प्रयागराज : देश में सनातन धर्म की रक्षा के लिए अखाड़ों की स्थापना की गई. सबसे पहले आवाहन अखाड़े की स्थापना की गई, जिसके बाद अखाड़ों की संख्या बढ़ते हुए 13 तक पहुंच गई है. इन सभी अखाड़ों के गठन का मकसद सिर्फ एक है कि सनातन धर्म की रक्षा करने के साथ ही उसका प्रचार प्रसार किया जाए. भारतीय संस्कृति और परंपराओं को ध्यान में रखते हुए बनाए गए अखाड़ों में आधुनिकता के इस दौर में खुद को सनातन धर्म से जोड़े रखने का प्रयास किया जाता है. 13 अखाड़ों में जो सात पुराने अखाड़े हैं, उनमें से एक है पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी.
कब बना पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी
726 ईस्वी में गुजरात के मांडवी जिले में पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी का गठन हुआ था. आदि गुरु शंकराचार्य के निर्देशानुसार सनातन धर्म की रक्षा के उद्देश्य के साथ अखाड़े की स्थापना की गई थी. जिस वक्त निरंजनी अखाड़े की स्थापना हुई, उस वक्त सनातन धर्म पर कई तरह के हमले हो रहे थे. दूसरे धर्म के लोग अपने धर्म के प्रचार के साथ सनातन धर्म पर प्रहार कर रहे थे. इसलिए सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी का गठन किया गया.
अखाड़े के गठन का उद्देश्य
पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के गठन का उद्देश्य सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति की रक्षा और उसके प्रचार प्रसार के उद्देश्य से किया गया था. आज भी पंचायती अखाड़ा निरंजनी सनातन धर्म की रक्षा करने के साथ ही उसके प्रचार प्रसार में निरंतर लगा हुआ है.
दुनिया की चकाचौंध से रहते हैं दूर
पंचायती अखाड़ा निरंजनी के कोठारी कुलदीप गिरी के मुताबिक, बदलते वक्त के साथ अखाड़ों में भी आधुनिकता का असर देखने को मिलता है, लेकिन पंचायती अखाड़ा निरंजनी के साधु-संत आज भी दुनिया की चकाचौंध से दूर रहने का हर संभव प्रयास करते हैं. यही वजह है कि निरंजनी अखाड़े का पक्का आश्रम होने के बावजूद उसमें साधु-संतों के रहने के लिए कच्ची कुटिया भी बनाई जाती है, जिसकी छत खपरैल से बनी होती हैं तो वहां की दीवारों को मिट्टी से बनाया जाता है. इन मिट्टी की दीवारों पर लगातार गोबर और मिट्टी का लेप भी लगाया जाता है, जिससे कि कच्चे कमरे के अंदर प्राकृतिक वातावरण और शुद्धता मिलती रहे.
चूल्हे पर ही बनता है भोजन
इस आश्रम में आने वाले भक्तों को तो पक्के कमरों में रहने की सुविधा मिलती है, लेकिन अखाड़े के बहुत से संत ऐसे हैं, जो आज भी प्राकृतिक तरीके से बनी इन कच्ची कुटिया में ही रहना पसंद करते हैं. इसके अलावा अखाड़े में संतों का भोजन चूल्हे पर ही बनाने की परंपरा आज भी चली आ रही है. निरंजनी अखाड़े के कोठारी का कहना है कि जो अति आवश्यक जरूरी आधुनिक वस्तुएं हैं, उनका तो इस्तेमाल अखाड़े में किया जा रहा है, लेकिन बिना जरूरत की आधुनिक सुविधाओं से दूर रहने का भी हर संभव प्रयास किया जाता है.
कैसे काम करता है अखाड़ा
अखाड़े का गठन सनातन धर्म की रक्षा करने के उद्देश्य के साथ किया गया था, जिसे आज भी वह पूरा कर रहे हैं. सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए आज अखाड़ों की तरफ से वेद विद्यालय के साथ ही स्कूल-कॉलेज बनवाए गए हैं. यही नहीं, अखाड़े से जुड़े संत-महात्मा और महामंडलेश्वर सनातन धर्म का प्रचार प्रसार भी लगातार करते हैं, जिसके लिए समय-समय पर वह देश के साथ ही विदेशों में जाकर भी सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करते हैं. वे विदेश में रहने वाले लोगों को भारतीय संस्कृति के बारे में जानकारी देते हैं. साथ ही उन्हें भी सनातन धर्म से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं.
अखाड़ों में कैसे होता है पद का बंटवारा
पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में पंच परमेश्वर होते हैं. इसके अलावा आठ श्री महंत और 8 उप श्री महंत भी होते हैं. इसके अलावा अखाड़े में 4 सचिव होते हैं, जो सारे निर्णय लेते हैं. इस अखाड़े में सबसे महत्वपूर्ण पद पंच परमेश्वर का ही होता है, जिनकी मंजूरी से सभी तरह के निर्णय लिए जाते हैं. 6 साल में लगने वाले कुंभ और अर्ध कुंभ मेले में पदों को योग्यता के आधार पर चुनाव होता है, जिसके बाद चयनित संतों को पदों की जिम्मेदारी सौंपी जाती है.
अखाड़े में शामिल होने के क्या हैं नियम
पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में शामिल होने के नियम प्राचीन समय में काफी सख्त थे, लेकिन बदलते वक्त के साथ सख्त नियमों में कुछ राहत दी गई है, लेकिन आज भी इस अखाड़े में शामिल होने से पहले कम से कम 5 सालों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना बेहद जरूरी है. 5 साल के ब्रह्मचर्य पालन की इस अवधि को पूरा करने के बाद महापुरुष बनाया जाता है. महापुरुष का कार्य होता है कि वह अपने गुरु की पूरी तरह से सेवा करे. इस दौरान महापुरुष गुरु के बर्तन और कपड़े साफ करता है. इसके अलावा भोजन बनाने की जिम्मेदारी भी महापुरुष की होती है. गुरु सेवा की इस कठिन तपस्या में जो महापुरुष सफलता पूर्वक खरा उतरता है, उसे गुरु की रजामंदी से नागा की दीक्षा दी जाती है. नागा दीक्षा लेने के बाद कार्यकुशलता और योग्यता के आधार पर अखाड़े में आगे के पद और जिम्मेदारियां दिए जाने की परंपरा है.