प्रयागराज : उत्तर प्रदेश की राजनीति पर अगर एक नजर डालें तो यहां बाहुबलियों और धनबल का हमेशा से बोलबाला देखने को मिलता है. यानि जिसकी जेब गर्म है और पावर है उनकी इलाके में तूती बोलती है. लेकिन प्रयागराज की एक ऐसी विधानसभा सीट है जहां बाहुबल, धनबल या जाति के आधार पर नहीं बल्कि विकास और विद्वता के आधार पर प्रत्याशी को जिताया या हराया जाता है. हम बात कर रहे हैं प्रयागराज की उत्तरी विधानसभी सीट (Prayagraj North Assembly Constituency) की. शहर की यह विधानसभा सीट सबसे अधिक जनसंख्या वाली सीट है.
प्रयागराज की शहर उत्तरी सीट (Prayagraj North Assembly Constituency) आजादी के बाद से ही कांग्रेस के कब्जे में रही. हालांकि मौजूदा समय में बीजेपी से हर्षवर्धन वाजपेयी यहां से विधायक हैं. इस सीट से राजेन्द्र कुमारी वाजपेयी लगातार चार बार विधायक बनीं. इसके बाद उनके बेटे अशोक कुमार वाजपेयी को भी कांग्रेस के ही टिकट पर यहां से जीत मिल चुकी है. वहीं, अब इस सीट पर इस परिवार की तीसरी पीढ़ी के रूप में राजेन्द्र कुमारी वाजपेयी के पोते हर्ष वर्धन वाजपेयी भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर विधायक बने हैं.
जिले की सबसे महत्वपूर्ण सीट शहर उत्तरी को इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि प्रयागराज के सबसे महत्वपूर्ण इलाके जैसे इलाहाबाद हाईकोर्ट, पूरब का ऑक्सफोर्ड इलाबाबाद विश्वविद्यालय, मोती लाल नेहरू इंजीनियरिंग कॉलेज, नेहरू गांधी परिवार का पैतृक आवास, शहीद चंद्रशेखर आजाद पार्क, यूपी बोर्ड मुख्यालय समेत तमाम सरकारी दफ्तरों का मुख्यालय भी इसी विधानसभा के अंतर्गत आता है. ऐसे में यहां की महत्ता और भी बढ़ जाती है. इसके साथ ही यहां सबसे ज्यादा साक्षर मतदाता हैं.
शहर उत्तरी विधानसभा क्षेत्र में जिले में सबसे ज्यादा पढ़े लिखे मतदाता रहते हैं. यही वजह है की इस विधानसभा क्षेत्र में जाति धर्म, बाहुबल आधार बनाकर कोई प्रत्याशी नहीं जीता है. वहीं दूसरी तरफ इस विधानसभा क्षेत्र में सबसे कम मतदान होता है. पिछले चुनाव में इस सीट पर 30 फीसदी से भी कम मतदान हुआ था.
इस सीट पर 1957 में कैलाश नारायण गुप्ता कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे. इसके बाद 1962-1974 तक चार बार राजेन्द्र कुमारी वाजपेयी कांग्रेस के ही टिकट पर विधायक रहीं. वहीं 1977 में हुए चुनाव में बाबा राम आधार यादव जेएनपी उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते थे. इसके बाद 1980 में चार बार की विधायक रही राजेन्द्र कुमारी बाजपेयी के बेटे अशोक बाजपेयी को जीत मिली. 1985 में दलित मजदूर पार्टी और 1989 में जनता दल के टिकट से चुनाव लड़े अनुग्रह नारायण सिंह ने जीत हासिल करते हुए कांग्रेस की सत्ता को हिला कर रख दिया.
1991 में पहली बार डॉक्टर नरेंद्र कुमार सिंह गौर ने यहां भाजपा का खाता खोला और 1991, 1993, 1996 और 2002 तक यानि लगातार चार बार जीत हासिल कर इस सीट पर अपनी धमक जमाई. इसके बाद 2007 के चुनाव में एक बार फिर अनुग्रह नारायण सिंह की एंट्री हुई. हालांकि इस बार उन्होंने जनता दल छोड़ कांग्रेस का दामन थामा और जीता भी. अनुग्रह नारायण यहां कांग्रेस की टिकट से लगातार दो बार 2007-2012 से विधायक रहे.
2017 के चुनाव में इस सीट से चार बार विजय हासिल करने वाली कांग्रेस नेता राजेन्द्र कुमारी वाजपेयी के पोते हर्ष वर्धन वाजपेयी भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़कर जीते हैं. ऐसे में अब हर्षवर्धन वाजपेयी के सामने दोहरी चुनौती है एक तरफ उन्हें वाजपेयी परिवार की साख भी बनाए रखना है और दूसरी तरफ विधायक की कुर्सी पर भी कब्जा जमाए रखाना है. ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है.
वहीं, शहर उत्तरी विधानसभा सीट पर चार बार जीत का परचम लहरा चुके अनुग्रह नारायण सिंह इस बार पांचवीं बार चुनावी मैदान में ताल ठोकेंगे और कांग्रेस के टिकट पर तीसरी बार चुनाव लड़ेंगे. उनका दावा है कि जनता केंद्र और प्रदेश सरकार की बढ़ाई हुई मंहगाई बेरोजगारी और कोरोना काल की अव्यवस्था से टूट चुकी है. शहर उत्तरी की पढ़ी लिखी जनता भी इस सरकार से पूरी तरह से त्रस्त है. इस बार उन्हें बदलाव करना है और जनता उन्हें एक बार जिताकर विधानसभा भेजेगी.
सबसे ज्यादा मतदाता हैं इस सीट पर
शहर उत्तरी विधानसभा में कुल मतदाता 4 लाख 17 हजार 788 मतदाता हैं. जिसमें 2 लाख 31 हजार 410 पुरुष और 1 लाख 86 हजार 307 महिला मतदाताओं के साथ ही 71 ट्रांसजेंडर मतदाता भी हैं. एक अनुमान के मुताबिक इस सीट पर
21 % ब्राह्मण
17% कायस्थ
14% दलित
9% पटेल
7% क्षत्रिय
8% वैश्य
9% मुस्लिम
7 % यादव
8% अन्य जातियों के मतदाता हैं.
सपा बसपा का नहीं खुला है खाता
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी इस सीट पर सभी दांव आजमाने के बावजूद खाता तक नहीं खोल सकी है. 2022 के चुनाव में इस सीट को सपा बसपा दोनों ही पार्टी के नेता जीतने का दावा कर रहे हैं. सपा के इस सीट से टिकट के दावेदार भूपेंद्र श्रीवास्तव पीयूष का कहना है कि शहर उत्तरी की जनता ने कांग्रेस और भाजपा के विधायकों को कई बार मौका देकर देखा है, लेकिन उसके बावजूद लोगों की मूलभूत सुविधाओं की समस्या बनी हुई है. कोरोना काल मे इस शहरी क्षेत्र के लोगों को जिस तरह से अस्पतालों और बेड की कमी की वजह से अपनों को खोना पड़ा है. जनता ने इन सबका सिखाने के लिए भाजपा सरकार को सत्ता से दूर करने का मन बना लिया है.
इस विधानसभा का पूरा इलाका शहरी होने के बावजूद यहां पर गंगा नदी में आयी बाढ़ एक विकराल समस्या के रूप में हर साल सामने आती है. गंगा के किनारे वाले कई मोहल्ले हर साल बाढ़ में डूबते हैं और इस समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं हो सका है. बहरहाल इस समस्या के पीछे एक वजह यह भी है कि लोग गंगा के नजदीक तक घर बनाते जा रहे हैं. दूसरी तरफ युनिवर्सिटी समेत तमाम स्कूल कॉलेज में शिक्षकों की भी कमी है. इसके अलावा पिछले पांच सालों के दौरान पुलिस मुख्यालय समेत कई सरकारी दफ्तरों को लखनऊ ले जाने से भी सरकारी कर्मचारियों में नाराजगी है. इसके साथ ही इस विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा छात्र रहते हैं. जिस वजह से बेरोजगारी भी चुनाव में महत्वपूर्म मुद्दा रहेगा.
प्रयागराज की शहर उत्तरी सीट से 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर विधायक बने हर्षवर्धन वाजपेयी ने इंग्लैंड से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की है. इसके बाद उन्होंने दिल्ली से परास्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने प्रयागराज पहुंचकर राजनीति में उतरने का फैसला लिया. इनकी युवाओं में काफी लोकप्रिय नेता की छवि रही है.
हर्षवर्धन वाजपेयी ने बसपा का दामन थामकर अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी. 2012 के विधानसभा चुनाव में वो इसी सीट से बसपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े थे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. 2017 के चुनाव में उन्हें में 89191 वोट मिले थे जबकि दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के अनुग्रह नारायण सिंह को 54166 वोट ही मिले थे.