प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मुकदमे की कार्यवाही में देरी होने के आधार पर सीआरपीसी की धारा 311 के तहत दाखिल अर्जी को रद्द नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने निचली अदालत को गवाहों को बुलाकर परीक्षण का निर्देश दिया और कहा कि छह महीने की समयावधि में यह गवाही पूरी कर ली जाए. यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने मधुसूदन शुक्ला की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया.
कोर्ट ने कहा कि कोई भी न्यायालय इस संहिता के तहत किसी भी जांच, परीक्षण या अन्य कार्यवाही के किसी भी चरण में, किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुला सकता है या उपस्थित किसी भी व्यक्ति की जांच कर सकता है.
गोरखपुर निवासी मधुसूदन शुक्ला 1996 में हुई एक हत्या के मामले में आरोपी है. 1997 में आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया था. लगभग 25 वर्षों के बाद अप्रैल 2022 में उसने ट्रायल कोर्ट के समक्ष दो व्यक्तियों की गवाही के लिए एक आवेदन किया. इसमें से एक घटना का चश्मदीद गवाह भी था. उसका नाम जांच अधिकारियों द्वारा गवाहों की सूची में दर्ज किया गया था लेकिन अभियोजन पक्ष की ओर से उसे पेश नहीं किया गया. कोर्ट का कहना था कि हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी कर छह महीने में फैसला सुनाने का आदेश पहले ही दिया है इसलिए गवाही नहीं की जा सकती. केस निपटारे में देरी होगी। जिसे चुनौती दी गई थी.
मियाद के नियम पक्षकारों के अधिकार नष्ट करने के लिए नहीं: हाईकोर्ट
प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मियाद के नियम पक्षकारों के हितों को नष्ट करने के लिए नहीं है बल्कि अपने अधिकार के लिए लापरवाह व्यक्ति के उपचार पाने के रास्ते बंद करते हैं. इसका उद्देश्य यह है कि पक्षकार अपने अधिकारों को लेकर सोते न रहें, समय से अदालत पहुंचें. यह आदेश न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने मिर्जापुर निवासी लक्ष्मण प्रसाद की अनावश्यक देरी से दाखिल याचिका को खारिज करते हुए दिया है. कोर्ट ने कहा कि चुनौती देने में देरी का याची उचित कारण नहीं बता सका. कोर्ट ने कहा देरी की वजह याची की ओर से की गई लापरवाही नजर आती है. याची के खिलाफ परिवार अदालत मिर्जापुर ने अपनी पत्नी को पांच हजार रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है और बकाया राशि तीन माह की किश्तों में अदा करने का निर्देश दिया है जिसे चुनौती देने में अनावश्यक देरी की गई.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप