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प्रदेश के विभिन्न जिलों में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ चल रही विभागीय कार्रवाई पर रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने प्रदेश के विभिन्न जिलों में तैनात इंस्पेक्टरों, सब इंस्पेक्टरों, हेड कांस्टेबलों और कांस्टेबलों के खिलाफ चल रही विभागीय कार्रवाई पर रोक लगा दी है और राज्य सरकार से 6 सप्ताह में जवाब मांगा है.

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Published : Jun 7, 2022, 9:49 PM IST

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इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने प्रदेश के विभिन्न जिलों में तैनात इंस्पेक्टरों, सब इंस्पेक्टरों, हेड कांस्टेबिलों और कांस्टेबलों के विरुद्ध चल रही विभागीय कार्रवाई पर रोक लगा दी है और राज्य सरकार से 6 सप्ताह में जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव जोशी (Justice Rajiv Joshi) और न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा (Justice Rajiv Mishra) की अलग-अलग कोर्ट ने अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई करते हुए पारित किया है.

पुलिस अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई गई है. इन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है और विभागीय कार्रवाई भी शुरू की गई है. याची की तरफ से सीनियर एडवोकेट विजय गौतम का कहना है कि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस नियमावली 1991 के नियम 14 (1) के अंतर्गत कार्रवाई में आरोप पत्र दिया गया है, जो गलत है.

इसे भी पढ़ेंः 50 वर्षीय अभ्यर्थी को सहायक अध्‍यापक पद पर नियुक्ति का निर्देश, इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

कोर्ट ने कहा कि विभागीय कार्रवाई पूर्व में दर्ज प्राथमिकी को आधार बनाकर की जा रही है. क्रिमिनल केस के आरोप और विभागीय कार्रवाई के आरोप एक समान है और साक्ष्य भी एक हैं. ऐसे में इस प्रकार की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के कैप्टन एमपाल एंथोनी में दिए गए विधि के सिद्धांत के विरुद्ध है. जब आपराधिक और विभागीय दोनों कार्रवाई एक ही आरोपों को लेकर चल रही हो तो विभागीय कार्रवाई आपराधिक कार्रवाई के निस्तारण तक स्थगित रखी जाए. यूपी पुलिस रेगुलेशन को सुप्रीम कोर्ट ने वैधानिक माना है और स्पष्ट किया है. इसका उल्लंघन करने से आदेश अवैध और अमान्य हो जाएंगे. याचिका दाखिल करने वाले इंस्पेक्टर, दारोगा, हेड कांस्टेबल व कांस्टेबल प्रदेश के मेरठ, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, अलीगढ़, कानपुर नगर, बरेली और वाराणसी में तैनात हैं.

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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने प्रदेश के विभिन्न जिलों में तैनात इंस्पेक्टरों, सब इंस्पेक्टरों, हेड कांस्टेबिलों और कांस्टेबलों के विरुद्ध चल रही विभागीय कार्रवाई पर रोक लगा दी है और राज्य सरकार से 6 सप्ताह में जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव जोशी (Justice Rajiv Joshi) और न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा (Justice Rajiv Mishra) की अलग-अलग कोर्ट ने अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई करते हुए पारित किया है.

पुलिस अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई गई है. इन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है और विभागीय कार्रवाई भी शुरू की गई है. याची की तरफ से सीनियर एडवोकेट विजय गौतम का कहना है कि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस नियमावली 1991 के नियम 14 (1) के अंतर्गत कार्रवाई में आरोप पत्र दिया गया है, जो गलत है.

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कोर्ट ने कहा कि विभागीय कार्रवाई पूर्व में दर्ज प्राथमिकी को आधार बनाकर की जा रही है. क्रिमिनल केस के आरोप और विभागीय कार्रवाई के आरोप एक समान है और साक्ष्य भी एक हैं. ऐसे में इस प्रकार की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के कैप्टन एमपाल एंथोनी में दिए गए विधि के सिद्धांत के विरुद्ध है. जब आपराधिक और विभागीय दोनों कार्रवाई एक ही आरोपों को लेकर चल रही हो तो विभागीय कार्रवाई आपराधिक कार्रवाई के निस्तारण तक स्थगित रखी जाए. यूपी पुलिस रेगुलेशन को सुप्रीम कोर्ट ने वैधानिक माना है और स्पष्ट किया है. इसका उल्लंघन करने से आदेश अवैध और अमान्य हो जाएंगे. याचिका दाखिल करने वाले इंस्पेक्टर, दारोगा, हेड कांस्टेबल व कांस्टेबल प्रदेश के मेरठ, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, अलीगढ़, कानपुर नगर, बरेली और वाराणसी में तैनात हैं.

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