प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अदालत का दायित्व है कि न्याय करे और वास्तविक अपराधी का विचारण कर उसे दंडित करें. कोर्ट ने कहा कि एफआईआर में नामित हो, भले ही पुलिस ने उसके खिलाफ चार्जशीट पेश न की हो, किंतु उसके खिलाफ अपराध में लिप्त होने के साक्ष्य है तो अदालत धारा 319 के तहत अर्जी पर उसे ट्रायल के लिए सम्मन जारी कर बुला सकती है.
कोर्ट ने कहा कि न्याय देने और कानून का शासन बरकरार रखने की जिम्मेदारी अदालत पर है. वास्तविक अपराधी बचने न पाए, इसलिए धारा 319 में जो अभियुक्त नहीं है, उसके खिलाफ सबूत होने पर ट्रायल के लिए बुला सकती है. कोर्ट ने वाराणसी के अपर सत्र न्यायाधीश द्वारा याची को धारा 319 में सम्मन करने के खिलाफ याचिका खारिज कर दी है.
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यह आदेश न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव (Justice Ashutosh Srivastava) ने जैलेंद्र राय और अन्य की याचिका पर दिया है. याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष तिवारी (
Senior Advocate Manish Tewari) और विपक्षी अधिवक्ता सत्येंद्र कुमार त्रिपाठी (Opposition Advocate Satyendra Kumar Tripathi) ने बहस की. याची का कहना था कि पुलिस ने उसके खिलाफ सबूत न मिलने पर चार्जशीट से बाहर कर दिया है, किंतु अदालत ने उसे सम्मन जारी किया है. जो कानून के खिलाफ है. रद्द किया जाए. क्योंकि विवाद शिकायत कर्ता और कृपा शंकर राय के बीच है. याची वाराणसी जिला अदालत में अधिवक्ता है. उसे फंसाया गया है.
विपक्षी का कहना था कि उसके घर पर 8 लोग आए और फायर किया, जिसमें शिकायत कर्ता का ड्राइवर घायल हो गया. शिकायतकर्ता और ड्राइवर ने पुलिस और अदालत में बयान देकर कहा कि फायर करने वालों में याची शामिल था. एफआईआर में नामित किया गया था, किन्तु पुलिस ने बयान के बावजूद चार्जशीट दाखिल नहीं की तो धारा 319 की अर्जी दी गई, जिसे स्वीकार करते हुए अदालत ने सम्मन जारी किया है. जो कानून के मुताबिक सही है. कोर्ट ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ अपराध में शामिल होने के साक्ष्य है और पुलिस ने चार्जशीट पेश नहीं किया है, तो अदालत को वास्तविक अपराधी को बुलाने का अधिकार है. अधीनस्थ अदालत ने सही आदेश दिया है. कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.
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