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आखिर कब निर्मल होंगी गंगा, डुबकी लगाने से कतरा रहे श्रद्धालु - प्रयागराज समाचार

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी गंगा स्वच्छ नहीं हो सकी हैं. कुछ जगहों को छोड़ दिया जाए तो गंगा का जल, आचमन तो दूर नहाने लायक भी नहीं है. प्रयागराज माघ मेले में साधु संत भी गंगा की दयनीय स्थिति देखकर काफी दुखी और नाराज हैं. उनकी सरकार से मांग है कि शीघ्र ही गंगा को निर्मल व अविरल बनाने के लिए बड़े कदम उठाए जाएं.

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प्रयागराज में गंगा का जल प्रदूषित.
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Published : Jan 19, 2021, 1:50 PM IST

प्रयागराज: धार्मिक नगरी प्रयागराज में इस समय हर वर्ष लगने वाला माघ मेला चल रहा है. माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति के दिन हुआ और दूसरा स्नान सर पर है. लेकिन गंगा की धारा काली हो गई है. इसमें बहने वाला कचरा आस्था की डुबकी लगाने में बाधक बन रहा है. नमामि गंगे, गंगा स्वच्छता अभियान में करोड़ों खर्च हुए, लेकिन वर्तमान स्थिति को देखकर नहीं लगता है कि इस स्वच्छता मिशन का कोई प्रभाव गंगा पर पड़ा है.

प्रयागराज में गंगा का जल प्रदूषित.

नमामि गंगे परियोजना से भी गंगा नहीं हुईं प्रदूषण मुक्त

2015 में गंगा की स्वच्छता के लिए नमामि गंगे परियोजना की शुरुआत की गई थी, जिसका लक्ष्य 2019 तक गंगा को स्वच्छ और अविरल बनाने का था. इस नमामि गंगे परियोजना में सरकार ने करोड़ों खर्च भी किए. इतना ही नहीं गंगा एक्शन प्लान में गंगा स्वच्छता के नाम पर भी पर भी करोड़ों रुपये सरकार ने खर्च किए, लेकिन गंगा की स्वच्छता पर कोई फर्क नहीं पड़ा. गंगा में रहने वाले जलचरों के लिए गंगा का दूषित पानी हानिकारक साबित हो रहा है. इससे लोगों की धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंच रही है और पर्यावरण को नुकसान हो रहा है.

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संगमनगरी.

गंगा को देवी तुल्य मानते हैं श्रद्धालु

संगम में आने वाले लोग गंगा को देवी तुल्य मानते हैं, लेकिन गंगा के प्रति आस्था और सम्मान होने के बावजूद भी नदियों की पवित्रता, स्वच्छता एवं भौतिक कल्याण को बनाए रखने में सरकार असमर्थ रही है. यहां आए हुए श्रद्धालुओं की माने तो गंगा में नहीं जैसे नाले में डुबकी लगा रहे हैं. आगे पौष पूर्णिमा की मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी और शिवरात्रि जैसे कई माघ मेले के बड़े स्नान पर्व हैं. यहां आने वाले श्रद्धालुओं कहना है कि आस्था से बढ़कर कुछ भी नहीं है, लेकिन स्नान करने के बाद आचमन करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं.

कारखानों का गंदा पानी गंगा को कर रहा प्रदूषित

श्रद्धालुओं का कहना है कि रासायनिक कारखानों से निकलने वाले मलवे को गंगा में डाला जा रहा है. जब तक कारखानों का गंदा पानी गंगा में जाने से नहीं रोका जाएगा, तब तक गंगा प्रदूषण मुक्त नहीं होंगी. वहीं माघ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के अलावा साधु संत भी गंगा की स्थिति देखकर काफी दुखी और नाराज हैं. उनकी सरकार से मांग है कि शीघ्र ही गंगा को निर्मल किया जाए.

भले ही सरकार ने गंगा स्वच्छता मिशन, गंगा स्वच्छता प्लान जैसी योजनाओं का प्रचार प्रसार पर करोड़ों रुपये खर्च किए हों, लेकिन गंगा की ऐसी स्थिति देखकर नहीं लगता है कि ऐसे प्रचार-प्रसार से लोगों पर या सरकार पर कोई फर्क पड़ा है.

प्रयागराज: धार्मिक नगरी प्रयागराज में इस समय हर वर्ष लगने वाला माघ मेला चल रहा है. माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति के दिन हुआ और दूसरा स्नान सर पर है. लेकिन गंगा की धारा काली हो गई है. इसमें बहने वाला कचरा आस्था की डुबकी लगाने में बाधक बन रहा है. नमामि गंगे, गंगा स्वच्छता अभियान में करोड़ों खर्च हुए, लेकिन वर्तमान स्थिति को देखकर नहीं लगता है कि इस स्वच्छता मिशन का कोई प्रभाव गंगा पर पड़ा है.

प्रयागराज में गंगा का जल प्रदूषित.

नमामि गंगे परियोजना से भी गंगा नहीं हुईं प्रदूषण मुक्त

2015 में गंगा की स्वच्छता के लिए नमामि गंगे परियोजना की शुरुआत की गई थी, जिसका लक्ष्य 2019 तक गंगा को स्वच्छ और अविरल बनाने का था. इस नमामि गंगे परियोजना में सरकार ने करोड़ों खर्च भी किए. इतना ही नहीं गंगा एक्शन प्लान में गंगा स्वच्छता के नाम पर भी पर भी करोड़ों रुपये सरकार ने खर्च किए, लेकिन गंगा की स्वच्छता पर कोई फर्क नहीं पड़ा. गंगा में रहने वाले जलचरों के लिए गंगा का दूषित पानी हानिकारक साबित हो रहा है. इससे लोगों की धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंच रही है और पर्यावरण को नुकसान हो रहा है.

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संगमनगरी.

गंगा को देवी तुल्य मानते हैं श्रद्धालु

संगम में आने वाले लोग गंगा को देवी तुल्य मानते हैं, लेकिन गंगा के प्रति आस्था और सम्मान होने के बावजूद भी नदियों की पवित्रता, स्वच्छता एवं भौतिक कल्याण को बनाए रखने में सरकार असमर्थ रही है. यहां आए हुए श्रद्धालुओं की माने तो गंगा में नहीं जैसे नाले में डुबकी लगा रहे हैं. आगे पौष पूर्णिमा की मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी और शिवरात्रि जैसे कई माघ मेले के बड़े स्नान पर्व हैं. यहां आने वाले श्रद्धालुओं कहना है कि आस्था से बढ़कर कुछ भी नहीं है, लेकिन स्नान करने के बाद आचमन करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं.

कारखानों का गंदा पानी गंगा को कर रहा प्रदूषित

श्रद्धालुओं का कहना है कि रासायनिक कारखानों से निकलने वाले मलवे को गंगा में डाला जा रहा है. जब तक कारखानों का गंदा पानी गंगा में जाने से नहीं रोका जाएगा, तब तक गंगा प्रदूषण मुक्त नहीं होंगी. वहीं माघ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के अलावा साधु संत भी गंगा की स्थिति देखकर काफी दुखी और नाराज हैं. उनकी सरकार से मांग है कि शीघ्र ही गंगा को निर्मल किया जाए.

भले ही सरकार ने गंगा स्वच्छता मिशन, गंगा स्वच्छता प्लान जैसी योजनाओं का प्रचार प्रसार पर करोड़ों रुपये खर्च किए हों, लेकिन गंगा की ऐसी स्थिति देखकर नहीं लगता है कि ऐसे प्रचार-प्रसार से लोगों पर या सरकार पर कोई फर्क पड़ा है.

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