प्रयागराज: सेंटर फॉर कांस्टीट्यूशन एण्ड सोशल रिफार्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष संविधानविद् वरिष्ठ अधिवक्ता अमरनाथ त्रिपाठी ने एक जनवरी 22से देश की सभी हाईकोर्टों में ई-दाखिले के निर्देश को गैर संवैधानिक करार दिया है. उन्होंने कहा है कि यह स्थापित न्याय प्रणाली के विरुद्ध है. कोरोना काल में लागू की गई आपात व्यवस्था को स्थायी रूप से लागू करना वादकारी को न्याय प्रक्रिया से दूर करना है.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ई कमेटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने देश की सभी हाईकोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों को 9अक्टूबर 21को पत्र लिखकर एक जनवरी 2022 से सरकारी या अर्धसरकारी मामलों में ई-दाखिला करने का अनुरोध किया है. यह पेपरलेस कोर्ट की दिशा में शुरूआती कदम बताया जा रहा है. इसी क्रम में केंद्रीय विधि एवं न्याय सचिव अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने 3 दिसंबर 2021 को ई-कमेटी के आदेश के अनुपालन में सभी अपर और सहायक सालिसिटर जनरल को मुकद्दमों का ई-दाखिला करने का निर्देश दिया है.
इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता अमरनाथ त्रिपाठी का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 145 में सुप्रीम कोर्ट और अनुच्छेद 225 में हाईकोर्ट को नियम बनाने का अधिकार दिया गया है. दोनों ही संवैधानिक संस्था है. सुप्रीम कोर्ट की कमेटी को यह अधिकार नहीं कि वह हाईकोर्ट को निर्देश दे. हाईकोर्ट अधीनस्थ संस्था नहीं है. कोरोना काल में अपनायी गई अस्थाई व्यवस्था को स्थायी रूप से नहीं अपनाया जा सकता.
त्रिपाठी ने कहा कि देश में सभी विभागों व संस्थाओं में काम हो रहा है. कोरोना का असर लगभग समाप्त हो चुका है. न्यायालयों को भी जांची परखी न्याय प्रणाली के तहत काम करना चाहिए. न्यायिक सिद्धांत है कि वादकारी की मौजूदगी में पारदर्शी न्याय दिया जाय. जिनके लिए न्यायपालिका स्थापित है उन्हीं को न्याय प्रक्रिया से दूर करना उचित नहीं होगा.
वरिष्ठ अधिवक्ता अमरनाथ त्रिपाठी ने आश्चर्य प्रकट किया कि इतने बड़े कदम पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया और प्रदेश बार काउंसिलों से चर्चा नहीं की गई और न ही कोई इसके पड़ने वाले दुष्प्रभाव पर बोल रहा है. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के संबद्ध बार एसोसिएशन भी चुप्पी साधे हुए है. त्रिपाठी का कहना है कि उप्र की 70 फीसदी आबादी ग्रामीण परिवेश की है. इंटरनेट कनेक्टिविटी व तकनीकी सुविधा से दूर अधिकांश अधिवक्ताओं के लिए यह आसान नहीं होगा.
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