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मातृत्व महिला का मौलिक अधिकारः हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि विभिन्न संविधानिक अदालतों द्वारा तय किए गए कानून के तहत बच्चे को जन्म देना महिला का मौलिक अधिकार है. किसी भी महिला को उसके इस ‌अधिकार और मातृत्व सुविधा देने से वंचित नहीं किया जा सकता.

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Published : Dec 18, 2021, 9:59 AM IST

हाईकोर्ट
हाईकोर्ट

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि विभिन्न संविधानिक अदालतों द्वारा तय किए गए कानून के तहत बच्चे को जन्म देना महिला का मौलिक अधिकार है. किसी भी महिला को उसके इस ‌अधिकार और मातृत्व सुविधा देने से वंचित नहीं किया जा सकता.

कोर्ट ने एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय लखनऊ द्वारा अंडर ग्रेज्युएट छात्राओं को मातृत्व लाभ देने के लिए नियम बनाने का निर्देश दिया है. जिसमें छात्राओं के बच्चे को जन्म देने के पूर्व व जन्म देने के बाद सहयोग करने व अन्य मातृत्व लाभ शामिल हों, तथा छात्राओं को परीक्षा पास करने के लिए अतिरिक्त अवसर व समयावधि बढ़ाने के नियम हों.

कोर्ट ने विश्वविद्यालय को याची को चार माह में बीटेक परीक्षा में बैठाने का इंतजाम करने का निर्देश दिया है. याची गर्भवती थी, जिसके कारण वह परीक्षा में नहीं बैठ सकी. विश्वविद्यालय ने मातृत्व लाभ जैसे नियम न होने के आधार पर परीक्षा कराने से इंकार कर दिया.

एपीजे अबुल कलाम विश्वविद्यालय से संबंध कानपुर के कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉ‌लाजी की बीटेक छात्रा सौम्या तिवारी की याचिका पर न्यायमूर्ति अजय भनोट ने यह आदेश दिया है और याची को बीटेक के द्वितीय व तृतीय सेमेस्टर के दो प्रश्नपत्रों में सम्मलित होने के लिए अतिरिक्त अवसर देने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय याची को परीक्षा में शामिल होने के लिए अतिरिक्त अवसर दे. छात्रा को इस संबंध में विश्वविद्यालय को अपने सभी मेडिकल दस्तावेजों के साथ प्रत्यावेदन देने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि विश्वविद्यालय छात्राओं को मातृत्व लाभ देने से मना नहीं कर सकता है, ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15(3) और अनुच्छेद 21 का उल्घंन है.

नियम न होने के आधार पर मातृत्व लाभ देने से मना नहीं कर सकते. विश्वविद्यालय के अधिवक्ता ने कहा कि विश्वविद्यालय में ऐसा कोई नियम नहीं है जिसके आधार पर अंडर ग्रेज्युएट छात्रा को मातृत्व लाभ दिया जाए. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय छात्रा को इस आधार पर मातृत्व संबंधी लाभ देने से इंकार नहीं कर सकता है, कि उसने ऐसा कोई नियम, परिनियम नहीं बनाया है, ऐसा करना छात्रा के मौलिक अधिकार का हनन करना होगा. विश्वविद्यालय इस संबंध में नियम बनाने के लिए कानूनन बाध्य है.


यह भी पढ़ें- प्रयागराज के साथ ही लखनऊ को भी मेरठ के 122 किमी नजदीक लाएगा गंगा एक्सप्रेस वे

यूजीसी ने जारी की है गाइड लाइन

केन्द्र सरकार के अधिवक्ता पीएन राय ने कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार के निर्देश पर यूजीसी ने 14 दिसंबर 21 को सकुर्लर जारी कर देश के सभी विश्चविद्यालयों को छात्राओं को भी मातृत्व संबंधी लाभ दिए जाने को लेकर नियम बनाने के लिए कहा है, जबकि एआईसीटीई के अधिवक्ता का कहना था कि उनकी ओर से इस संबंध में नियम बनाने के लिए कोई रोक नहीं है. विश्वविद्यालयों के पास खुद के नियम व परिनियम बनाने की शक्ति है, जिसका प्रयोग कर वे नियम बना सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि एआईसीटीई सहित अन्य तमाम रेग्युलेटरी बॉडी पीजी छात्राओं को ही मातृत्व संबंधी लाभ देने के नियम बनाने तक सीमित हैं. अंडर ग्रेज्युएट छात्राओं के लिए नियम न बनाना अनुच्छेद 14 और 15(3) का उल्घंन है.

यह है मामला

दरअसल, याची सौम्या तिवारी ने कानपुर के कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉ‌लाजी कानपुर में वर्ष 2013-14 के सत्र में बीटेक इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन के कोर्स में दाखिला लिया. उसने सभी सेमेस्टर सफलता पूर्वक पास किए. तृतीय सेमेस्टर के इंजीनियनिरिंग मैथमैटिक्स के द्वितीय प्रश्नपत्र व ‌द्वितीय सेमेस्टर की परीक्षा में गर्भवती होने व बच्चे को जन्म देने के बाद की रिकवरी के कारण शामिल नहीं हो सकी. इससे उसका कोर्स पूरा नहीं हुआ. उसने विश्वविद्यालय से अतिरिक्त अवसर देने की मांग की जिसे नामंजूर कर दिया. जिस पर उसने याचिका द‌ाखिल कर मातृत्व कारणों से परीक्षा न दे पाने के लिए अतिरिक्त अवसर देने की मांग की थी.

कोर्ट ने तय किए तीन बिंदु

कोर्ट ने इस मामले में तीन बिंदुओं को तय किया.

  • पहला यह कि क्या एक महिला का बच्चे को जन्म देने का अधिकार मौलिक अधिकार है.
  • दूसरा यह कि क्या एक छात्रा को मातृत्व संबंधी लाभ देने से इस आधार पर इंकार किया जा सकता है कि इस संबंध में नियम नहीं है.
  • तीसरा यह कि याची किस प्रकार का मातृत्व लाभ पाने की अधिकारी है और इसे किस स्तर पर दिया जा सकता है.

कोर्ट ने कहा कि छात्रा को भी मातृत्व लाभ व सुविधाएं पाने का मूल अधिकार है. कोई भी संस्था इससे इंकार नहीं कर सकती. केंद्र व राज्य सरकार ने इसके पक्ष में बहस की.

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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि विभिन्न संविधानिक अदालतों द्वारा तय किए गए कानून के तहत बच्चे को जन्म देना महिला का मौलिक अधिकार है. किसी भी महिला को उसके इस ‌अधिकार और मातृत्व सुविधा देने से वंचित नहीं किया जा सकता.

कोर्ट ने एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय लखनऊ द्वारा अंडर ग्रेज्युएट छात्राओं को मातृत्व लाभ देने के लिए नियम बनाने का निर्देश दिया है. जिसमें छात्राओं के बच्चे को जन्म देने के पूर्व व जन्म देने के बाद सहयोग करने व अन्य मातृत्व लाभ शामिल हों, तथा छात्राओं को परीक्षा पास करने के लिए अतिरिक्त अवसर व समयावधि बढ़ाने के नियम हों.

कोर्ट ने विश्वविद्यालय को याची को चार माह में बीटेक परीक्षा में बैठाने का इंतजाम करने का निर्देश दिया है. याची गर्भवती थी, जिसके कारण वह परीक्षा में नहीं बैठ सकी. विश्वविद्यालय ने मातृत्व लाभ जैसे नियम न होने के आधार पर परीक्षा कराने से इंकार कर दिया.

एपीजे अबुल कलाम विश्वविद्यालय से संबंध कानपुर के कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉ‌लाजी की बीटेक छात्रा सौम्या तिवारी की याचिका पर न्यायमूर्ति अजय भनोट ने यह आदेश दिया है और याची को बीटेक के द्वितीय व तृतीय सेमेस्टर के दो प्रश्नपत्रों में सम्मलित होने के लिए अतिरिक्त अवसर देने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय याची को परीक्षा में शामिल होने के लिए अतिरिक्त अवसर दे. छात्रा को इस संबंध में विश्वविद्यालय को अपने सभी मेडिकल दस्तावेजों के साथ प्रत्यावेदन देने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि विश्वविद्यालय छात्राओं को मातृत्व लाभ देने से मना नहीं कर सकता है, ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15(3) और अनुच्छेद 21 का उल्घंन है.

नियम न होने के आधार पर मातृत्व लाभ देने से मना नहीं कर सकते. विश्वविद्यालय के अधिवक्ता ने कहा कि विश्वविद्यालय में ऐसा कोई नियम नहीं है जिसके आधार पर अंडर ग्रेज्युएट छात्रा को मातृत्व लाभ दिया जाए. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय छात्रा को इस आधार पर मातृत्व संबंधी लाभ देने से इंकार नहीं कर सकता है, कि उसने ऐसा कोई नियम, परिनियम नहीं बनाया है, ऐसा करना छात्रा के मौलिक अधिकार का हनन करना होगा. विश्वविद्यालय इस संबंध में नियम बनाने के लिए कानूनन बाध्य है.


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यूजीसी ने जारी की है गाइड लाइन

केन्द्र सरकार के अधिवक्ता पीएन राय ने कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार के निर्देश पर यूजीसी ने 14 दिसंबर 21 को सकुर्लर जारी कर देश के सभी विश्चविद्यालयों को छात्राओं को भी मातृत्व संबंधी लाभ दिए जाने को लेकर नियम बनाने के लिए कहा है, जबकि एआईसीटीई के अधिवक्ता का कहना था कि उनकी ओर से इस संबंध में नियम बनाने के लिए कोई रोक नहीं है. विश्वविद्यालयों के पास खुद के नियम व परिनियम बनाने की शक्ति है, जिसका प्रयोग कर वे नियम बना सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि एआईसीटीई सहित अन्य तमाम रेग्युलेटरी बॉडी पीजी छात्राओं को ही मातृत्व संबंधी लाभ देने के नियम बनाने तक सीमित हैं. अंडर ग्रेज्युएट छात्राओं के लिए नियम न बनाना अनुच्छेद 14 और 15(3) का उल्घंन है.

यह है मामला

दरअसल, याची सौम्या तिवारी ने कानपुर के कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉ‌लाजी कानपुर में वर्ष 2013-14 के सत्र में बीटेक इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन के कोर्स में दाखिला लिया. उसने सभी सेमेस्टर सफलता पूर्वक पास किए. तृतीय सेमेस्टर के इंजीनियनिरिंग मैथमैटिक्स के द्वितीय प्रश्नपत्र व ‌द्वितीय सेमेस्टर की परीक्षा में गर्भवती होने व बच्चे को जन्म देने के बाद की रिकवरी के कारण शामिल नहीं हो सकी. इससे उसका कोर्स पूरा नहीं हुआ. उसने विश्वविद्यालय से अतिरिक्त अवसर देने की मांग की जिसे नामंजूर कर दिया. जिस पर उसने याचिका द‌ाखिल कर मातृत्व कारणों से परीक्षा न दे पाने के लिए अतिरिक्त अवसर देने की मांग की थी.

कोर्ट ने तय किए तीन बिंदु

कोर्ट ने इस मामले में तीन बिंदुओं को तय किया.

  • पहला यह कि क्या एक महिला का बच्चे को जन्म देने का अधिकार मौलिक अधिकार है.
  • दूसरा यह कि क्या एक छात्रा को मातृत्व संबंधी लाभ देने से इस आधार पर इंकार किया जा सकता है कि इस संबंध में नियम नहीं है.
  • तीसरा यह कि याची किस प्रकार का मातृत्व लाभ पाने की अधिकारी है और इसे किस स्तर पर दिया जा सकता है.

कोर्ट ने कहा कि छात्रा को भी मातृत्व लाभ व सुविधाएं पाने का मूल अधिकार है. कोई भी संस्था इससे इंकार नहीं कर सकती. केंद्र व राज्य सरकार ने इसके पक्ष में बहस की.

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