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ये हैं महाराष्ट्र चुनाव के बड़े फैक्टर, जो बदल सकते हैं नतीजे - MAHARASHTRA ASSEMBLY ELECTION

महाराष्ट्र चुनाव में ओबीसी एकीकरण, मराठा आरक्षण और लड़की बहन जैसी योजना के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

महाराष्ट्र चुनाव
महाराष्ट्र चुनाव (ETV Bharat Graphics)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 20, 2024, 4:00 PM IST

मुंबई: 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद से महाराष्ट्र की जनता ने पिछले 5 साल में तीन सरकारें, तीन मुख्यमंत्री और चार उपमुख्यमंत्री देखे हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि राज्य की राजनीतिक में कितनी अस्थिरता है. इस बीच महाराष्ट्र आज फिर से एक बार विधानसभा चुनाव के लिए मतदान कर रहा है. इसके लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपनी जान फूंक दी है.

चुनाव में ओबीसी एकीकरण, मराठा आरक्षण और लड़की बहन जैसी योजना के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यह ऐसे फैक्टर हैं, जो मौजूदा भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली महायुति और कांग्रेस के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (MVA) के भाग्य और परिणाम को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं.

ये फैक्टर तराजू को किसी भी गठबंधन की ओर झुका सकते हैं और यह निर्धारित कर सकते हैं कि चुनाव में महायुति या एमवीए में से कौन सा अलायंस चुनाव में शीर्ष पर आता है.

महायुति की ओबीसी वोटर्स को अपने पक्ष में करने की कोशिश
महाराष्ट्र चुनाव में एक महत्वपूर्ण फैक्टर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) वोटों का एकीकरण है. महायुति गठबंधन में शामिल बीजेपी ने गैर-मराठा वोटों को एकजुट करने की कोशिश की खासकर ओबीसी के बीच. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारे 'एक हैं तो सुरक्षित हैं' के साथ, महायुति का लक्ष्य शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर ओबीसी के बीच चिंता का लाभ उठाने की कोशिश, जिसके बारे में उन्हें डर है कि अगर मराठों को ओबीसी सूची में शामिल किया गया तो उनका आरक्षण कम हो सकता है.

ओबीसी वोटों को एकजुट करने के बीजेपी के प्रयास फायदेमंद हो सकता है, हालांकि, यह महायुति गठबंधन के लिए एक चुनौती भी है, क्योंकि उसे मराठा और ओबीसी दोनों समुदायों के हितों को संतुलित करने की जरूरत है, वह भी बिना किसी समूह को अलग किए.

एमवीए की नजर मराठा वोटों पर है
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक मराठा समुदाय की अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल किए जाने की मांग लंबे समय से विवादास्पद मुद्दा रही है. इस मामले पर महायुति गठबंधन के गोलमोल रुख के कारण मराठों में अलगाव की भावना पैदा हुई है, जिसके कारण हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा को मराठवाड़ा में सभी संसदीय सीटें गंवानी पड़ीं.

मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल के विरोध ने भी आम चुनावों में विदर्भ और पश्चिमी महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में महायुति को नुकसान पहुंचाया. महा विकास अघाड़ी गठबंधन, जिसमें कांग्रेस, शिवसेना (UBT) और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शामिल हैं, को इस असंतोष से लाभ मिलने की संभावना है.

एमवीए मराठा समुदाय की मांगों का समर्थन करने में अधिक मुखर रहा है, जिससे मराठा वोट उनके पक्ष में जा सकते हैं. सत्ता में आने पर एमवीए ने मराठों, धनगरों, लिंगायतों, मुसलमानों और विमुख जाति खानाबदोश जनजातियों को आरक्षण देने के लिए एक व्यापक विधेयक लाने का वादा किया है.

स्पष्ट रूप से एमवीए ने इन मतदाताओं को अपने पक्ष में कोशिश की है. हालांकि, इसमें एक पेंच है. दरअसल, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे एक बड़े मराठा नेता के रूप में उभर रहे हैं और एमवीए से मराठा वोटों का एक बड़ा हिस्सा दूर रख सकते हैं.

76 सीटों पर भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर अहम
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का एक महत्वपूर्ण पहलू 76 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है. भाजपा को इनमें से 50 से अधिक सीटें जीतने का भरोसा है, जो चुनाव के नतीजों को निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण फैक्टर हो सकता है. हाल के वर्षों में कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ सीधे मुकाबलों में खराब प्रदर्शन किया है. इसके चलते सबसे पुरानी पार्टी को अपने सहयोगियों से भी आलोचना का सामना करना पड़ा है.

क्या भाजपा विदर्भ वापस जीत सकती है?
288 सीट वाले महाराष्ट्र में 62 सीटों वाला विदर्भ क्षेत्र पश्चिमी महाराष्ट्र के बाद महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है. परंपरागत रूप से भाजपा का गढ़ रहे इस क्षेत्र में 2024 के लोकसभा चुनावों में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिला, जब एमवीए ने 10 लोकसभा सीटों में से सात सीटें जीतीं.

विदर्भ को अक्सर महाराष्ट्र में राजनीतिक सत्ता का प्रवेश द्वार कहा जाता है. कृषि क्षेत्र अब मुख्य रूप से ग्रामीण संकट से जूझ रहा है, खासकर सोयाबीन और कपास किसानों के बीच. कांग्रेस ने एमवीए के सत्ता में आने पर सोयाबीन किसानों को 7,000 रुपये प्रति क्विंटल का न्यूनतम समर्थन मूल्य और बोनस देने का वादा किया है, जो कृषक समुदाय के साथ मजबूती से जुड़ सकता है.

बीजेपी के वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की भूमिका भी विदर्भ में देखी जा सकती है, क्योंकि नागपुर इस क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। आरएसएस का मुख्यालय नागपुर में है.

योजनाओं और रेवड़ी की लड़ाई
महाराष्ट्र चुनाव दोनों गठबंधनों की ओर से फ्रीबीज और वादों के लिए भी युद्ध का मैदान बन गया है. यहां, भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति अपनी 'लड़की बहिन' योजना को अहम फैक्टर के रूप में देख रहा है. इस योजना के तहत महिलाओं को सरकार की ओर से 1500 रुपये कैश मिलते हैं. दूसरी ओर, कांग्रेस के नेतृत्व वाली एमवीए ने महायुति से आगे निकलकर प्रत्येक महिला को 3,000 रुपये देने का वादा किया है. इसी तरह दोनों गठबंधनों ने युवाओं, वरिष्ठ नागरिकों और किसानों के लिए भी इसी तरह की घोषणा की है.

किसानों के मुद्दे और ग्रामीण संकट
महाराष्ट्र के पूर्वी जिलों जैसे गढ़चिरौली में, लंबे समय से ग्रामीण संकट एक मुद्दा रहा है. यहां सोयाबीन, कपास, प्याज और गन्ने की कम कीमतों जैसी कृषि संबंधी समस्याएं किसानों के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं. महाराष्ट्र के ग्रामीण लोगों के लिए, मुद्रास्फीति भी एक महत्वपूर्ण फैक्टर हो सकती है.

कांग्रेस ने किसानों को लुभाने के लिए कपास के आयात पर प्रतिबंध लगाने की मांग की और किसानों के लिए बेहतर समर्थन मूल्य का वादा किया, जो ग्रामीण मतदाताओं को प्रभावित कर सकता है.

यह भी पढ़ें- महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024: वोटर लिस्ट में ऑनलाइन चेक करें अपना नाम, ये है पूरा प्रॉसेस

मुंबई: 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद से महाराष्ट्र की जनता ने पिछले 5 साल में तीन सरकारें, तीन मुख्यमंत्री और चार उपमुख्यमंत्री देखे हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि राज्य की राजनीतिक में कितनी अस्थिरता है. इस बीच महाराष्ट्र आज फिर से एक बार विधानसभा चुनाव के लिए मतदान कर रहा है. इसके लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपनी जान फूंक दी है.

चुनाव में ओबीसी एकीकरण, मराठा आरक्षण और लड़की बहन जैसी योजना के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यह ऐसे फैक्टर हैं, जो मौजूदा भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली महायुति और कांग्रेस के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (MVA) के भाग्य और परिणाम को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं.

ये फैक्टर तराजू को किसी भी गठबंधन की ओर झुका सकते हैं और यह निर्धारित कर सकते हैं कि चुनाव में महायुति या एमवीए में से कौन सा अलायंस चुनाव में शीर्ष पर आता है.

महायुति की ओबीसी वोटर्स को अपने पक्ष में करने की कोशिश
महाराष्ट्र चुनाव में एक महत्वपूर्ण फैक्टर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) वोटों का एकीकरण है. महायुति गठबंधन में शामिल बीजेपी ने गैर-मराठा वोटों को एकजुट करने की कोशिश की खासकर ओबीसी के बीच. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारे 'एक हैं तो सुरक्षित हैं' के साथ, महायुति का लक्ष्य शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर ओबीसी के बीच चिंता का लाभ उठाने की कोशिश, जिसके बारे में उन्हें डर है कि अगर मराठों को ओबीसी सूची में शामिल किया गया तो उनका आरक्षण कम हो सकता है.

ओबीसी वोटों को एकजुट करने के बीजेपी के प्रयास फायदेमंद हो सकता है, हालांकि, यह महायुति गठबंधन के लिए एक चुनौती भी है, क्योंकि उसे मराठा और ओबीसी दोनों समुदायों के हितों को संतुलित करने की जरूरत है, वह भी बिना किसी समूह को अलग किए.

एमवीए की नजर मराठा वोटों पर है
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक मराठा समुदाय की अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल किए जाने की मांग लंबे समय से विवादास्पद मुद्दा रही है. इस मामले पर महायुति गठबंधन के गोलमोल रुख के कारण मराठों में अलगाव की भावना पैदा हुई है, जिसके कारण हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा को मराठवाड़ा में सभी संसदीय सीटें गंवानी पड़ीं.

मराठा नेता मनोज जरांगे पाटिल के विरोध ने भी आम चुनावों में विदर्भ और पश्चिमी महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में महायुति को नुकसान पहुंचाया. महा विकास अघाड़ी गठबंधन, जिसमें कांग्रेस, शिवसेना (UBT) और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शामिल हैं, को इस असंतोष से लाभ मिलने की संभावना है.

एमवीए मराठा समुदाय की मांगों का समर्थन करने में अधिक मुखर रहा है, जिससे मराठा वोट उनके पक्ष में जा सकते हैं. सत्ता में आने पर एमवीए ने मराठों, धनगरों, लिंगायतों, मुसलमानों और विमुख जाति खानाबदोश जनजातियों को आरक्षण देने के लिए एक व्यापक विधेयक लाने का वादा किया है.

स्पष्ट रूप से एमवीए ने इन मतदाताओं को अपने पक्ष में कोशिश की है. हालांकि, इसमें एक पेंच है. दरअसल, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे एक बड़े मराठा नेता के रूप में उभर रहे हैं और एमवीए से मराठा वोटों का एक बड़ा हिस्सा दूर रख सकते हैं.

76 सीटों पर भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर अहम
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का एक महत्वपूर्ण पहलू 76 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है. भाजपा को इनमें से 50 से अधिक सीटें जीतने का भरोसा है, जो चुनाव के नतीजों को निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण फैक्टर हो सकता है. हाल के वर्षों में कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ सीधे मुकाबलों में खराब प्रदर्शन किया है. इसके चलते सबसे पुरानी पार्टी को अपने सहयोगियों से भी आलोचना का सामना करना पड़ा है.

क्या भाजपा विदर्भ वापस जीत सकती है?
288 सीट वाले महाराष्ट्र में 62 सीटों वाला विदर्भ क्षेत्र पश्चिमी महाराष्ट्र के बाद महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है. परंपरागत रूप से भाजपा का गढ़ रहे इस क्षेत्र में 2024 के लोकसभा चुनावों में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिला, जब एमवीए ने 10 लोकसभा सीटों में से सात सीटें जीतीं.

विदर्भ को अक्सर महाराष्ट्र में राजनीतिक सत्ता का प्रवेश द्वार कहा जाता है. कृषि क्षेत्र अब मुख्य रूप से ग्रामीण संकट से जूझ रहा है, खासकर सोयाबीन और कपास किसानों के बीच. कांग्रेस ने एमवीए के सत्ता में आने पर सोयाबीन किसानों को 7,000 रुपये प्रति क्विंटल का न्यूनतम समर्थन मूल्य और बोनस देने का वादा किया है, जो कृषक समुदाय के साथ मजबूती से जुड़ सकता है.

बीजेपी के वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की भूमिका भी विदर्भ में देखी जा सकती है, क्योंकि नागपुर इस क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। आरएसएस का मुख्यालय नागपुर में है.

योजनाओं और रेवड़ी की लड़ाई
महाराष्ट्र चुनाव दोनों गठबंधनों की ओर से फ्रीबीज और वादों के लिए भी युद्ध का मैदान बन गया है. यहां, भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति अपनी 'लड़की बहिन' योजना को अहम फैक्टर के रूप में देख रहा है. इस योजना के तहत महिलाओं को सरकार की ओर से 1500 रुपये कैश मिलते हैं. दूसरी ओर, कांग्रेस के नेतृत्व वाली एमवीए ने महायुति से आगे निकलकर प्रत्येक महिला को 3,000 रुपये देने का वादा किया है. इसी तरह दोनों गठबंधनों ने युवाओं, वरिष्ठ नागरिकों और किसानों के लिए भी इसी तरह की घोषणा की है.

किसानों के मुद्दे और ग्रामीण संकट
महाराष्ट्र के पूर्वी जिलों जैसे गढ़चिरौली में, लंबे समय से ग्रामीण संकट एक मुद्दा रहा है. यहां सोयाबीन, कपास, प्याज और गन्ने की कम कीमतों जैसी कृषि संबंधी समस्याएं किसानों के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं. महाराष्ट्र के ग्रामीण लोगों के लिए, मुद्रास्फीति भी एक महत्वपूर्ण फैक्टर हो सकती है.

कांग्रेस ने किसानों को लुभाने के लिए कपास के आयात पर प्रतिबंध लगाने की मांग की और किसानों के लिए बेहतर समर्थन मूल्य का वादा किया, जो ग्रामीण मतदाताओं को प्रभावित कर सकता है.

यह भी पढ़ें- महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024: वोटर लिस्ट में ऑनलाइन चेक करें अपना नाम, ये है पूरा प्रॉसेस

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