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High court news: मऊ में हुए एनआरसी दंगे की कार्रवाई रद करने से इनकार - मऊ की ताजी खबर

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2019 में मऊ में दंगा किए जाने की घटना में दर्ज प्राथमिकी और मुकदमे की कार्रवाई रद करने से इनकार कर दिया है.

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High court news: मऊ में हुए एनआरसी दंगे की कार्रवाई रद करने से इनकार
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Published : Mar 30, 2023, 8:12 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2019 में सीएए /एनआरसी के विरोध में प्रदर्शनकारियों द्वारा मऊ में दंगा किए जाने की घटना में दर्ज प्राथमिकी और मुकदमे की कार्रवाई रद करने से इंकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि केस डायरी पर उपलब्ध साक्ष्यों को देखते हुए इस मामले में हाई कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. दंगे में नामजद मोहम्मद ताल्हा व अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने दिया। पर शासकीय अधिवक्ता शेखर तिवारी ने याचिका का विरोध किया.

मामले के अनुसार 16 दिसंबर 2019 को मऊ के दक्षिण टोला थाना क्षेत्र में मीरजहादीपूरा में लगभग 800 से 900 प्रदर्शनकारी एनआरसी बिल के विरोध में प्रदर्शन के लिए एकत्र हुए. प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे. मौके पर मौजूद जिलाधिकारी मऊ, एसपी मऊ व अन्य अधिकारियों ने लोगों को समझाने का प्रयास किया, मगर कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं था.

स्थानीय इमाम और कुछ संभ्रांत नागरिकों ने भी लोगों को समझाने की कोशिश की मगर उसका कोई नतीजा नहीं निकला. देखते-देखते भीड़ हिंसक हो गई तथा पत्थर व पेट्रोल बम से पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों तथा उधर से गुजर रहे नागरिकों पर हमला कर दिया. इस दौरान अवैध स्थलों से फायरिंग भी की गई. घटना से पूरे क्षेत्र में दहशत फैल गई. दुकानें बंद हो गई. लोग अपने वाहन वही छोड़कर भाग गए. दंगाइयों ने पुलिस और प्रशासन की गाड़ियों में आग लगा दी जनता के वाहनों को भी तोड़ दिया. स्थिति नियंत्रण से बाहर होती देखकर पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागे. इसके बाद से दंगा कर रही भीड़ तितर-बितर हो गई. यह सारा मामला लगभग 4 घंटे तक चला. घटना के बाद एसएचओ दक्षिण टोला ने 84 नामजद सहित 600 अज्ञात लोगों पर एफआईआर दर्ज कराई गई. याची भी नामजद लोगों में शामिल है.

याची के अधिवक्ता का कहना था कि एफआईआर थाना प्रभारी ने दर्ज की है जिसमें बाद में अन्य पुलिस अधिकारियों ने विवेचना की इसलिए चार्ज शीट दूषित है. याची को जमानत मिल चुकी है, वह छात्र है इसलिए उसके साथ नरमी बरती जाए जबकि याचिका का विरोध करते हुए अपर शासकीय अधिवक्ता शशि शेखर तिवारी ने कहा कि प्राथमिकी में घटना का बहुत स्वाभाविक ब्यौरा दिया गया है. लगभग 600 दंगाइयों की भीड़ में से 84 लोगों को नामजद किया गया है इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि बिना पहचान किए नामजद किया गया है. कोर्ट ने कहा कि यह मामला प्रदर्शन के दौरान हिंसा करने का है. संविधान हर नागरिक को शांतिपूर्वक बिना हथियार के प्रदर्शन करने की अनुमति देता है. विधि विरुद्ध जमानत की अनुमति नहीं है. अधिकार के नाम पर दंगा करने वह हिंसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. नागरिक अधिकारों का कानूनी तरीके से ही प्रयोग किया जा सकता है. कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है.

ये भी पढ़ें: शाइस्ता परवीन का टिकट काटकर महापौर कैंडिडेट बदलेगी बसपा

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2019 में सीएए /एनआरसी के विरोध में प्रदर्शनकारियों द्वारा मऊ में दंगा किए जाने की घटना में दर्ज प्राथमिकी और मुकदमे की कार्रवाई रद करने से इंकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि केस डायरी पर उपलब्ध साक्ष्यों को देखते हुए इस मामले में हाई कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. दंगे में नामजद मोहम्मद ताल्हा व अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने दिया। पर शासकीय अधिवक्ता शेखर तिवारी ने याचिका का विरोध किया.

मामले के अनुसार 16 दिसंबर 2019 को मऊ के दक्षिण टोला थाना क्षेत्र में मीरजहादीपूरा में लगभग 800 से 900 प्रदर्शनकारी एनआरसी बिल के विरोध में प्रदर्शन के लिए एकत्र हुए. प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे. मौके पर मौजूद जिलाधिकारी मऊ, एसपी मऊ व अन्य अधिकारियों ने लोगों को समझाने का प्रयास किया, मगर कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं था.

स्थानीय इमाम और कुछ संभ्रांत नागरिकों ने भी लोगों को समझाने की कोशिश की मगर उसका कोई नतीजा नहीं निकला. देखते-देखते भीड़ हिंसक हो गई तथा पत्थर व पेट्रोल बम से पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों तथा उधर से गुजर रहे नागरिकों पर हमला कर दिया. इस दौरान अवैध स्थलों से फायरिंग भी की गई. घटना से पूरे क्षेत्र में दहशत फैल गई. दुकानें बंद हो गई. लोग अपने वाहन वही छोड़कर भाग गए. दंगाइयों ने पुलिस और प्रशासन की गाड़ियों में आग लगा दी जनता के वाहनों को भी तोड़ दिया. स्थिति नियंत्रण से बाहर होती देखकर पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागे. इसके बाद से दंगा कर रही भीड़ तितर-बितर हो गई. यह सारा मामला लगभग 4 घंटे तक चला. घटना के बाद एसएचओ दक्षिण टोला ने 84 नामजद सहित 600 अज्ञात लोगों पर एफआईआर दर्ज कराई गई. याची भी नामजद लोगों में शामिल है.

याची के अधिवक्ता का कहना था कि एफआईआर थाना प्रभारी ने दर्ज की है जिसमें बाद में अन्य पुलिस अधिकारियों ने विवेचना की इसलिए चार्ज शीट दूषित है. याची को जमानत मिल चुकी है, वह छात्र है इसलिए उसके साथ नरमी बरती जाए जबकि याचिका का विरोध करते हुए अपर शासकीय अधिवक्ता शशि शेखर तिवारी ने कहा कि प्राथमिकी में घटना का बहुत स्वाभाविक ब्यौरा दिया गया है. लगभग 600 दंगाइयों की भीड़ में से 84 लोगों को नामजद किया गया है इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि बिना पहचान किए नामजद किया गया है. कोर्ट ने कहा कि यह मामला प्रदर्शन के दौरान हिंसा करने का है. संविधान हर नागरिक को शांतिपूर्वक बिना हथियार के प्रदर्शन करने की अनुमति देता है. विधि विरुद्ध जमानत की अनुमति नहीं है. अधिकार के नाम पर दंगा करने वह हिंसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. नागरिक अधिकारों का कानूनी तरीके से ही प्रयोग किया जा सकता है. कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है.

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