ETV Bharat / state

प्रयागराज में 'काली स्वांग' का हुआ आयोजन, मां ने दिया भक्तों को आशीर्वाद

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में नवरात्रि के अवसर पर 'काली स्वांग' का आयोजन किया गया. इस दौरान भक्तों ने मां काली का आशीर्वाद लिया.

प्रयागराज में 'काली स्वांग' का हुआ आयोजन.
author img

By

Published : Oct 2, 2019, 9:54 AM IST

प्रयागराज: शक्ति के महापर्व नवरात्रि में देश में हर जगह मां के भक्त उनके दर्शन के लिए पूजा पंडालों में जाते हैं. वहीं संगम नगरी इलाहाबाद में मां भगवती खुद पैदल चलकर भक्तों के पास पहुंचती हैं. इसमें रामायण के एक खास प्रसंग का स्वांग होता है. जिसे 'काली स्वांग' कहते हैं. इसमें हाथ में मां काली के वेश में पात्र स्वयं सड़कों पर निकलता है. जिसके हांथ में भुजाली लहराती है. माता की यह यात्रा बड़े धूमधाम से हर वर्ष निकाली जाती है.

प्रयागराज में 'काली स्वांग' का हुआ आयोजन.

इसे भी पढ़ें- नवरात्रि के मौके पर सजती है मां वैष्णो देवी की गुफा, श्रद्धालुओं की लगती हैं कतारें

रामायण के प्रसंग का किया जाता मंचन
दारागंज में होने वाले इस 'काली स्वांग' का यह पूरा दृश्य रामायण के उस प्रसंग की से जुड़ा है. जिसमें शूर्पणखा के नाक-कान काटने के बाद खरदूषण अपनी सेना लेकर राम से युद्ध के लिए आ पहुंचते हैं. इसके बाद सीता माता खुद काली का वेश धारण कर राम के रथ के आगे-आगे चलती हैं और खरदूषण का वध करती हैं. इसी तरह हर वर्ष बड़े ही धूमधाम से दारागंज में काली स्वांग के रूप में काली मां अवतरण की यात्रा निकाली जाती है.

इसे भी पढ़ें- भारत विकास परिषद की महिलाओं ने किया डांडिया डांस, कहा- साल भर करती हैं नवरात्रि का इंतजार

सौ साल पुरानी है परंपरा
इलाहाबाद में 'काली स्वांग' की यह परंपरा सौ साल से ज्यादा पुरानी है. इस स्वांग की एक खास बात यह भी है कि जो व्यक्ति काली पात्र बनता है, उसके पास कुछ खास योग्यताएं होनी जरुरी होती है. पात्र का चयन छः महीने पहले किया जाता है. इसके बाद उसे स्वांग करने तक संयमित आचार और विचार के साथ जीना होता है.

इस दौरान उसे कई तरह की ट्रेनिंग से भी गुजरना होता है. कड़ी मेहनत के बाद जब काली पात्र काली का वेश धर सड़कों पर निकलता है तो खुद को मां काली की ही छाया समझ कर व्यवहार करते हुए लोगों को आशीर्वाद देते हुए निकलती है.

प्रयागराज: शक्ति के महापर्व नवरात्रि में देश में हर जगह मां के भक्त उनके दर्शन के लिए पूजा पंडालों में जाते हैं. वहीं संगम नगरी इलाहाबाद में मां भगवती खुद पैदल चलकर भक्तों के पास पहुंचती हैं. इसमें रामायण के एक खास प्रसंग का स्वांग होता है. जिसे 'काली स्वांग' कहते हैं. इसमें हाथ में मां काली के वेश में पात्र स्वयं सड़कों पर निकलता है. जिसके हांथ में भुजाली लहराती है. माता की यह यात्रा बड़े धूमधाम से हर वर्ष निकाली जाती है.

प्रयागराज में 'काली स्वांग' का हुआ आयोजन.

इसे भी पढ़ें- नवरात्रि के मौके पर सजती है मां वैष्णो देवी की गुफा, श्रद्धालुओं की लगती हैं कतारें

रामायण के प्रसंग का किया जाता मंचन
दारागंज में होने वाले इस 'काली स्वांग' का यह पूरा दृश्य रामायण के उस प्रसंग की से जुड़ा है. जिसमें शूर्पणखा के नाक-कान काटने के बाद खरदूषण अपनी सेना लेकर राम से युद्ध के लिए आ पहुंचते हैं. इसके बाद सीता माता खुद काली का वेश धारण कर राम के रथ के आगे-आगे चलती हैं और खरदूषण का वध करती हैं. इसी तरह हर वर्ष बड़े ही धूमधाम से दारागंज में काली स्वांग के रूप में काली मां अवतरण की यात्रा निकाली जाती है.

इसे भी पढ़ें- भारत विकास परिषद की महिलाओं ने किया डांडिया डांस, कहा- साल भर करती हैं नवरात्रि का इंतजार

सौ साल पुरानी है परंपरा
इलाहाबाद में 'काली स्वांग' की यह परंपरा सौ साल से ज्यादा पुरानी है. इस स्वांग की एक खास बात यह भी है कि जो व्यक्ति काली पात्र बनता है, उसके पास कुछ खास योग्यताएं होनी जरुरी होती है. पात्र का चयन छः महीने पहले किया जाता है. इसके बाद उसे स्वांग करने तक संयमित आचार और विचार के साथ जीना होता है.

इस दौरान उसे कई तरह की ट्रेनिंग से भी गुजरना होता है. कड़ी मेहनत के बाद जब काली पात्र काली का वेश धर सड़कों पर निकलता है तो खुद को मां काली की ही छाया समझ कर व्यवहार करते हुए लोगों को आशीर्वाद देते हुए निकलती है.

Intro:प्रयागराज: दारागंज में धूमधाम से मनाया गया काली सॉवांग पूजा, घर-घर जाती हैं देवी माँ

7000668169

प्रयागराज: शक्ति के महापर्व नवरात्री में देश में हर जगह मां के भक्त उनके दर्शन के लिए पूजा पंडालों में जाते हैं. वहीं संगम नगरी इलाहाबाद में मां भगवती खुद पैदल चलकर भक्तों के पास पहुंचती हैं. इसमें रामायण के एक खास प्रसंग का स्वांग होता है जिसे 'काली स्वांग' कहते हैं. इसमें हाथ में मां काली के वेश में पात्र स्वयं सड़कों पर निकलता है जिसके हांथ में भुजाली लहराती है. इसके बाद सभी दर्शकों को आशीर्वाद देते हुए माता का यह यात्रा बड़े जी धूमधाम से हर वर्ष निकाला जाता है.




Body:
रामायण के प्रसंग का किया जाता मंचन

दारागंज में होने वाले इस काली स्वांग का यह पूरा दृश्य रामायण के उस प्रसंग की से जुड़ा जिसमें सुपनखा के नाक-कान काटने के बाद खरदूषण अपनी सेना लेकर राम से युद्ध के लिए आ पहुंचते हैं. इसके बाद सीता माता खुद काली का वेश धारण कर राम के रथ के आगे-आगे चलती हैं और खरदूषण का वध करती हैं. इसी तरह हर वर्ष बड़े ही धूमधाम से दारागंज में काली स्वांग के रूप में काली मां अवतरण करके यह यात्रा निकाली जाती है.




Conclusion:सौ साल पुरानी है परंपरा

इलाहाबाद में काली स्वांग की यह परंपरा सौ साल से ज्यादा पुरानी है. इस स्वांग की एक ख़ास बात यह भी है कि जो व्यक्ति काली पात्र बनता है उसके पास कुछ ख़ास योग्यताएं होनी जरुरी होती है. पात्र का चयन छः महीने पहले किया जाता है जिसके बाद उसे स्वांग करने तक संयमित आचार और विचार के साथ जीना होता है.

इस दौरान उसे कई तरह की ट्रेनिंग से भी गुजरना होता है. कड़ी मेहनत के बाद जब काली पात्र काली का वेश धर सड़कों पर निकलता है तो खुद को मां काली की ही छाया समझ कर व्यवहार करते हुए लोगों को आशीर्वाद देते हुए निकलती है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.