प्रयागराज: नवरात्र के आठवें दिन माता शक्ति के महागौरी स्वरूप की पूजा की जाती है. शिवपुराण के अनुसार महागौरी को 8 साल की उम्र में ही अपने पूर्व जन्म की घटनाओं का आभास हो गया था. इसलिए उन्होंने 8 साल की उम्र से ही भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या शुरू कर दी थी. इसलिए अष्टमी के दिन महागौरी का पूजन करने का विधान है.
महागौरी का ध्यान मंत्र--
श्वेते वृषे समारुढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा. महागौरी का पूजन करते समय इस मंत्र से ध्यान करना चाहिए.
ऐसा होता है महागौरी का स्वरूप
पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्ला ने बताया कि मां महागौरी को शिवा भी कहा जाता है. इनके एक हाथ में दुर्गा शक्ति का प्रतीक त्रिशूल है तो दूसरे हाथ में भगवान शिव का प्रतीक डमरू है. अपने सांसारिक रूप में महागौरी उज्ज्वल, कोमल, श्वेत वर्णी तथा श्वेत वस्त्रधारी और चतुर्भुजा हैं. इनका तीसरा हाथ वर मुद्रा में है और चौथा हाथ एक गृहस्थ महिला की शक्ति को दर्शाता है. महागौरी को गायन और संगीत बहुत पसंद है. ये सफेद वृषभ यानी बैल पर सवार रहती हैं. इनके समस्त आभूषण आदि भी श्वेत हैं. महागौरी की उपासना से पूर्व संचित पाप नष्ट हो जाते हैं.
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पूजा करने की विधि
मां शक्ति के इस स्वरूप की पूजा में नारियल, हलवा, पूड़ी और सब्जी का भोग लगाया जाता है. इस दिन काले चने का प्रसाद विशेष रूप से बनाया जाता है.
इस दिन कन्या भोज का विशेष महत्व है
इस दिन पूजन के बाद कुंवारी कन्याओं को भोजन कराने और उनका पूजन करने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है. महागौरी माता अन्नपूर्णा स्वरूप भी हैं. इसलिए कन्याओं को भोजन कराने और उनका पूजन-सम्मान करने से धन, वैभव और सुख-शांति की प्राप्ति होती है. महागौरी की पूजा करते समय जहां तक हो सके, गुलाबी रंग के वस्त्र पहनने चाहिए. महागौरी गृहस्थ आश्रम की देवी हैं और गुलाबी रंग प्रेम का प्रतीक है. एक परिवार को प्रेम के धागों से ही बांध कर रखा जा सकता है.