प्रयागराजः कर्बला के शहीदों की याद में शनिवार को दसवीं मोहर्रम पर पूरा शहर गम-ए-हुसैन में शामिल हुआ, जिस रास्ते से ताजिया गुजरा, वहां-वहां पर लोगों ने जियारत की. मकान की छत के ऊपर, सड़क किनारे हर तरफ लोगों का हूजूम देखने को मिला. चारों तरफ या अली या हुसैन की सदाएं गूंजती रहीं.
इस दौरान अकीदतमंदों ने कहा कि हुसैन ने इंसानियत का पैगाम सारी दुनिया में फैलाकर कर्बला के मैदान में 3 दिन के भूखे प्यासे लड़ते रहे. अकींदमत खानदाने रिसालत की शहादत यानि आशूरा पर हर तरफ गम की चादर और आंखों में आंसू लिए नजर आए. उन्होंने नंगे पैर इमामबाड़ों से करबला तक का पैदल सफर तय किया. इस दौरान जुलूस को अपने परंपरागत मार्गो से होते हुए वो चकिया कर्बला पहुंचे. दरियाबाद से आशूरा के लिए निकाले गए ताजिए को दरगाह इमाम हुसैन के पास बने छोटे छोटे गड्ढों में सुपुर्द-ए-खाक किया गया.
अकीदतमंदों ने बताया कि 6 माह के मासूम अली असगर की शहादत के बाद हजरत इमाम हुसैन जब लाशा-ए-बेशीर को खैमे में वापिस लेकर जाने लगे, तो 7 बार आगे बढ़ने के बाद अपने कदमों को पीछे कर लिया. वह यही सोच रहे थे कि कैसे मैं इस बेजुबान बेटे की लाश को उसकी मां रबाब के पास लेकर जाएं. इसी मरहले को याद करते हुए शिया समुदाय के लोग आशूरा को खुले आसमान में उसी अमल को करते हैं, जिसे आमाले आशूरा कहा जाता है. कर्बला में सैकड़ों लोगों ने मौलाना सैय्यद रजी हैदर रिजवी की कयादत आमाले आशूरा किया.
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