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शिक्षक दिवस विशेष: राज्य अध्यापक पुरस्कार के लिए चयनित हुईं प्रयागराज की नीलिमा श्रीवास्तव - 5 सितम्बर

आज शिक्षक दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति देश के अलग अलग राज्यों के 47 शिक्षकों को सम्मानित करेंगे. इस सूची में प्रयागराज की शिक्षिका नीलिमा श्रीवास्तव का भी नाम शामिल है. उन्हें शिक्षक दिवस पर लखनऊ में सम्मानित किया जाएगा. नीलिमा पूर्व माध्यमिक विद्यालय जोगिया शेखपुर में सहायक अध्यापक हैं.

शिक्षिक श्रीवास्तव से बातचीत.
शिक्षिक श्रीवास्तव से बातचीत.
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Published : Sep 5, 2020, 7:28 PM IST

Updated : Sep 5, 2020, 10:42 PM IST

प्रयागराज: आज 5 सितंबर को देश भर में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है. संगम नगरी की रहने वाली पूर्व माध्यमिक विद्यालय जोगिया शेखपुर फूलपुर की शिक्षिका नीलिमा श्रीवास्तव को राज्य अध्यापक पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने कहा कि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को घर के बच्चों की तरह प्यार और व्यवहार करना चाहिए. इससे स्कूल जाने और पढ़ाई करने में बच्चों का मन लगा रहेगा.

महत्वपूर्ण बातें-

  • ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की पढ़ाई में शिक्षिका नीलिमा श्रीवास्तव ने दिया विशेष योगदान.
  • शिक्षिका नीलिमा श्रीवास्तव को किया जाएगा सम्मानित.

बतौर शिक्षक 21 साल से दे रही हूं सेवा
शिक्षिका नीलिमा श्रीवास्तव ने बताया कि राज्य पुरस्कार में नाम चयनित होने से वह बहुत खुश हैं. नीलिमा पिछले 21 सालों से निरंतर इस विभाग में सेवा दे रही हैं. ग्रामीण स्कूल में जाना और वहां के बच्चों को पढ़ाई के प्रति आगे ले आना ही वे अपना धर्म मानती हैं. उनका कहना है कि ग्रामीण बच्चों को स्कूल तक लाना बहुत कठिन काम था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. बच्चों और उनके परिजनों का हौंसला बढ़ाने के साथ ही बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रेरित किया करती थीं.

टीचर नीलिमा श्रीवास्तव से बातचीत.

संघर्ष भरा था सफर
शिक्षिका ने बताया कि जब उनकी पोस्टिंग विकासखंड फूलपुर के जोगीरा शेखर स्थित पूर्व माध्यमिक विद्यालय में हुई तो वहां के बच्चों को स्कूल के प्रति कोई रुझान नहीं था. बहुत संघर्ष भरा सफर रहा और बच्चों को स्कूल में लाने के लिए कठिन मेहनत करनी पड़ी. स्कूल को बच्चों के हिसाब से सजाया गया, ताकि वे पढ़ने के साथ खेल-कूद कर सकें और उनका मन लगा रहे. इसके बाद गांव में जाकर हर बच्चे के माता-पिता को समझाया गया. इसके बाद धीरे-धीरे बच्चे स्कूल आने लगे और वे अपने मकसद में कामयाब हुईं.

अलग-अलग प्रोजेक्ट पर करती थीं काम
शिक्षिका नीलिमा श्रीवास्तव ने बताया कि बच्चों को स्कूल में बने रहने के लिए अलग-अलग तरह की एक्टिविटी का आयोजन होता था. बच्चों की पढ़ाई के साथ खेलकूद की एक्टिविटी को आयोजित किया जाता था. इसके बाद फिर बाल संसद शुरू किया गया. इसके तहत बच्चों को सिंचाई, पौधरोपण आदि बातें भी सिखाई जाती थीं. इससे बच्चों का रुझान बढ़ता गया. इसके बाद बच्चों को शहरी क्षेत्रों से जोड़ने के लिए भारत स्काउट गाइड बनाया गया, इसके माध्यम से उन्हें शहरों में विजिट कराने का कार्य शुरू हुआ.

शिक्षक के व्यवहार से बनता है स्कूल वातावरण
शिक्षिका का कहना है कि स्कूलों को बेहतर तरीके से संचालित करने के लिए सबसे पहले शिक्षक को अपने आप में बदलना होगा, क्योंकि शिक्षक पर ही विद्यालय का वातावरण निर्भर करता है. एक शिक्षक चाहे तो बच्चों को किसी भी ढांचे में ढाल सकता है.

प्रयागराज: आज 5 सितंबर को देश भर में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है. संगम नगरी की रहने वाली पूर्व माध्यमिक विद्यालय जोगिया शेखपुर फूलपुर की शिक्षिका नीलिमा श्रीवास्तव को राज्य अध्यापक पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने कहा कि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को घर के बच्चों की तरह प्यार और व्यवहार करना चाहिए. इससे स्कूल जाने और पढ़ाई करने में बच्चों का मन लगा रहेगा.

महत्वपूर्ण बातें-

  • ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की पढ़ाई में शिक्षिका नीलिमा श्रीवास्तव ने दिया विशेष योगदान.
  • शिक्षिका नीलिमा श्रीवास्तव को किया जाएगा सम्मानित.

बतौर शिक्षक 21 साल से दे रही हूं सेवा
शिक्षिका नीलिमा श्रीवास्तव ने बताया कि राज्य पुरस्कार में नाम चयनित होने से वह बहुत खुश हैं. नीलिमा पिछले 21 सालों से निरंतर इस विभाग में सेवा दे रही हैं. ग्रामीण स्कूल में जाना और वहां के बच्चों को पढ़ाई के प्रति आगे ले आना ही वे अपना धर्म मानती हैं. उनका कहना है कि ग्रामीण बच्चों को स्कूल तक लाना बहुत कठिन काम था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. बच्चों और उनके परिजनों का हौंसला बढ़ाने के साथ ही बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रेरित किया करती थीं.

टीचर नीलिमा श्रीवास्तव से बातचीत.

संघर्ष भरा था सफर
शिक्षिका ने बताया कि जब उनकी पोस्टिंग विकासखंड फूलपुर के जोगीरा शेखर स्थित पूर्व माध्यमिक विद्यालय में हुई तो वहां के बच्चों को स्कूल के प्रति कोई रुझान नहीं था. बहुत संघर्ष भरा सफर रहा और बच्चों को स्कूल में लाने के लिए कठिन मेहनत करनी पड़ी. स्कूल को बच्चों के हिसाब से सजाया गया, ताकि वे पढ़ने के साथ खेल-कूद कर सकें और उनका मन लगा रहे. इसके बाद गांव में जाकर हर बच्चे के माता-पिता को समझाया गया. इसके बाद धीरे-धीरे बच्चे स्कूल आने लगे और वे अपने मकसद में कामयाब हुईं.

अलग-अलग प्रोजेक्ट पर करती थीं काम
शिक्षिका नीलिमा श्रीवास्तव ने बताया कि बच्चों को स्कूल में बने रहने के लिए अलग-अलग तरह की एक्टिविटी का आयोजन होता था. बच्चों की पढ़ाई के साथ खेलकूद की एक्टिविटी को आयोजित किया जाता था. इसके बाद फिर बाल संसद शुरू किया गया. इसके तहत बच्चों को सिंचाई, पौधरोपण आदि बातें भी सिखाई जाती थीं. इससे बच्चों का रुझान बढ़ता गया. इसके बाद बच्चों को शहरी क्षेत्रों से जोड़ने के लिए भारत स्काउट गाइड बनाया गया, इसके माध्यम से उन्हें शहरों में विजिट कराने का कार्य शुरू हुआ.

शिक्षक के व्यवहार से बनता है स्कूल वातावरण
शिक्षिका का कहना है कि स्कूलों को बेहतर तरीके से संचालित करने के लिए सबसे पहले शिक्षक को अपने आप में बदलना होगा, क्योंकि शिक्षक पर ही विद्यालय का वातावरण निर्भर करता है. एक शिक्षक चाहे तो बच्चों को किसी भी ढांचे में ढाल सकता है.

Last Updated : Sep 5, 2020, 10:42 PM IST
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