प्रयागराज: शक्ति के महापर्व नवरात्रि में देश में हर जगह मां के भक्त उनके दर्शन के लिए पूजा पंडालों में जाते हैं. वहीं संगम नगरी इलाहाबाद में मां भगवती खुद पैदल चलकर भक्तों के पास पहुंचती हैं. इसमें रामायण के एक खास प्रसंग का स्वांग होता है. जिसे 'काली स्वांग' कहते हैं. इसमें हाथ में मां काली के वेश में पात्र स्वयं सड़कों पर निकलता है. जिसके हांथ में भुजाली लहराती है. माता की यह यात्रा बड़े धूमधाम से हर वर्ष निकाली जाती है.
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रामायण के प्रसंग का किया जाता मंचन
दारागंज में होने वाले इस 'काली स्वांग' का यह पूरा दृश्य रामायण के उस प्रसंग की से जुड़ा है. जिसमें शूर्पणखा के नाक-कान काटने के बाद खरदूषण अपनी सेना लेकर राम से युद्ध के लिए आ पहुंचते हैं. इसके बाद सीता माता खुद काली का वेश धारण कर राम के रथ के आगे-आगे चलती हैं और खरदूषण का वध करती हैं. इसी तरह हर वर्ष बड़े ही धूमधाम से दारागंज में काली स्वांग के रूप में काली मां अवतरण की यात्रा निकाली जाती है.
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सौ साल पुरानी है परंपरा
इलाहाबाद में 'काली स्वांग' की यह परंपरा सौ साल से ज्यादा पुरानी है. इस स्वांग की एक खास बात यह भी है कि जो व्यक्ति काली पात्र बनता है, उसके पास कुछ खास योग्यताएं होनी जरुरी होती है. पात्र का चयन छः महीने पहले किया जाता है. इसके बाद उसे स्वांग करने तक संयमित आचार और विचार के साथ जीना होता है.
इस दौरान उसे कई तरह की ट्रेनिंग से भी गुजरना होता है. कड़ी मेहनत के बाद जब काली पात्र काली का वेश धर सड़कों पर निकलता है तो खुद को मां काली की ही छाया समझ कर व्यवहार करते हुए लोगों को आशीर्वाद देते हुए निकलती है.