प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चिन्मयानंद के खिलाफ रेप केस वापस लेने के मामले में राहत देने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी है. साथ ही स्वामी चिन्मयानंद को 30 अक्तूबर तक शाहजहांपुर की अदालत में सरेंडर करने को कहा है. हाईकोर्ट ने निचली अदालत को 30 अक्तूबर तक चिन्मयानंद के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने को कहा है. निचली अदालत को यह निर्देश दिया कि सरेंडर के बाद कानून के मुताबिक ही चिन्मयानंद की जमानत अर्जी पर निर्णय लें.
यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने शुक्रवार को दिया है. फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि पिक एंड चूज की पॉलिसी(pick and choose policy) के तहत किसी खास व्यक्ति को राहत देने का फैसला सही नहीं है. टॉप टू बॉटम सभी लोगों के लिए कानून एक बराबर है. कमजोर लोगों को संरक्षण मुहैया कराना कानून की जिम्मेदारी है. कोर्ट ने जुलाई माह में स्वामी चिन्मयानंद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार, सरकार की ओर से अपर शासकीय अधिवक्ता एके संड और पीड़िता के पति के अधिवक्ता संदीप शुक्ल व रफत रजा खान की दलीले सुनने के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि निचली अदालत के फैसले में कोई कमी नहीं है. हाईकोर्ट ने स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने के मामले में शाहजहांपुर की अदालत के फैसले को सही ठहराया है. शाहजहांपुर की अदालत ने चिन्मयानंद के केस वापसी के राज्य सरकार के निर्णय पर असहमत होते हुए मुकदमा चलाने का आदेश दिया था. शाहजहांपुर की अदालत के इस फैसले के खिलाफ स्वामी चिन्मयानंद ने हाईकोर्ट में रेप केस वापस लेने की याचिका दाखिल की थी. कोर्ट ने मुकदमा वापसी को लेकर निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है.
यह है मामला: स्वामी चिन्मयानंद पर हरिद्वार के अपने आश्रम में साल 2011 में एक शिष्या को बंधक बनाकर उसके साथ रेप करने का आरोप है. आश्रम से छूटने के बाद शिष्या और उसके परिवार वालों ने शाहजहांपुर की चौक कोतवाली में आईपीसी की धारा 376 व 506 में एफआईआर दर्ज कराई थी. स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ एक अन्य छात्रा ने भी यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए आपत्तिजनक वीडियो वायरल किए थे. राज्य सरकार ने नौ मार्च 2018 को चिन्मयानंद के खिलाफ दर्ज रेप के केस को वापस लेने का निर्णय लिया था.
सरकार के मुकदमा वापसी के फैसले की जानकारी शाहजहांपुर की अदालत को दी गई थी. शाहजहांपुर की अदालत ने सुनवाई के बाद मुकदमा वापसी के फैसले को गलत माना था और केस चलाए जाने की बात कही थी. निचली अदालत के इस फैसले को स्वामी चिन्मयानंद ने वर्ष 2018 में ही याचिका दाखिल करके चुनौती दी थी. स्वामी चिन्मयानंद की ओर से 76 साल की उम्र में कई गंभीर बीमारियां होने के आधार पर राहत की अपील की गई थी.
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