प्रयागराज: वाराणसी में ट्रांसपोर्ट नगर के लिए अधिग्रहित भूमि के खिलाफ दाखिल याचिकाएं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आंशिक रूप से स्वीकार कर ली है. कोर्ट ने उन जमीनों के खिलाफ किसानों की याचिकाएं खारिज कर दी है. जिनका अवार्ड घोषित किया जा चुका है तथा जिनके भू स्वामियों ने मुआवजा भी प्राप्त कर लिया है. जबकि उन भू स्वामियों जिनकी जमीनों का ना तो अवार्ड घोषित किया गया और ना ही उन्होंने मुआवजा प्राप्त किया है. उनको राहत देते हुए कोर्ट ने कहा है कि इन किसानों का जमीन पर कब्जा बरकरार रहेगा. सरकार उनको तब तक वहां से नहीं हटा सकती, जब तक कि उनका अवार्ड घोषित करके मुआवजा नहीं दिया जाता है.
भूमि अधिग्रहण को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में ठाकुर प्रसाद व अन्य तथा हरिवंश पांडे सहित तमाम किसानों ने याचिकाएं दाखिल की थी. इन याचिकाओं पर न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने सुनवाई की. मामले के अनुसार सुनियोजित औद्योगिक विकास के लिए 18 दिसंबर 2000 में 4 गांव की 86.219 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया. इसमें से 45.249 हेक्टेयर जमीन का अवार्ड घोषित कर दिया गया और किसानों के साथ हुए समझौते के तहत उनको मुआवजा भी दे दिया गया.
जबकि शेष भूमि का ना तो अवार्ड घोषित किया गया और ना ही मुआवजा दिया गया. किसानों ने अधिग्रहण की अधिसूचना को यह कहते हुए चुनौती दी कि अभी भी भूमि पर उनका कब्जा बरकरार है और मुआवजा नहीं मिला है. इसलिए या तो अधिग्रहण को रद्द किया जाए अथवा मौजूदा दर से जमीन का मुआवजा दिया जाए. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में 2 तरीके के पक्षकार हैं. पहले तो वह जिनकी जमीन का अवार्ड घोषित हो चुका है.
उन्होंने समझौते के तहत मुआवजा भी प्राप्त कर दिया है. ऐसे किसान किसी राहत के हकदार नहीं है. जबकि दूसरा पक्ष वह हैं जिनका अधिग्रहण की अधिसूचना जारी होने के बाद ना तो अवार्ड घोषित किया गया और ना ही उन्होंने मुआवजा प्राप्त किया है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे किसानों का उनकी जमीन पर कब्जा बरकरार है. इसलिए सरकार विधिपूर्वक अवार्ड घोषित कर मुआवजा दिए बिना किसानों से उनकी भूमि नहीं ले सकती है.
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