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हाईकोर्ट ने भर और राजभर को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए और दो माह का समय दिया

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 30, 2023, 9:15 PM IST

भर और राजभर को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए दो महीने की मोहलत और इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने सरकार को दिया है.

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प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को भर एवं राजभर जातियों को एससी/एसटी का दर्जा देने से जुड़े मामले में राज्य सरकार को दो माह का और समय दिया है. प्रदेश सरकार की ओर से कहा गया कि पूर्व के आदेश के अनुपालन में सर्वे का काम पूरा हो गया है. बस इसे अंतिम रूप दिया जाना बाकी है. इसके लिए दो माह का और समय दिया जाए, जिस पर कोर्ट ने स्वीकृति दे दी. यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने जागो राजभर जागो समिति की अवमानना याचिका पर अधिवक्ता अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी व स्थायी अधिवक्ता को सुनकर दिया है.

इससे पहले कोर्ट ने केंद्र सरकार के 11 अक्तूबर 2021 के पत्र के संदर्भ में चार माह में अपना प्रस्ताव केंद्र को भेजने का निर्देश दिया था. सोमवार को सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि भर/राजभर जाति का 17 नोटिफाई जिलों में सर्वेक्षण पूरा हो गया है. लेकिन इसे अंतिम रूप देने के लिए कुछ और समय चाहिए और जल्द ही रिपोर्ट दाखिल कर दी जाएगी. इस आधार पर उन्होंने न्यायालय के आदेश के अनुपालन के लिए दो माह का समय और मांगा. इस पर कोर्ट ने सरकार को समय देते हुए अवमानना याचिका को दो माह बाद सुनवाई के लिए पेश करने का निर्देश दिया है.

इसे भी पढ़ें-High court: भर/राजभर को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने को दो माह का समय और

मामले के तथ्यों के अनुसार केंद्र सरकार ने 11 अक्तूबर 2021 को पत्र लिखकर राज्य सरकार से भर एवं राजभर जातियों को एससी/एसटी का दर्जा देने के संदर्भ में प्रस्ताव मांगा था. इस पत्र के जवाब में राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया तो हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई. याचिका पर कोर्ट ने राज्य सरकार को दो माह में प्रस्ताव भेजने का निर्देश दिया लेकिन इस आदेश पर अमल नहीं किया गया. इसके बाद अवमानना याचिका पर हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण से हलफनामा मांगा. प्रमुख सचिव की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि राज्य सरकार को जातियों का अध्ययन करने के लिए और समय चाहिए. कोर्ट ने मोहलत देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि अधिकतम चार माह के भीतर केंद्र को प्रस्ताव भेज दिया जाए. इसके बाद सरकारी वकील ने इसके लिए दो माह का समय और मांगा तो कोर्ट ने सरकार को दो माह का समय दे दिया. समिति का कहना है कि भर एवं राजभर जातियां 1952 के पहले तक क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट के तहत आती थीं. वर्ष 1952 के बाद उन्हें विमुक्त जाति घोषित कर दिया गया, जबकि क्रिमिनल ट्राइब्स में आने वाली अन्य जातियों को एससी/एसटी में शामिल कर लिया गया.

इसे भी पढ़ें-भर और राजभर को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने को एक और माह का समय

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को भर एवं राजभर जातियों को एससी/एसटी का दर्जा देने से जुड़े मामले में राज्य सरकार को दो माह का और समय दिया है. प्रदेश सरकार की ओर से कहा गया कि पूर्व के आदेश के अनुपालन में सर्वे का काम पूरा हो गया है. बस इसे अंतिम रूप दिया जाना बाकी है. इसके लिए दो माह का और समय दिया जाए, जिस पर कोर्ट ने स्वीकृति दे दी. यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने जागो राजभर जागो समिति की अवमानना याचिका पर अधिवक्ता अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी व स्थायी अधिवक्ता को सुनकर दिया है.

इससे पहले कोर्ट ने केंद्र सरकार के 11 अक्तूबर 2021 के पत्र के संदर्भ में चार माह में अपना प्रस्ताव केंद्र को भेजने का निर्देश दिया था. सोमवार को सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि भर/राजभर जाति का 17 नोटिफाई जिलों में सर्वेक्षण पूरा हो गया है. लेकिन इसे अंतिम रूप देने के लिए कुछ और समय चाहिए और जल्द ही रिपोर्ट दाखिल कर दी जाएगी. इस आधार पर उन्होंने न्यायालय के आदेश के अनुपालन के लिए दो माह का समय और मांगा. इस पर कोर्ट ने सरकार को समय देते हुए अवमानना याचिका को दो माह बाद सुनवाई के लिए पेश करने का निर्देश दिया है.

इसे भी पढ़ें-High court: भर/राजभर को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने को दो माह का समय और

मामले के तथ्यों के अनुसार केंद्र सरकार ने 11 अक्तूबर 2021 को पत्र लिखकर राज्य सरकार से भर एवं राजभर जातियों को एससी/एसटी का दर्जा देने के संदर्भ में प्रस्ताव मांगा था. इस पत्र के जवाब में राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया तो हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई. याचिका पर कोर्ट ने राज्य सरकार को दो माह में प्रस्ताव भेजने का निर्देश दिया लेकिन इस आदेश पर अमल नहीं किया गया. इसके बाद अवमानना याचिका पर हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण से हलफनामा मांगा. प्रमुख सचिव की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि राज्य सरकार को जातियों का अध्ययन करने के लिए और समय चाहिए. कोर्ट ने मोहलत देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि अधिकतम चार माह के भीतर केंद्र को प्रस्ताव भेज दिया जाए. इसके बाद सरकारी वकील ने इसके लिए दो माह का समय और मांगा तो कोर्ट ने सरकार को दो माह का समय दे दिया. समिति का कहना है कि भर एवं राजभर जातियां 1952 के पहले तक क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट के तहत आती थीं. वर्ष 1952 के बाद उन्हें विमुक्त जाति घोषित कर दिया गया, जबकि क्रिमिनल ट्राइब्स में आने वाली अन्य जातियों को एससी/एसटी में शामिल कर लिया गया.

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