ही खुशी भी मिलती है. पर्यटकों ने बताया कि जब-जब हम कल्पवास के दौरान संगम स्नान करने आये हैं. हमें इन सफेद-काले रंग मिश्रण वाले पक्षी गंगा के जल पर अठखेलियां करते मिलते हैं. खास बात यह है कि यह पक्षी इंसानों से बिल्कुल नहीं डरते हैं. हजारों मील साइबेरिया से उड़कर प्रयागराज पहुंचे इन पक्षियों को माघ मेले में कल्पवास की सौभाग्यता मिलता है. एक तरफ ये पक्षी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं तो दूसरी तरफ अपनी खूबसूरती से संगम की शोभा बढ़ा रहे हैं. लोग घंटों तक घाट पर बैठकर गंगा में अठखेलियां करते इन विदेशी पक्षियों को निहारते रहते हैं. इतना ही नहीं, लोग इनकी मेहमान नवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. कोई इन्हें बेसन से बनी सेव तो कोई पपड़ी खिलाता है तो वहीं, ये पक्षी उनके स्वागत को स्वीकार कर बहुत चाव से खाते हैं.

श्रीरामचरित मानस में भी जिक्र
पंडित बीजेंद्र मिश्र ने कहा कि माघ मकरगति रवि जब होई, तीरथपतिहिं आव सब कोई, देव, दनुज, किन्नर, नर श्रेनी, सागर मज्जहिं सकल त्रिवेणी. ”माना जाता है, माघ मास में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदित्य, मरूद्रण और अन्य सभी देवी-देवता संगम में स्नान करते हैं. हम तो यही मानते हैं कि जिनका सौभाग्य होता है, वही माघ मास में त्रिवेणी स्नान का पुण्य पाता है. चाहे वह मनुष्य हो या पशु-पक्षी.

प्रयागराज : पतित पावनी, मोक्ष दायिनी गंगा, श्यामल यमुना और अदृश्य स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के त्रिवेणी के तट पर माघ मेले के दौरान श्रद्धालुओं के एक मास के संयम, श्रद्धा और कायाशोधन का 'कल्पवास' की तरह साइबेरियन पक्षियों का भी एक मास का कल्पवास होता है. त्रिवेणी के तट पर कल्पवासियों के हवन, पूजन, साधु-संतों के प्रवचन से जिस प्रकार पूरे मेला क्षेत्र में आध्यात्मिक वातावरण बना रहता है. उसी प्रकार दूर देश से प्रयागराज पहुंचे साइबेरियन पक्षियों के कलरव और अठखेलियों से संगम तट अभी से गुलजार हो गया है.

हजारों मील उड़ान भरकर संगम पहुंचे यह अनोखे कल्पवासी.

प्रयागराज को तीर्थों का राजा कहा जाता है. यह मान्यता है कि तीर्थराज प्रयाग स्थित संगम में स्नान करने से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है, और मनुष्य को मोक्ष भी प्राप्त होता है. हर वर्ष संगम की रेती पर माघ मास में सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन होता है. 14 जनवरी मकर संक्रांति के साथ ही माघ मेले का शुभारंभ हो जाएगा. इस दौरान यहां देश के हर हिस्से से श्रद्धालु पहुंचते हैं और यहीं पर एक महीने तक सिर्फ आस्था और श्रद्धा में डूबे रहते हैं, जिसे कल्पवास कहा जाता है.

संगम तट पर अनोखे कल्पवासी
आस्था की इस नगरी में कुछ अनोखे कल्पवासी भी पहुंचते हैं. हम इनको कल्पवासी इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि ये ठंड का आरंभ होते ही संगम किनारे पहुंचते हैं और ठंड की समाप्ति तक ये संगम पर ही अपना निवास करते हैं और लोगों के आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं.

हजारों मील दूर का सफर कर आते हैं प्रयागराज
हजारों मील दूर से उड़कर तीर्थराज प्रयाग की पावन धरती पर पहुंचने वाले साइबेरियन पक्षी हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी पहुंच गए हैं. यह पक्षी न सिर्फ प्रयागराज बल्कि बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी मुख्य आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. लोग यह भी मानते हैं कि इन पक्षियों को दाना खिलाने से उनको पुण्य प्राप्त होता है और साथ ही खुशी भी मिलती है. पर्यटकों ने बताया कि जब-जब हम कल्पवास के दौरान संगम स्नान करने आये हैं. हमें इन सफेद-काले रंग मिश्रण वाले पक्षी गंगा के जल पर अठखेलियां करते मिलते हैं. खास बात यह है कि यह पक्षी इंसानों से बिल्कुल नहीं डरते हैं. हजारों मील साइबेरिया से उड़कर प्रयागराज पहुंचे इन पक्षियों को माघ मेले में कल्पवास की सौभाग्यता मिलता है. एक तरफ ये पक्षी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं तो दूसरी तरफ अपनी खूबसूरती से संगम की शोभा बढ़ा रहे हैं. लोग घंटों तक घाट पर बैठकर गंगा में अठखेलियां करते इन विदेशी पक्षियों को निहारते रहते हैं. इतना ही नहीं, लोग इनकी मेहमान नवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. कोई इन्हें बेसन से बनी सेव तो कोई पपड़ी खिलाता है तो वहीं, ये पक्षी उनके स्वागत को स्वीकार कर बहुत चाव से खाते हैं.

श्रीरामचरित मानस में भी जिक्र
पंडित बीजेंद्र मिश्र ने कहा कि माघ मकरगति रवि जब होई, तीरथपतिहिं आव सब कोई, देव, दनुज, किन्नर, नर श्रेनी, सागर मज्जहिं सकल त्रिवेणी. ”माना जाता है, माघ मास में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदित्य, मरूद्रण और अन्य सभी देवी-देवता संगम में स्नान करते हैं. हम तो यही मानते हैं कि जिनका सौभाग्य होता है, वही माघ मास में त्रिवेणी स्नान का पुण्य पाता है. चाहे वह मनुष्य हो या पशु-पक्षी.

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