प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने फर्जी डिग्री के आधार पर प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त 2823 सहायक अध्यापकों के अंकपत्र, डिग्री, नियुक्ति रद्द करने और बर्खास्तगी के आदेश को सही माना है. साथ ही हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है. इन 2823 सहायक अध्यापकों ने सन् 2005 में बीआर आम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा से बीएड की डिग्री हासिल की थी.
इन सभी लोगों ने जांच के दौरान अपना पक्ष नहीं रखा था. इसके बाद बीएसए ने इन्हें इसी आधार पर बर्खास्त कर दिया था. हाईकोर्ट ने इन लोगों को कोई राहत नहीं दी है. इसके विपरीत अंक पत्र से छेड़छाड़ के आरोपी और फर्जी डिग्री के लिए जारी किए गए कारण बताओ नोटिस का जवाब देने वाले 812 सहायक अध्यापकों को थोडी राहत दी है.
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कोर्ट ने जांच के आदेश का माना सही
कोर्ट ने एकल पीठ के विश्वविद्यालय को दिए गए जांच के आदेश को सही माना है. साथ ही इस जांच को चार माह में पूरा करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि जांच पूरी होने तक इनकी बर्खास्तगी को स्थगित रखा जाए. इन्हें चार माह तक वेतन पाने और कार्य करने देने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने जांच की निगरानी कुलपति को सौंपते हुए कहा है कि जांच में देरी हुई तो उन्हें वेतन पाने का हक नही होगा. जांच की अवधि नहीं बढाई जाएगी. कोर्ट ने कहा है कि जांच के बाद जिनके विश्व विद्यालय की प्रवेश परीक्षा और मुख्य परीक्षा में बैठने की पुष्टि होगी, उनकी बर्खास्तगी वापस ले ली जाए. शेष की बर्खास्तगी चार माह बाद प्रभावी हो जाएगी.
सात अभ्यर्थियों का एक माह में सत्यापन करने का भी निर्देश
कोर्ट ने सात अभ्यर्थियों का एक माह में सत्यापन करने का भी निर्देश दिया है. कहा है कि यदि उनके दस्तावेज सही हों तो इनकी बर्खास्तगी रद्द की जाय. इन अभ्यर्थियों ने कोर्ट में दस्तावेज पेश किए थे. यह आदेश न्यायमूर्ति एमएन भंडारी तथा न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने दिया है. वे किरण लता सिंह सहित हजारों सहायक अध्यापकों की विशेष अपील को निस्तारित कर रहे थे.
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'शिक्षा एक पवित्र व्यवसाय'
न्यायमूर्ति शमशेरी ने वरिष्ठ न्यायमूर्ति भंडारी के फैसले से सहमति जताते हुए अलग से हिन्दी भाषा में फैसला दिया है. इसमें उन्होंने गुरु के महत्व को बताते हुए कहा कि शिक्षा एक पवित्र व्यवसाय है. यह जीविका का साधन मात्र नहीं है. राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. कोई छल से शिक्षक बनता है तो ऐसी नियुक्ति शुरू से ही शून्य होगी. कोर्ट ने कहा कि छल कपट से शिक्षक बनकर इन्होंने न केवल छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ किया है, अपितु शिक्षक के सम्मान को ठेस पहुंचाई है
ये है मामला
मालूम हो कि आगरा विश्वविद्यालय की 2005 की बीएड की फर्जी डिग्री के आधार पर हजारों लोगों ने सहायक अध्यापक की नियुक्ति प्राप्त कर ली थी. इस मामले में हाईकोर्ट ने जांच का आदेश देते हुए एसआईटी गठित की थी. एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में व्यापक धांधली का खुलासा किया था. साथ ही सभी को कारण बताओ नोटिस जारी किया था. इनमें से 814 लोगों ने जवाब दिया था और शेष आए ही नहीं थे. बीएसए ने फर्जी अंक पत्र और अंक पत्र से छेड़छाड़ की दो श्रेणियों वालों को बर्खास्त कर दिया था. हाईकोर्ट की एकल पीठ ने छेड़छाड़ करने के आरोपियों और जवाब देने वालों की जांच करने का निर्देश विश्वविद्यालय को दिया था. कहा था कि बर्खास्त अध्यापको से अंतरिम आदेश से लिए गए वेतन की बीएसए वसूली कर सकते हैं. खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश के इस अंश को रद्द कर दिया है. इसके साथ ही 812अध्यापकों की जांच पूरी करने के आदेश की समय सीमा निर्धारित कर दी है.