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जानिए हजारों साल पुराने प्रयागराज के समुद्र कूप का रहस्य - प्रयागराज ताजा खबर

प्रयागराज में यूं तो कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्‍थल हैं, जिनके आकर्षण में प्रदेश ही नहीं देश के कोने-कोने से लोग यहां आते हैं, इन्‍हीं में से एक है समुद्रकूप. जी हां, शहर से कुछ किमी दूर स्थित यह कूप गुप्‍तकाल का बताया जाता है. यह पुरानी झूंसी में उल्‍टा किला में स्थित है. प्रयागराज के कुंभ मेला और प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले माघ मेले आने वाले पर्यटक यहां जरूर एक बार आते हैं.

पर्यटकों को आकर्षित करता यह प्रयागराज का समुद्र कूप
पर्यटकों को आकर्षित करता यह प्रयागराज का समुद्र कूप
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Published : Feb 19, 2021, 1:20 PM IST

Updated : Feb 19, 2021, 4:59 PM IST

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश को यूं नहीं ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों में प्रमुख माना जाता है. यहां की नदियां, महल, गांव और शहर ही नहीं कुएं तक हजारों सालों से अपने अंदर एक इतिहास को समेटे हुए है. ऐसा ही एक कुआं है प्रयागराज जिले के झूंसी गांव में, जिसे समुद्र कूप के नाम से जाना जाता है. इतिहासकारों द्वारा दावा किया जाता है कि निर्माण से लेकर आज तक इसके अंदर पानी का स्तर न तो कम हुआ है और न ही ज्यादा. इस समुद्र कूप का निर्माण गुप्त वंश के शासक समुद्रगुप्त (350-375 ईसा पूर्व) ने करवाया था. समुद्रगुप्त ने अपने शासनकाल के दौरान भारत में कुल पांच कूपों का निर्माण करवाया था. झूंसी का कूप उन्हीं में से एक है.

पर्यटकों को आकर्षित करता यह प्रयागराज का समुद्र कूप

इस समुद्र कूप की खास
समुद्र कूप के बारे में यह कहा जाता है कि इसके अंदर सात समुद्र का पानी आकर मिलता है. यही वजह है कि इसके पानी का स्वाद खारा है. जलस्तर में कमी न होने की एक बड़ी वजह यह भी है. इस कुएं को देखने के लिए कुंभ व माघ मेले में देश-विदेश से तो लोग यहां आते ही हैं. सामान्य दिनों में भी पर्यटक यहां घूमने आना पसंद करते हैं.

समुद्र कूप
समुद्र कूप

प्रचलित हैं समुद्र कूप की कई धारणाएं
महंत बिपिन बिहारी दास कहते हैं कि इसका जिक्र मत्स्य पुराण में भी आता है. सम्राट समुद्र गुप्त के कार्यकाल से भी इसे जोड़ा जाता है. कहा जाता है कि समुद्र गुप्त ने अपने शासनकाल में ऐसे पांच कूप बनवाए जो प्रयागराज के अलावा मथुरा, वाराणसी, उज्जैन और पातालपुर (पाटलीपुत्र या पटना) में हैं. बताते हैं कि सभी कूप काफी गहरे हैं. झूंसी वाले कूप का व्यास करीब 22 फीट है. समुद्र कूप का पूरा परिसर करीब 12 फीट ऊंची चारदीवारी से घिरा है. समुद्र कूप की गहराई कितनी है कोई नहीं जानता है.

समुद्र कूप की गहराई
समुद्र कूप की गहराई

कभी प्रतिष्ठानपुर नगर के नाम से जाना जाता था झूंसी
कुछ इतिहासकारों का दावा है कि आज का झूंसी गांव प्राचीन काल में प्रतिष्ठानपुर नगर था, जो 1359 ईसा पूर्व में आए भूकंप में तबाह हो गया था. उसी के ध्वंसावशेष पर यह कूप बना हुआ है. जिसमें पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है.

वैदिक काल से भी जुड़ी है मान्यता
इस समुद्र कूप को लेकर दूसरी मान्यता यह है कि इस कूप का निर्माण वैदिक काल के प्रमुख राजा इलानंदन पुरूरवा ने करवाया था. पुरूरवा राजा बुध का पुत्र था, जिन्हें ब्रह्मा का वंशज माना जाता है. महंत बिपिन बिहारी दास कहते हैं कि समुद्र कूप पौराणिक तीर्थ है, इसका पद्म पुराण, मत्स्य पुराण में उल्लेख है. राजा पुरूरवा ने अपने शासन काल में कई अश्वमेध यज्ञ किए थे. उन यज्ञ में समुद्रों का आवाह्न किया गया था. वहीं आवाह्न के चलते इस कूप का नाम समुद्र कूप पड़ा.

इसे भी पढ़ें-बाबा ने की जल समाधि लेने की घोषणा, जाने क्यों लिया निर्णय

माघ मेले और कुंभ में जुटती है पर्यटकों की भीड़
संगम तट पर हर साल लगने वाले माघ मेले के अलावा कुंभ और अर्ध कुंभ के दौरान झूंसी के उल्टा किला और यहां मौजूद मंदिरों व समुद्र कूप को देखने को बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं. श्रद्धालुगण इस कुएं की परिक्रमा करते है. वहीं शिक्षा प्रभारी संग्रहालय राजेश मिश्र कहते है कि समुद्र कूप को लेकर बहुत से लोगों की अपनी-अपनी मान्यताएं है. इतिहासकार बताते हैं कि समुद्र कूप पूर्व मध्यकाल का स्ट्रक्चर है. लेकिन इसकी प्राचीनता गुप्त काल से भी है. क्योंकि टीले के पास जो मुर्तियां मिलती हैं. वह गुप्त काल से सबंधित हैं.

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश को यूं नहीं ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों में प्रमुख माना जाता है. यहां की नदियां, महल, गांव और शहर ही नहीं कुएं तक हजारों सालों से अपने अंदर एक इतिहास को समेटे हुए है. ऐसा ही एक कुआं है प्रयागराज जिले के झूंसी गांव में, जिसे समुद्र कूप के नाम से जाना जाता है. इतिहासकारों द्वारा दावा किया जाता है कि निर्माण से लेकर आज तक इसके अंदर पानी का स्तर न तो कम हुआ है और न ही ज्यादा. इस समुद्र कूप का निर्माण गुप्त वंश के शासक समुद्रगुप्त (350-375 ईसा पूर्व) ने करवाया था. समुद्रगुप्त ने अपने शासनकाल के दौरान भारत में कुल पांच कूपों का निर्माण करवाया था. झूंसी का कूप उन्हीं में से एक है.

पर्यटकों को आकर्षित करता यह प्रयागराज का समुद्र कूप

इस समुद्र कूप की खास
समुद्र कूप के बारे में यह कहा जाता है कि इसके अंदर सात समुद्र का पानी आकर मिलता है. यही वजह है कि इसके पानी का स्वाद खारा है. जलस्तर में कमी न होने की एक बड़ी वजह यह भी है. इस कुएं को देखने के लिए कुंभ व माघ मेले में देश-विदेश से तो लोग यहां आते ही हैं. सामान्य दिनों में भी पर्यटक यहां घूमने आना पसंद करते हैं.

समुद्र कूप
समुद्र कूप

प्रचलित हैं समुद्र कूप की कई धारणाएं
महंत बिपिन बिहारी दास कहते हैं कि इसका जिक्र मत्स्य पुराण में भी आता है. सम्राट समुद्र गुप्त के कार्यकाल से भी इसे जोड़ा जाता है. कहा जाता है कि समुद्र गुप्त ने अपने शासनकाल में ऐसे पांच कूप बनवाए जो प्रयागराज के अलावा मथुरा, वाराणसी, उज्जैन और पातालपुर (पाटलीपुत्र या पटना) में हैं. बताते हैं कि सभी कूप काफी गहरे हैं. झूंसी वाले कूप का व्यास करीब 22 फीट है. समुद्र कूप का पूरा परिसर करीब 12 फीट ऊंची चारदीवारी से घिरा है. समुद्र कूप की गहराई कितनी है कोई नहीं जानता है.

समुद्र कूप की गहराई
समुद्र कूप की गहराई

कभी प्रतिष्ठानपुर नगर के नाम से जाना जाता था झूंसी
कुछ इतिहासकारों का दावा है कि आज का झूंसी गांव प्राचीन काल में प्रतिष्ठानपुर नगर था, जो 1359 ईसा पूर्व में आए भूकंप में तबाह हो गया था. उसी के ध्वंसावशेष पर यह कूप बना हुआ है. जिसमें पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है.

वैदिक काल से भी जुड़ी है मान्यता
इस समुद्र कूप को लेकर दूसरी मान्यता यह है कि इस कूप का निर्माण वैदिक काल के प्रमुख राजा इलानंदन पुरूरवा ने करवाया था. पुरूरवा राजा बुध का पुत्र था, जिन्हें ब्रह्मा का वंशज माना जाता है. महंत बिपिन बिहारी दास कहते हैं कि समुद्र कूप पौराणिक तीर्थ है, इसका पद्म पुराण, मत्स्य पुराण में उल्लेख है. राजा पुरूरवा ने अपने शासन काल में कई अश्वमेध यज्ञ किए थे. उन यज्ञ में समुद्रों का आवाह्न किया गया था. वहीं आवाह्न के चलते इस कूप का नाम समुद्र कूप पड़ा.

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माघ मेले और कुंभ में जुटती है पर्यटकों की भीड़
संगम तट पर हर साल लगने वाले माघ मेले के अलावा कुंभ और अर्ध कुंभ के दौरान झूंसी के उल्टा किला और यहां मौजूद मंदिरों व समुद्र कूप को देखने को बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं. श्रद्धालुगण इस कुएं की परिक्रमा करते है. वहीं शिक्षा प्रभारी संग्रहालय राजेश मिश्र कहते है कि समुद्र कूप को लेकर बहुत से लोगों की अपनी-अपनी मान्यताएं है. इतिहासकार बताते हैं कि समुद्र कूप पूर्व मध्यकाल का स्ट्रक्चर है. लेकिन इसकी प्राचीनता गुप्त काल से भी है. क्योंकि टीले के पास जो मुर्तियां मिलती हैं. वह गुप्त काल से सबंधित हैं.

Last Updated : Feb 19, 2021, 4:59 PM IST
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