प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि विवाहित पुत्री मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने की हकदार नहीं हैं. कोर्ट ने इसके तीन कारण बताते हुए कहा कि शिक्षण संस्थाओं के लिए बने रेग्यूलेशन 1995 के तहत विवाहित पुत्री परिवार में शामिल नहीं है.
द्वितीय आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग अधिकार के रूप में नहीं की जा सकती. याची ने छिपाया कि उसकी मां को पारिवारिक पेंशन मिल रही है. वह याची पर आश्रित नहीं है और तीसरे कानून एवं परंपरा दोनों के अनुसार विवाहित पुत्री अपने पति की आश्रित होती है, पिता की आश्रित नहीं.
कोर्ट ने राज्य सरकार की विशेष अपील को स्वीकार करते हुए एकलपीठ के विवाहित पुत्री को आश्रित कोटे में नियुक्ति देने के आदेश 9 अगस्त 21 को रद्द कर दिया है. यह फैसला कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एम.एन भंडारी तथा न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने दिया है. माधवी मिश्र ने विवाहित पुत्री के तौर पर विमला श्रीवास्तव केस के आधार पर मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग की. याची के पिता इंटर कॉलेज में तदर्थ प्रधानाचार्य पद पर कार्यरत थे. सेवाकाल में उनकी मृत्यु हो गई.
राज्य सरकार की अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता सुभाष राठी का कहना था कि मृतक आश्रित विनियमावली 1995, साधारण खंड अधिनियम 1904, इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम व 30 जुलाई 1992 के शासनादेश के तहत विधवा, विधुर, पुत्र, अविवाहित या विधवा पुत्री को आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का हकदार माना गया है.
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1974 की मृतक आश्रित सेवा नियमावली काॅलेज की नियुक्ति पर लागू नहीं होती. एकलपीठ ने गलत ढंग से इसके आधार पर नियुक्ति का आदेश दिया है. वैसे भी सामान्य श्रेणी का पद खाली नहीं है. मृतक की विधवा पेंशन पा रही है. जिला विद्यालय निरीक्षक शाहजहांपुर ने नियुक्ति से इंकार कर गलती नहीं की है.
याची अधिवक्ता सीमांत सिंह का कहना था कि सरकार ने कल्याणकारी नीति अपनाई है. विमला श्रीवास्तव केस में कोर्ट ने पुत्र-पुत्री में विवाहित होने के आधार पर भेद करने को असंवैधानिक करार दिया है. नियमावली के अविवाहित शब्द को रद्द कर दिया है.
कोर्ट ने कहा कि आश्रित की नियुक्ति का नियम जीविकोपार्जन करने वाले की अचानक मौत से उत्पन्न आर्थिक संकट में मदद के लिए की जाती है. मान्यता प्राप्त एडेड काॅलेजों के आश्रित कोटे में नियुक्ति की अलग नियमावली है. सरकारी सेवकों की 1994 की नियमावली इसमें लागू नहीं होगी.
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्टर ऑफ ट्रेनीज कर्नाटक केस के फैसले का हवाला दिया. कहा कि आश्रित कोटे की नियुक्ति सामान्य नियम का अपवाद है. किसी को आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का कानूनी अधिकार नहीं है. लोक सेवा के पदों को संविधान के अनुच्छेद 14 व 15 के तहत ही भरा जाय. आश्रित की नियुक्ति राज्य सरकार के नियमों के अनुसार ही की जा सकती है. विवाहिता पुत्री को शिक्षा रेग्यूलेशन 1995 के तहत आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं है.