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इलाहाबाद संग्रहालय में 'हिंदी साहित्य का संगम'

देश के चार राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रयागराज में स्थित इलाहाबाद संग्रहालय में ही हिंदी साहित्य की वीथिका है. हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकारों की रचनाएं, उनके कपड़े से लेकर डिग्रियां भी इस संग्रहालय में लोगों को लिए रखी गई हैं. ये सभी सामग्रियां साहित्यकारों ने स्वयं दान की थी.

allahabad museum
इलाहाबाद संग्राहलय
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Published : Mar 4, 2021, 5:13 PM IST

Updated : Mar 4, 2021, 5:26 PM IST

प्रयागराज: धर्म और आस्था की डुबकी के साथ हिंदी साहित्य के संगम में भी डुबकी लगाना है तो इलाहाबाद संग्रहालय में आना पड़ेगा. देश में जो चार राष्ट्रीय संग्रहालय हैं, उसमें से इलाहाबाद संग्रहालय में ही हिंदी साहित्य की वीथिका (Gallery) है. छायावाद से जुड़े तीन बड़े स्तंभ इस साहित्य वीथिका (Gallery) में अपनी महत्वपूर्ण सामग्रियों को दान किया था. सुमित्रानंदन पंत ने अपनी सारी सामग्री डोनेट करके इस वीथिका की शुरुआत की थी. इसलिए इसका नाम सुमित्रानंदन पंत वीथिका (Sumitranandan Pant Gallery) रखा गया था.

इलाहाबाद संग्रहालय.

1978 में गणेश दत्त वाजपेई ने किया था उद्घाटन
स्वायत्त शासन मंत्री गणेश दत्त वाजपेई ने एकमात्र हिंदी साहित्य वीथिका का उद्घाटन 8 जुलाई 1978 में किया और सुमित्रानंदन पंत ने अपनी सारी सामग्री देकर इस वीथिका की शुरुआत कराई. नरेश मेहता, लेखक रामकुमार वर्मा की सामग्री भी इस वीथिका में देखी जा सकती है. इस वीथिका में मुंशी प्रेमचंद की कुछ महत्वपूर्ण चीजों के साथ ही प्रयागराज से जुड़े कुछ अन्य लेखकों और कवियों की सामग्री यहां पर रखी हुई है.

कबीर की आत्मकथा नामक पांडुलिपि भी सुरक्षित
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में विभागाध्यक्ष रह चुके डॉक्टर रामकुमार वर्मा का पद्म पुरस्कार भी यहां सुरक्षित रखा है. इसके अलावा उनकी रेशमी टाई यहां पर सुरक्षित है. कबीर की आत्मकथा नामक पुस्तक की पांडुलिपि भी यहां पर रखी हुई है.

नरेश मेहता की हाईस्कूल की डिग्री भी देखने को मिलेगी
लेखक नरेश मेहता की हाईस्कूल की डिग्री भी यहां सुरक्षित है. इसके साथ नरेश मेहता की एकांत नाम की रचना की पांडुलिपि भी यहां पर रखी गई है. इसके अलावा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की दो-तीन रचनाओं की पांडुलिपि भी यहां रचनाकारों और लेखकों कवियों और साहित्य में रुचि रखने वाले लोगों के लिए सुरक्षित रखी गई है.


सुमित्रानंद पंत का चश्मा और कलम भी सुरक्षित
छायावाद के कवि सुमित्रानंदन पंत ने यहां पर आने वाली पीढ़ियां कुछ सीख सकें इसलिए अपनी सामग्री दान कर दी थी. यहां पर उनके साहित्य वाचस्पति से जुड़ा हुआ उनका ताम्रपत्र सुरक्षित रखा गया है. इसके अलावा नका चश्मा और कलम भी रखा हुआ है, जिससे वह रचनाएं लिखते थे. सबसे प्रमुख उनका भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार कैबिनेट में सुरक्षित रखा गया है. यह भी आपको देखने को इस संग्रहालय में मिल जाएगा. इस संग्रह में उनका कोट सदरी कुर्ता भी सुरक्षित है.


बुद्धचरित कविता संग्रह भी मौजूद
प्रयागराज के नाम महादेवी वर्मा के बिना अधूरा है. महादेवी वर्मा मूल रूप से तो रहने वाले फर्रुखाबाद की थी लेकिन उनकी इलाहाबाद कर्मस्थली रही. उनके द्वारा लिखे गए कुछ पत्र भी यहां पर देखने के लिए रखा गया है. महादेवी वर्मा ने बुद्धचरित कविता संग्रह लिखा था, जिसकी ओरिजिनल पांडुलिपि यहां पर आकर्षण का केंद्र बनी हुई है.

मुंंशी प्रेमंचद की पर्सनल डायरी आकर्षण का केंद्र
इसी तरह हिंदी मुंशी प्रेमचंद की पर्सनल डायरी भी यहां पर है, जिसमें वह अपनी दिनचर्या लिखते थे. मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखे गए इंग्लिश में पत्र यहां रखा गया है, जिसमें आलियास प्रेमचंद (धनपत राय बीए ) लिखा हुआ है. साहित्यकारों का कहना है कि आने वाली पीढ़ी उनका इस वीथिका में आना जरूरी होगा. क्योंकि बिना इस वीथिका के दर्शन के उनके साहित्य में नाम कमाना थोड़ा कठिन होगा.

प्रयागराज: धर्म और आस्था की डुबकी के साथ हिंदी साहित्य के संगम में भी डुबकी लगाना है तो इलाहाबाद संग्रहालय में आना पड़ेगा. देश में जो चार राष्ट्रीय संग्रहालय हैं, उसमें से इलाहाबाद संग्रहालय में ही हिंदी साहित्य की वीथिका (Gallery) है. छायावाद से जुड़े तीन बड़े स्तंभ इस साहित्य वीथिका (Gallery) में अपनी महत्वपूर्ण सामग्रियों को दान किया था. सुमित्रानंदन पंत ने अपनी सारी सामग्री डोनेट करके इस वीथिका की शुरुआत की थी. इसलिए इसका नाम सुमित्रानंदन पंत वीथिका (Sumitranandan Pant Gallery) रखा गया था.

इलाहाबाद संग्रहालय.

1978 में गणेश दत्त वाजपेई ने किया था उद्घाटन
स्वायत्त शासन मंत्री गणेश दत्त वाजपेई ने एकमात्र हिंदी साहित्य वीथिका का उद्घाटन 8 जुलाई 1978 में किया और सुमित्रानंदन पंत ने अपनी सारी सामग्री देकर इस वीथिका की शुरुआत कराई. नरेश मेहता, लेखक रामकुमार वर्मा की सामग्री भी इस वीथिका में देखी जा सकती है. इस वीथिका में मुंशी प्रेमचंद की कुछ महत्वपूर्ण चीजों के साथ ही प्रयागराज से जुड़े कुछ अन्य लेखकों और कवियों की सामग्री यहां पर रखी हुई है.

कबीर की आत्मकथा नामक पांडुलिपि भी सुरक्षित
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में विभागाध्यक्ष रह चुके डॉक्टर रामकुमार वर्मा का पद्म पुरस्कार भी यहां सुरक्षित रखा है. इसके अलावा उनकी रेशमी टाई यहां पर सुरक्षित है. कबीर की आत्मकथा नामक पुस्तक की पांडुलिपि भी यहां पर रखी हुई है.

नरेश मेहता की हाईस्कूल की डिग्री भी देखने को मिलेगी
लेखक नरेश मेहता की हाईस्कूल की डिग्री भी यहां सुरक्षित है. इसके साथ नरेश मेहता की एकांत नाम की रचना की पांडुलिपि भी यहां पर रखी गई है. इसके अलावा सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की दो-तीन रचनाओं की पांडुलिपि भी यहां रचनाकारों और लेखकों कवियों और साहित्य में रुचि रखने वाले लोगों के लिए सुरक्षित रखी गई है.


सुमित्रानंद पंत का चश्मा और कलम भी सुरक्षित
छायावाद के कवि सुमित्रानंदन पंत ने यहां पर आने वाली पीढ़ियां कुछ सीख सकें इसलिए अपनी सामग्री दान कर दी थी. यहां पर उनके साहित्य वाचस्पति से जुड़ा हुआ उनका ताम्रपत्र सुरक्षित रखा गया है. इसके अलावा नका चश्मा और कलम भी रखा हुआ है, जिससे वह रचनाएं लिखते थे. सबसे प्रमुख उनका भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार कैबिनेट में सुरक्षित रखा गया है. यह भी आपको देखने को इस संग्रहालय में मिल जाएगा. इस संग्रह में उनका कोट सदरी कुर्ता भी सुरक्षित है.


बुद्धचरित कविता संग्रह भी मौजूद
प्रयागराज के नाम महादेवी वर्मा के बिना अधूरा है. महादेवी वर्मा मूल रूप से तो रहने वाले फर्रुखाबाद की थी लेकिन उनकी इलाहाबाद कर्मस्थली रही. उनके द्वारा लिखे गए कुछ पत्र भी यहां पर देखने के लिए रखा गया है. महादेवी वर्मा ने बुद्धचरित कविता संग्रह लिखा था, जिसकी ओरिजिनल पांडुलिपि यहां पर आकर्षण का केंद्र बनी हुई है.

मुंंशी प्रेमंचद की पर्सनल डायरी आकर्षण का केंद्र
इसी तरह हिंदी मुंशी प्रेमचंद की पर्सनल डायरी भी यहां पर है, जिसमें वह अपनी दिनचर्या लिखते थे. मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखे गए इंग्लिश में पत्र यहां रखा गया है, जिसमें आलियास प्रेमचंद (धनपत राय बीए ) लिखा हुआ है. साहित्यकारों का कहना है कि आने वाली पीढ़ी उनका इस वीथिका में आना जरूरी होगा. क्योंकि बिना इस वीथिका के दर्शन के उनके साहित्य में नाम कमाना थोड़ा कठिन होगा.

Last Updated : Mar 4, 2021, 5:26 PM IST
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