ETV Bharat / state

प्रयागराज के इस मंदिर में उमड़ता है श्रद्धा का सैलाब, दर्शन के बाद ही बच्चों का होता है नामकरण - पीठाधीश्वर सुशील पाठक

जनपद में एक ऐसा सिद्धपीठ है जिसका जिक्र पद्म पुराण, मत्स्य पुराण और तंत्र चूड़ामणि ग्रंथों में किया गया है. यहा दर्शन मात्र से सभी मुरादें पूरी होती हैं. यही नहीं आसपास के लोग इस मंदिर में दर्शन के बाद ही बच्चों का नामकरण करते हैं.

http://10.10.50.23/etvnewsroom/#/app/edit
http://10.10.50.23/etvnewsroom/#/app/edit
author img

By

Published : Oct 12, 2021, 5:12 PM IST

प्रयागराज : धर्म और आस्था की नगरी में वैसे तो हजारों प्राचीन मठ और मंदिर स्थापित हैं. इनमें सिद्ध पीठों की बात करें तो 51 माता के सिद्धपीठों में एक मां कल्याणी मंदिर का सिद्धपीठ जनपद में ही है. पुराणों के अनुसार प्रयाग में भगवती ललिता का पवित्र प्रांगण उत्तर पश्चिम के कोने में यमुना तट के पास बताया गया है. यहां भैरव भी विराजमान हैं. लोगों की ऐसी मान्यता है कि यहां जो भक्त संतान की इच्छा लेकर माता के दर्शन करने आता है. उसकी संतान होने पर उसका नामकरण यहीं आकर करता है.

प्रयागराज के इस मंदिर में उमड़ता है श्रद्धा का सैलाब, दर्शन के बाद ही बच्चों का होता है नामकरण
भारत की गौरवमई आध्यात्मिक परंपरा में शक्ति उपासना का अपना अलग स्थान रहा है. यहां अनगिनत ऋषि, मुनि, साधु-संत और सन्यासियों से लेकर अवतार रूप में अवतरित होने वाली महान देवी विभूतियों तक शक्ति की उपासना का मुख्य स्थान रहा है.

कल्याणी देवी का मंदिर प्रयागराज का अति प्राचीन शक्तिपीठ है. पुराणों के अनुसार त्रेतायुग में मां के इस पीठ व 32 अंगुल ऊंची प्रतिमा की स्थापना महर्षि याज्ञवल्क्य ने की. वर्तमान में माता की जो प्रतिमा है, वह भी उसी प्रमाण के अनुसार 32 अंगुल ऊंची है. इलाहाबाद पुरातत्व विभाग के अनुसार मां कल्याणी की प्रतिमा 15 सौ वर्ष पुरानी है.

यह भी पढ़ें : प्रयागराज के इस मंदिर में पालने की होती है पूजा, जानें क्या है महत्व

मंदिर के पीठाधीश्वर सुशील पाठक की मानें तो कल्याणी जी का स्थान पहले यमुना किनारे नीम के पेड़ के नीचे था. वहीं पूजा-अर्चना होती थी. लोग दूर-दराज से आकर वहां माता की पूजा-अर्चना करते थे. बाद में इसका स्वरूप बदला और एक भव्य मंदिर का निर्माण हुआ.

पुराणों में ऐसी मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति संतान की इच्छा लेकर यहां आता है तो उसके संतान प्राप्ति की इच्छा मां कल्याणी के दर्शन मात्र से पूरी हो जाती है. यही नहीं, लोग अपने बच्चों के नामकरण भी मंदिर में दर्शन करने के बाद ही करते हैं ताकि माता रानी का आशीर्वाद मिल सके.

यहां आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि बिना इनके यहां आए घर का कोई भी शुभ कार्य सिद्ध नहीं होता. नवरात्र में इसका विशेष फल मिलता है. इसलिए 9 दिन के नवरात्रि में यहां दर्शन करने मात्र से ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जातीं हैं.

शक्तिपीठ पुराण, पद्म पुराण, तंत्र चूड़ामणि आदि ग्रंथों में इस पीठ का उल्लेख मिलता है. यह मां ललिता का स्वरूप है जो मां कल्याणी के नाम से विख्यात हैं. बताते हैं कि जहां-जहां माता सती के अंग गिरे, वहां-वहां एक पिंड बन गया. मां चारभुजा धारण किए पिंड पर आसीन हैं. उनके ऊपर आभा चक्र बना है. यहां नवरात्रि के दिनों में अलग-अलग रूपों का शृंगार होता है. शतचंडी यज्ञ लगातार होता रहता है.

प्रयागराज : धर्म और आस्था की नगरी में वैसे तो हजारों प्राचीन मठ और मंदिर स्थापित हैं. इनमें सिद्ध पीठों की बात करें तो 51 माता के सिद्धपीठों में एक मां कल्याणी मंदिर का सिद्धपीठ जनपद में ही है. पुराणों के अनुसार प्रयाग में भगवती ललिता का पवित्र प्रांगण उत्तर पश्चिम के कोने में यमुना तट के पास बताया गया है. यहां भैरव भी विराजमान हैं. लोगों की ऐसी मान्यता है कि यहां जो भक्त संतान की इच्छा लेकर माता के दर्शन करने आता है. उसकी संतान होने पर उसका नामकरण यहीं आकर करता है.

प्रयागराज के इस मंदिर में उमड़ता है श्रद्धा का सैलाब, दर्शन के बाद ही बच्चों का होता है नामकरण
भारत की गौरवमई आध्यात्मिक परंपरा में शक्ति उपासना का अपना अलग स्थान रहा है. यहां अनगिनत ऋषि, मुनि, साधु-संत और सन्यासियों से लेकर अवतार रूप में अवतरित होने वाली महान देवी विभूतियों तक शक्ति की उपासना का मुख्य स्थान रहा है.

कल्याणी देवी का मंदिर प्रयागराज का अति प्राचीन शक्तिपीठ है. पुराणों के अनुसार त्रेतायुग में मां के इस पीठ व 32 अंगुल ऊंची प्रतिमा की स्थापना महर्षि याज्ञवल्क्य ने की. वर्तमान में माता की जो प्रतिमा है, वह भी उसी प्रमाण के अनुसार 32 अंगुल ऊंची है. इलाहाबाद पुरातत्व विभाग के अनुसार मां कल्याणी की प्रतिमा 15 सौ वर्ष पुरानी है.

यह भी पढ़ें : प्रयागराज के इस मंदिर में पालने की होती है पूजा, जानें क्या है महत्व

मंदिर के पीठाधीश्वर सुशील पाठक की मानें तो कल्याणी जी का स्थान पहले यमुना किनारे नीम के पेड़ के नीचे था. वहीं पूजा-अर्चना होती थी. लोग दूर-दराज से आकर वहां माता की पूजा-अर्चना करते थे. बाद में इसका स्वरूप बदला और एक भव्य मंदिर का निर्माण हुआ.

पुराणों में ऐसी मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति संतान की इच्छा लेकर यहां आता है तो उसके संतान प्राप्ति की इच्छा मां कल्याणी के दर्शन मात्र से पूरी हो जाती है. यही नहीं, लोग अपने बच्चों के नामकरण भी मंदिर में दर्शन करने के बाद ही करते हैं ताकि माता रानी का आशीर्वाद मिल सके.

यहां आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि बिना इनके यहां आए घर का कोई भी शुभ कार्य सिद्ध नहीं होता. नवरात्र में इसका विशेष फल मिलता है. इसलिए 9 दिन के नवरात्रि में यहां दर्शन करने मात्र से ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जातीं हैं.

शक्तिपीठ पुराण, पद्म पुराण, तंत्र चूड़ामणि आदि ग्रंथों में इस पीठ का उल्लेख मिलता है. यह मां ललिता का स्वरूप है जो मां कल्याणी के नाम से विख्यात हैं. बताते हैं कि जहां-जहां माता सती के अंग गिरे, वहां-वहां एक पिंड बन गया. मां चारभुजा धारण किए पिंड पर आसीन हैं. उनके ऊपर आभा चक्र बना है. यहां नवरात्रि के दिनों में अलग-अलग रूपों का शृंगार होता है. शतचंडी यज्ञ लगातार होता रहता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.