ETV Bharat / state

महंत नरेंद्र गिरि ने तीन बार बदली थी वसीयत, आखिरी बार में बलवीर गिरि पर जताया था भरोसा - prayagraj ka samachar

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने तीन बार वसीयत बनवायी थी. उनके वकील का दावा है कि महंत नरेंद्र गिरि ने पहली और आखिरी वसीयत में बलवीर गिरि को ही उत्तराधिकारी बनाया था.

महंत नरेंद्र गिरि ने तीन बार बदली थी वसीयत
महंत नरेंद्र गिरि ने तीन बार बदली थी वसीयत
author img

By

Published : Sep 24, 2021, 10:45 PM IST

Updated : Sep 25, 2021, 9:45 AM IST

प्रयागराजः महंत नरेंद्र गिरि के वकील का दावा है कि महंत ने पहली और आखिरी वसीयत में बलवीर गिरि को ही उत्तराधिकारी बनाया था. जबकि दूसरी वसीयत में आनंद गिरि के नाम वसीयत बनवायी थी. लेकिन जनवरी 2010 को बलबीर गिरि के नाम बनायी गई पहली वसीयत को उन्होंने एक साल बाद अगस्त 2011 को ही बदलवा दिया था. हालांकि अगस्त 2011 को आनंद गिरि के नाम से बनाई गई दूसरी वसीयत को पिछले साल बदलवाकर फिर से बलवीर गिरि के नाम पर कर दिया था.

बताया जा रहा है कि महंत नरेंद्र गिरि ने सुसाइड वाले दिन भी दोपहर में अपने वकील को फोन करके मिलने के लिए कहा था. लेकिन वकील के कोर्ट में होने की वजह से उनके बीच ज्यादा बातचीत नहीं हो सकी थी. हालांकि अभी महंत के वकील ने किसी भी वसीयत की कॉपी नहीं दिखाई है. उन्होंने जल्द ही वसीयत की कॉपी उपलब्ध करवाने की बात कही है.

महंत नरेंद्र गिरि ने तीन बार बदली थी वसीयत

महंत नरेंद्र गिरि की जिस दिन सुसाइड की वजह से मौत हुई बतायी जा रही है. उस दिन उन्होंने घटना से चंद घंटे पहले अपने वकील ऋषि शंकर द्विवेदी को फोन कर मिलने के लिये कहा था. लेकिन वकील के कोर्ट में होने की वजह से उनके बीच ज्यादा बातचीत नहीं हो सकी और महंत नरेंद्र गिरि ने बताता हूं कहकर फोन काट दिया था. उनके वकील का कहना है कि महंत नरेंद्र गिरि ने 20 सितम्बर को दिन में 12 बजे के करीब फोन किया था. लेकिन कोर्ट में होने की वजह से ज्यादा बात नहीं हो सकी. अक्सर उनके पास महंत नरेंद्र गिरि का फोन आता था और जरूरत पड़ने पर वह उन्हें मठ में बुला लेते थे. जिस वजह से उस दिन आयी कॉल को वकील ने गंभीरता से नहीं लिया. उन्होंने शाम तक बात मुलाकात करने के लिए सोचा था. लेकिन शाम को ही उनके सुसाइड की ख़बर आ गयी. वकील ने यह भी बताया कि जिस नंबर से हमेशा उनकी कॉल आती थी उस दिन उस नंबर से कॉल नहीं किया था. बल्कि दूसरे नंबर से कॉल किया था. महंत नरेंद्र गिरी ने सुसाइड से पहले अपने अधिवक्ता को फोन क्यों किया था. इस सवाल का जवाब जानने के लिए अब सिर्फ कयास ही लगाया जा सकता है. क्योंकि इन सभी सवालों का जवाब महंत नरेंद्र गिरी की मौत के साथ समाप्त हो गए हैं.

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने एक दो नहीं बल्कि तीन बार वसीयत की थी. महंत नरेंद्र गिरी के वकील ऋषि शंकर द्विवेदी का कहना है कि उन्होंने पहली वसीयत जनवरी 2010 में बलवीर गिरि के नाम पर बनवायी थी. लेकिन साल भर के बाद ही उन्होंने दूसरी बार वसीयत तैयार करवायी. अगस्त 2011 में दूसरी वसीयत में महंत नरेंद्र गिरि ने अपना उत्तराधिकारी शिष्य आनंद गिरि को बना दिया था. जिसके बाद 9 साल तक वही वसीयत चल रही थी. लेकिन जून 2020 में महंत नरेंद्र गिरि ने तीसरी बार अपनी वसीयत बनवायी. इस तीसरी वसीयत में महंत नरेंद्र गिरि ने एक बार फिर बलवीर गिरि पर भरोसा जताया और उनके नाम पर वसीयत कर दी. ये बातें अधिवक्ता ऋषि शंकर द्विवेदी बता रहे हैं. उनका कहना है कि महंत नरेंद्र गिरि ने उन्हीं से वसीयत तैयार करवायी थी. उनके साथ ही दूसरे अधिवक्ता थे जिनका कहना है कि वो जून 2020 में महंत नरेंद्र गिरि के द्वारा की गयी वसीयत के गवाह थे. लेकिन उस वक्त उन्हें ये नहीं पता थी कि वसीयत किसके नाम की गयी है.

इसे भी पढ़ें- एक ही दिन में दूसरी बार बाघम्बरी मठ पहुंची एसआईटी की टीम

अधिवक्ता ऋषि शंकर द्विवेदी का कहना है कि महंत नरेंद्र गिरी ने तीन बार वसीयत बदली है. इस वजह से उनकी आखिरी वसीयत को ही मान्यता मिलेगी. तीसरी वसीयत से पहले की गयी दोनों वसीयत की कोई वैल्यू नहीं रहेगी. अधिवक्ता के मुताबिक महंत नरेंद्र गिरि ने 10 साल पहले 2010 में बलवीर गिरि के नाम पर वसीयत की थी. लेकिन बलवीर गिरि वसीयत होने के बाद मठ और गद्दी के कार्यों को लेकर लापरवाह हो गए. महंत नरेंद्र गिरि ने अपनी वसीयत को बदल दिया और उन्होंने दूसरे शिष्य आनंद गिरि के नाम पर अपनी वसीयत कर दी थी. आनंद गिरि के नाम यह वसीयत 2011 से लेकर 2020 तक थी. लेकिन इन 9 सालों में आनंद गिरि लगातार सिर्फ अपना वर्चस्व बढ़ा रहे थे. वहीं जब महंत नरेंद्र गिरि को यह लगा कि आनंद गिरि उनके उत्तराधिकारी बनने के काबिल नहीं है, तो उन्होंने अपने अधिवक्ता ऋषि शंकर द्विवेदी को बुलाकर तीसरी बार नई वसीयत बनवायी. तीसरी वसीयत में अपने पुराने शिष्य बलवीर गिरि पर ही भरोसा जताया और उनको अपना उत्तराधिकारी बना दिया.

प्रयागराजः महंत नरेंद्र गिरि के वकील का दावा है कि महंत ने पहली और आखिरी वसीयत में बलवीर गिरि को ही उत्तराधिकारी बनाया था. जबकि दूसरी वसीयत में आनंद गिरि के नाम वसीयत बनवायी थी. लेकिन जनवरी 2010 को बलबीर गिरि के नाम बनायी गई पहली वसीयत को उन्होंने एक साल बाद अगस्त 2011 को ही बदलवा दिया था. हालांकि अगस्त 2011 को आनंद गिरि के नाम से बनाई गई दूसरी वसीयत को पिछले साल बदलवाकर फिर से बलवीर गिरि के नाम पर कर दिया था.

बताया जा रहा है कि महंत नरेंद्र गिरि ने सुसाइड वाले दिन भी दोपहर में अपने वकील को फोन करके मिलने के लिए कहा था. लेकिन वकील के कोर्ट में होने की वजह से उनके बीच ज्यादा बातचीत नहीं हो सकी थी. हालांकि अभी महंत के वकील ने किसी भी वसीयत की कॉपी नहीं दिखाई है. उन्होंने जल्द ही वसीयत की कॉपी उपलब्ध करवाने की बात कही है.

महंत नरेंद्र गिरि ने तीन बार बदली थी वसीयत

महंत नरेंद्र गिरि की जिस दिन सुसाइड की वजह से मौत हुई बतायी जा रही है. उस दिन उन्होंने घटना से चंद घंटे पहले अपने वकील ऋषि शंकर द्विवेदी को फोन कर मिलने के लिये कहा था. लेकिन वकील के कोर्ट में होने की वजह से उनके बीच ज्यादा बातचीत नहीं हो सकी और महंत नरेंद्र गिरि ने बताता हूं कहकर फोन काट दिया था. उनके वकील का कहना है कि महंत नरेंद्र गिरि ने 20 सितम्बर को दिन में 12 बजे के करीब फोन किया था. लेकिन कोर्ट में होने की वजह से ज्यादा बात नहीं हो सकी. अक्सर उनके पास महंत नरेंद्र गिरि का फोन आता था और जरूरत पड़ने पर वह उन्हें मठ में बुला लेते थे. जिस वजह से उस दिन आयी कॉल को वकील ने गंभीरता से नहीं लिया. उन्होंने शाम तक बात मुलाकात करने के लिए सोचा था. लेकिन शाम को ही उनके सुसाइड की ख़बर आ गयी. वकील ने यह भी बताया कि जिस नंबर से हमेशा उनकी कॉल आती थी उस दिन उस नंबर से कॉल नहीं किया था. बल्कि दूसरे नंबर से कॉल किया था. महंत नरेंद्र गिरी ने सुसाइड से पहले अपने अधिवक्ता को फोन क्यों किया था. इस सवाल का जवाब जानने के लिए अब सिर्फ कयास ही लगाया जा सकता है. क्योंकि इन सभी सवालों का जवाब महंत नरेंद्र गिरी की मौत के साथ समाप्त हो गए हैं.

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने एक दो नहीं बल्कि तीन बार वसीयत की थी. महंत नरेंद्र गिरी के वकील ऋषि शंकर द्विवेदी का कहना है कि उन्होंने पहली वसीयत जनवरी 2010 में बलवीर गिरि के नाम पर बनवायी थी. लेकिन साल भर के बाद ही उन्होंने दूसरी बार वसीयत तैयार करवायी. अगस्त 2011 में दूसरी वसीयत में महंत नरेंद्र गिरि ने अपना उत्तराधिकारी शिष्य आनंद गिरि को बना दिया था. जिसके बाद 9 साल तक वही वसीयत चल रही थी. लेकिन जून 2020 में महंत नरेंद्र गिरि ने तीसरी बार अपनी वसीयत बनवायी. इस तीसरी वसीयत में महंत नरेंद्र गिरि ने एक बार फिर बलवीर गिरि पर भरोसा जताया और उनके नाम पर वसीयत कर दी. ये बातें अधिवक्ता ऋषि शंकर द्विवेदी बता रहे हैं. उनका कहना है कि महंत नरेंद्र गिरि ने उन्हीं से वसीयत तैयार करवायी थी. उनके साथ ही दूसरे अधिवक्ता थे जिनका कहना है कि वो जून 2020 में महंत नरेंद्र गिरि के द्वारा की गयी वसीयत के गवाह थे. लेकिन उस वक्त उन्हें ये नहीं पता थी कि वसीयत किसके नाम की गयी है.

इसे भी पढ़ें- एक ही दिन में दूसरी बार बाघम्बरी मठ पहुंची एसआईटी की टीम

अधिवक्ता ऋषि शंकर द्विवेदी का कहना है कि महंत नरेंद्र गिरी ने तीन बार वसीयत बदली है. इस वजह से उनकी आखिरी वसीयत को ही मान्यता मिलेगी. तीसरी वसीयत से पहले की गयी दोनों वसीयत की कोई वैल्यू नहीं रहेगी. अधिवक्ता के मुताबिक महंत नरेंद्र गिरि ने 10 साल पहले 2010 में बलवीर गिरि के नाम पर वसीयत की थी. लेकिन बलवीर गिरि वसीयत होने के बाद मठ और गद्दी के कार्यों को लेकर लापरवाह हो गए. महंत नरेंद्र गिरि ने अपनी वसीयत को बदल दिया और उन्होंने दूसरे शिष्य आनंद गिरि के नाम पर अपनी वसीयत कर दी थी. आनंद गिरि के नाम यह वसीयत 2011 से लेकर 2020 तक थी. लेकिन इन 9 सालों में आनंद गिरि लगातार सिर्फ अपना वर्चस्व बढ़ा रहे थे. वहीं जब महंत नरेंद्र गिरि को यह लगा कि आनंद गिरि उनके उत्तराधिकारी बनने के काबिल नहीं है, तो उन्होंने अपने अधिवक्ता ऋषि शंकर द्विवेदी को बुलाकर तीसरी बार नई वसीयत बनवायी. तीसरी वसीयत में अपने पुराने शिष्य बलवीर गिरि पर ही भरोसा जताया और उनको अपना उत्तराधिकारी बना दिया.

Last Updated : Sep 25, 2021, 9:45 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.