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दस्तावेज की टाइप कॉपी का दाखिला वकील के सत्यापन बगैर नहीं: हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट में अधिवक्ता या आवेदक से हस्ताक्षरित टाइप कॉपी पर मूल दस्तावेज की सत्यप्रति लिखना अनिवार्य कर दिया गया है. ऐसा आदेश एफआईआर की टाइपिंग में गलती को देखते हुए दिया गया है.

दस्तावेज की टाइप कॉपी का दाखिला वकील के सत्यापन बगैर नहीं
दस्तावेज की टाइप कॉपी का दाखिला वकील के सत्यापन बगैर नहीं
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Published : Aug 21, 2021, 1:25 AM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट में अधिवक्ता या आवेदक से हस्ताक्षरित टाइप कॉपी पर मूल दस्तावेज की सत्य प्रति लिखना अनिवार्य कर दिया गया है. ऐसा आदेश एफआईआर की टाइपिंग में गलती को देखते हुए दिया गया है. कोर्ट ने महानिबंधक को आदेश दिया है कि वह रिपोर्टिंग और दाखिला अनुभाग को इस आशय का निर्देश जारी करें.

किसी दस्तावेज की टाइप कॉपी के हर पृष्ठ पर अधिवक्ता को अपना पंजीकरण संख्या सहित हस्ताक्षर करना अनिवार्य कर दिया गया है. यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने डेरापुर, रमाबाई नगर के सर्वेश व दो अन्य की धारा 482के अंतर्गत दाखिल याचिका पर दिया है.

याचिका की सुनवाई के समय पता चला कि एफआईआर की टाइप कॉपी में की टाइपिंग गलतियां हैं. कोर्ट ने सही कॉपी दाखिल करने का याची अधिवक्ता को एक हफ्ते का समय दिया और ऐसी गलती न होने पाएं, इसके लिए अधिवक्ता की जवाबदेही तय करने का उपाय किया गया है.

इसे भी पढ़ें-दो बार विकलांगता की पुष्टि के बाद फिर से मेडिकल जांच पर रोक, राज्य सरकार से जवाब तलब

एक अधिवक्ता की छोटी सी लापरवाही ने पूरे वकील समुदाय को कटघरे में खड़ा कर दिया है. ऐसे ही एक मामले में वकील ने फर्जी वकालतनामा दाखिल कर बिना विरोध के जमानत पाने का जुगाड़ लगाया. जब पकड़ा गया तो गलती मानने के बजाय बेहयाई से कहा ऐसा चलन में हैं. सभी ऐसा करते हैं. ऐसी घटनाएं दिनों-दिन प्रक्रियात्मक शिकंजा कसने को मजबूर करती जा रही है.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट में अधिवक्ता या आवेदक से हस्ताक्षरित टाइप कॉपी पर मूल दस्तावेज की सत्य प्रति लिखना अनिवार्य कर दिया गया है. ऐसा आदेश एफआईआर की टाइपिंग में गलती को देखते हुए दिया गया है. कोर्ट ने महानिबंधक को आदेश दिया है कि वह रिपोर्टिंग और दाखिला अनुभाग को इस आशय का निर्देश जारी करें.

किसी दस्तावेज की टाइप कॉपी के हर पृष्ठ पर अधिवक्ता को अपना पंजीकरण संख्या सहित हस्ताक्षर करना अनिवार्य कर दिया गया है. यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने डेरापुर, रमाबाई नगर के सर्वेश व दो अन्य की धारा 482के अंतर्गत दाखिल याचिका पर दिया है.

याचिका की सुनवाई के समय पता चला कि एफआईआर की टाइप कॉपी में की टाइपिंग गलतियां हैं. कोर्ट ने सही कॉपी दाखिल करने का याची अधिवक्ता को एक हफ्ते का समय दिया और ऐसी गलती न होने पाएं, इसके लिए अधिवक्ता की जवाबदेही तय करने का उपाय किया गया है.

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एक अधिवक्ता की छोटी सी लापरवाही ने पूरे वकील समुदाय को कटघरे में खड़ा कर दिया है. ऐसे ही एक मामले में वकील ने फर्जी वकालतनामा दाखिल कर बिना विरोध के जमानत पाने का जुगाड़ लगाया. जब पकड़ा गया तो गलती मानने के बजाय बेहयाई से कहा ऐसा चलन में हैं. सभी ऐसा करते हैं. ऐसी घटनाएं दिनों-दिन प्रक्रियात्मक शिकंजा कसने को मजबूर करती जा रही है.

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