प्रयागराज: आज महिलाएं समाज में एक निर्णायक भूमिका निभा रही हैं. यह महिलाएं देश सेवा में भी किसी से कम नहीं हैं. एक समय था जब महिलाओं की भूमिका चिकित्सालय में नर्स के रूप में ही ज्यादा दिखाई देती थी. आज हर क्षेत्र में महिलाएं परचम लहरा रही हैं. अब महिलाएं खुद आत्मनिर्भर बन कर परिवार की आर्थिक स्थिति भी संभाल रही हैं. प्रयागराज की एक महिला समाज के लिए ऐसी मिसाल पेश कर रही है, जिसके चर्चे पूरे जिले में है. दरियाबाद डॉक्टर पांडे चौराहा की रहने वाली शिखा खन्ना की जिन्दगी में ऐसी घटनाएं हुई हैं कि उनको सुनकर हर कोई सहम जाएगा. इसके बाद भी शिखा खन्ना ने हार नहीं मानी. उनका जज्बा और पॉजिटिव सोच ने उन्हें आज कामयाब महिला के रूप में स्थापित कर दिया है.
घरवालों का नहीं मिला साथ
संगम शहर में जन्मी शिखा खन्ना के पति की मृत्यु सन 2002 में हो गई थी. इसके बाद पूरे परिवार के ऊपर एक बड़ी मुसीबत आ गई थी. उस दौरान शिखा के दोनों बच्चे बेहद छोटे थे. उनकी परवरिश के लिए शिखा खन्ना बेबस नजर आ रही थी. मुसीबत के पल के दौरान घर वालों ने भी उनका साथ छोड़ दिया था. शिखा खन्ना ने हिम्मत नहीं हारी. पति की मृत्यु के कुछ ही महीनों के बाद शिखा खन्ना ने एक छोटे से बुटीक से जिंदगी फिर से जीने की शुरुआत की. धीरे-धीरे बिना किसी की परवाह किए वो अपने कारोबार को आगे बढ़ाती गईं.
शिखा खन्ना का कहना है कि पति की मौत के बाद कुछ महीनों तक वह डिप्रेशन में थी, क्योंकि कोई भी उनका साथ नहीं दे रहा था. बच्चों को उच्च शिक्षा देने के लिए उन्होंने समाज के आगे हार नहीं मानी. उन्होंने ई-रिक्शा में चाट का स्टॉल लगाया. कई क्षेत्रों में जाकर चाट-पकौड़ों की स्टॉल भी लगाई और अपने परिवार की जीविका चलाई. उन्होंने स्कूलों में बच्चों की ड्रेसेस भी बनाई.
शिखा ने संघर्ष को ही अपना जीवन मान लिया था. उन्होंने बताया कि 2005 के बाद वो आगे बढ़ती गई. 2014 में प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत लोन लेकर ई-रिक्शा पर फूड कोर्ट खोला. उस गाड़ी में चाट और चाइनीस की दुकान लगाई. इस समय यह गाड़ी सिविल लाइंस के बिग बाजार के सामने लग रही है. आज शिखा खन्ना का बेटा सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत है. बेटी टीचर बन गई है. खास बात यह है कि अपनी 18 साल की कड़ी मेहनत के बाद आज वह आत्मनिर्भर है और 50 से ज्यादा लोगो को उन्होंने रोजगार दे कर रखा है.
शिखा खन्ना के चर्चे पूरे संगम नगरी में हैं. लोग उनकी जमकर सराहना कर रहे हैं. प्रयागराज की क्षेत्रीय पार्षद पूजा कक्कड़ ने बताया कि वो शिखा खन्ना को कई सालों से जानती हैं. उन्होंने बताया कि इनके हसबैंड के मौत के बाद समाज में लोगो ने उनको बहुत प्रताड़ित किया, लेकिन उन्होंने पीछे पलटकर नहीं देखा. आज शिखा खन्ना संगम नगरी के लिए मिसाल बनी हुई हैं. उनके पति की मौत के समय उनकी उम्र बहुत कम थी. साथ में दो बच्चे भी थे. उन्होंने बहुत संघर्ष किया और आज बच्चों को इस मुकाम तक पहुंचाया कि बेटा सुप्रीम कोर्ट में और बेटी हैदराबाद में टीचर है. शिखा खन्ना को मैं सेल्यूट करती हूं.
'बुरे वक्त में न मानें हार'
शिखा खन्ना बताती हैं कि किसी को भी बुरे वक्त में हार नहीं माननी चाहिए. महिलाओं को तो बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि अगर वह हार मान लेंगी तो कुछ भी हासिल नहीं होगा. अपनी बीती जिंदगी को याद करते हुए शिखर खन्ना भावुक भी हुईं, लेकिन आज अपने दोनों बच्चों को अच्छी जगह देखकर वह बेहद खुश हैं.
50 लोगों को दे रहीं रोजगार
शिखा खन्ना ने अपने दोनों बच्चों को मां और पिता दोनों का प्यार दिया है. दोनों बच्चों को पिता की कमी कभी भी खलने नहीं दी. वहीं बच्चे मां से बोलते हैं कि अब आप काम मत करिए अब हम लोग हैं. आपकी सेवा करने के लिए, लेकिन शिखा कहती हैं कि हमारे काम से 50 लोगों को रोजगार मिला है. हम काम बंद कर देंगे तो उनकी की जीविका कैसे चलेगी.