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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह से पहले मानद उपाधि चयन प्रक्रिया पर उठे सवाल

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पांच सितंबर को आयोजित होने वाले दीक्षांत समारोह में दिए जाने वाली मानद उपाधि पर सवाल उठने लगा है. विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री ने सोमवार को आयोजित एक प्रेस वार्ता के दौरान विश्वविद्यालय की चयन नीतियों पर सवाल उठाया है.

वरिष्ठ प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री
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Published : Aug 27, 2019, 6:46 AM IST

प्रयागराज : पूरब का आक्सफोर्ड के नाम से मशहूर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 23 साल बाद पांच सितंबर को दीक्षांत समारोह आयोजित होना है. दीक्षांत समारोह में दिए जाने वाली मानद उपाधि पर पहले ही सवाल उठने लगा है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय संस्कृति विभाग के भूतपूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री ने सोमवार को एक प्रेस वार्ता की. प्रेस वार्ता के दौरान मानद उपाधियां प्रदान किए जाने में नियमों और प्रक्रियाओं पर उन्होंने सवाल उठाया है.

वरिष्ठ प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री ने उठाए सवाल.

प्रोफेसर ने विश्वविद्यालय की नीतियों पर उठाए सवाल -

मीडिया से बात करते हुए प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री ने मानद उपाधि के लिए चयनित किए गए नाम पर व्यक्तिगत हित का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि डॉक्टर ऑफ लाज की डिग्री देने के लिए यहां की समृद्धि परम्परा का विचार नहीं किया गया. प्रोफेसर शास्त्री का कहना है, जिस विश्वविद्यालय में माननीय पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर रिचर्ड अर्नेस्ट जैसे वैज्ञानिकों को उपाधियां दी गईं थी. वहां आज एक स्थानीय राजनेता और उत्तर प्रदेश के डीजीपी को मानद उपाधि प्रदान करने का निर्णय लिया जा रहा है, जोकि विश्वविद्यालय की स्थापित गरिमा के अनुकूल नहीं है.

इसे भी पढ़ें - 'अखिलेश यादव' समेत चार पूर्व छात्र नेताओं के इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रवेश पर रोक

महामहिम को लिखा पत्र -

प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री ने इस संबंध में महामहिम को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है. उनका कहना है कि विश्वविद्यालय की परंपरा रही है कि ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान करने वालों को ही मानद उपाधियां दी जाएं. विश्वविद्यालय की विद्वत परिषद और कार्य परिषद की सामान्य बैठकों में ही कारण सहित गंभीर विचार मंथन के पश्चात मानद उपाधियां दी जानी चाहिए.




प्रयागराज : पूरब का आक्सफोर्ड के नाम से मशहूर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 23 साल बाद पांच सितंबर को दीक्षांत समारोह आयोजित होना है. दीक्षांत समारोह में दिए जाने वाली मानद उपाधि पर पहले ही सवाल उठने लगा है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय संस्कृति विभाग के भूतपूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री ने सोमवार को एक प्रेस वार्ता की. प्रेस वार्ता के दौरान मानद उपाधियां प्रदान किए जाने में नियमों और प्रक्रियाओं पर उन्होंने सवाल उठाया है.

वरिष्ठ प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री ने उठाए सवाल.

प्रोफेसर ने विश्वविद्यालय की नीतियों पर उठाए सवाल -

मीडिया से बात करते हुए प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री ने मानद उपाधि के लिए चयनित किए गए नाम पर व्यक्तिगत हित का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि डॉक्टर ऑफ लाज की डिग्री देने के लिए यहां की समृद्धि परम्परा का विचार नहीं किया गया. प्रोफेसर शास्त्री का कहना है, जिस विश्वविद्यालय में माननीय पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर रिचर्ड अर्नेस्ट जैसे वैज्ञानिकों को उपाधियां दी गईं थी. वहां आज एक स्थानीय राजनेता और उत्तर प्रदेश के डीजीपी को मानद उपाधि प्रदान करने का निर्णय लिया जा रहा है, जोकि विश्वविद्यालय की स्थापित गरिमा के अनुकूल नहीं है.

इसे भी पढ़ें - 'अखिलेश यादव' समेत चार पूर्व छात्र नेताओं के इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रवेश पर रोक

महामहिम को लिखा पत्र -

प्रोफेसर राम किशोर शास्त्री ने इस संबंध में महामहिम को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है. उनका कहना है कि विश्वविद्यालय की परंपरा रही है कि ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान करने वालों को ही मानद उपाधियां दी जाएं. विश्वविद्यालय की विद्वत परिषद और कार्य परिषद की सामान्य बैठकों में ही कारण सहित गंभीर विचार मंथन के पश्चात मानद उपाधियां दी जानी चाहिए.




Intro:इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 5 सितंबर को आयोजित होने वाले दीक्षांत समारोह में दिए जाने वाली मानद उपाधि पर सवाल उठने लगा है इलाहाबाद विश्वविद्यालय संस्कृति विभाग के भूतपूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष प्रोफ़ेसर राम किशोर शास्त्री ने आज आयोजित एक प्रेस वार्ता के दौरान विश्वविद्यालय की नीतियों पर सवाल उठाया है।


Body:पत्रकारों को जानकारी देते हुए उन्होंने बताया इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रो, शिक्षकों और लगनशील कर्मचारियों के चलते हमेशा देश के अग्रणी विश्वविद्यालय में जाना जाता रहा है। पूरब का आक्सफोर्ड कहा जाने वाले यह विश्वविद्यालय पिछले चार पांच सालों में व्यक्ति विशेष नीतियों के चलते यह रैंकिग में 200 पायदान से भी नीचे चला गया है। उन्होंने अगले माह होने वाले दीक्षांत समारोह में दिए जाने वाले मानद उपाधि के लिए चयनित नाम पर व्यक्तिगत हित का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि यहा पर डॉक्टर आफ लाज की डिग्री देने के लिए यहा की समृद्धि परम्परा का विचार नही किया गया। इसके लिए कार्य परिषद और विद्वत परिषद की होने वाले बैठक में लिए जाने वाले निर्णय पर विचार नही किया गया। इस पर पत्रकारों के हुए सवाल पर जवाब देते हुए बताया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति प्रो रतन लाल हांगलू ने अपने कार्यालय में कई ऐसे कार्य किये है जिसमे संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज होने की सम्भावना है। इसी से बचने के लिए इनके द्वारा डीजीपी ओ पी सिंह को उपाधि के लिए चयन किया गया है। जिससे इनके खिलाफ होने वालीं जांचों से बच सके



Conclusion:उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय अध्यादेश में विहित मानद उपाधि दिए जाने की प्रक्रिया का भी उल्लंघन विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा किया जा रहा है किसी व्यक्ति को मानद उपाधि देने के लिए कुलाधिपति की पूर्व अनुमति आवश्यक है जो विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा नहीं ली गई है और ना ही अभी तक अध्यादेश के अनुसार विजिटर को कोई सूचना दी गई है उन्होंने कहा कि इस संबंध में विश्वविद्यालय में कार्य परिषद और विद्युत परिषद की अनदेखी किए जाने को लेकर के इसकी शिकायत राष्ट्रपति से की गई है जिसमें कुल नौ बिंदुओं पर जानकारी राष्ट्रपति को उपलब्ध कराई गई है जिसमें विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह और यहां पर पठन-पाठन सहित अन्य कई मुद्दों पर जानकारी दी गई है।

बाईट: प्रो राम किशोर शास्त्री पूर्व विभागाध्यक्ष संस्कृत विभाग

प्रवीण मिश्र
प्रयागराज।
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